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source : ابنا
बुधवार

13 दिसंबर 2023

7:23:14 am
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फ़ातिमा अ.स. इसलिए फ़ातिमा अ.स. थी-4

फ़ातिमा अ.स. अपने ख़ुलूस, ईमान, हक़ के रास्ते में क़ुर्बानी का जज़्बा रखने वाली, विलायत की राह में सब कुछ लुटा देने की बुनियाद पर फ़ातिमा अ.स. थीं। फ़ातिमा अ.स. इसलिए फ़ातिमा अ.स. थीं क्योंकि आपने अपनी नीयत, अपने अमल में बेमिसाल थीं। फ़ातिमा अ.स. इसीलिए फ़ातिमा अ.स. थीं, कि उनके नफ़्स पर ख़ुदा की मर्ज़ी की छाप थी.........

** इमाम अली अ.स. के घर आने के बाद आपने कभी किसी चीज़ की मांग नहीं की और न ही कभी किसी चीज़ की ख़्वाहिश ज़ाहिक की, यहां तक कि कठिन से कठिन समय में जब घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था तब भी आपने कभी यह नहीं कहा कि घर में कुछ नहीं है इंतेज़ाम कर दीजिए, इमाम अली अ.स. ने ख़ुद जब देखा कि खाने के लिए घर में कुछ नहीं है तो पूछा ज़हरा स.अ. आपने क्यों नहीं बताया कि घर में खाने को कुछ नहीं रह गया तो आपने जवाब दिया अबुल हसन अ.स. मुझे उस बात के लिए कहते हुए शर्म आती है जिसका पूरा करना आपके लिए सख़्त हो।

** बच्चों को ऐसी तरबियत दी कि हमेशा घर से क़ुर्आन की तिलावत और तसबीह की आवाज़ आती रहती लेकिन उसके बावजूद आप बच्चों से ताकीद कर के कहतीं कि मस्जिद जा कर नाना का ख़ुत्बा सुना करो, और बच्चे मस्जिद से जब वापस आते तो आप उनसे वह सब बातें सुनाने को कहतीं जिसे पैग़म्बर स.अ. ने बयान किया है, आप हमेशा बच्चों से कहतीं कि बच्चों तुम अपने वालिद देखो और उनकी तरह बनने की नसीहत इस तरह करतीं कि बेटा अपने वालिद की तरह हक़ की गर्दन में पड़ी हुई ज़ुल्म की ज़ंजीरों को तोड़ कर देना कभी ज़ालिमों का साथ देना।

** घर में खाना बहुत कम था और रात में मेहमान ने दरवाज़ा खटखटाया, हज़रत ज़हरा स.अ. ने इमाम अली अ.स. से कहा कि खाना तो केवल इतना ही है कि बच्चे खा सकें लेकिन मैं बच्चों को सुला देती हूं क्योंकि मेहमान का हक़ पहले होता है, खाना लगा मेहमान ने पेट भर कर खाना खाया, रात ऐसी गुज़र रही थी कि घर में आने वाला मेहमान पेट भर कर सो रहा था लेकिन घर के लोग भूखे पेट सो रहे थे, आपके इसी अमल को देखते हुए आयत भी नाज़िल हुई।

** एक बार बच्चे बहुत बीमार हुए पैग़म्बर स.अ. बेटी के घर बच्चों को देखने आए और इमाम अली अ.स. से कहा मन्नत मान लो जब बच्चे ठीक हो जाएंगे तो तीन दिन रोज़ा रखेंगे, पूरे घर ने मन्नत मान ली, बच्चे ठीक हो गए सबने रोज़ा रखा लेकिन इफ़्तार के लिए घर में कुछ नहीं था, इमाम अली अ.स. कहीं से थोड़ी जौ ले कर आए ताकि इफ़्तार का इंतेज़ाम हो सके, जौ को पीस कर पांच रोटियां तैय्यार की गईं, एक घर की कनीज़ फ़िज़्ज़ा दो बच्चों और एक इमाम अली अ.स. और एक शहज़ादी के लिए, इफ़्तार के समय दस्तरख़ान पर पानी और जौ की रोटियां रखी गईं, अभी इफ़्तार का इरादा ही किया था कि घर के दरवाज़े से किसी की आवाज़ आई ऐ पैग़म्बर स.अ. के अहलेबैत अ.स. मैं मिस्कीन हूं क्या कुछ खाना मिल सकता है?

सबने अपने अपने हिस्से की रोटी दे दी, मिस्कीन ख़ुश हो कर चला गया और इधर घर के सभी लोगों ने पानी से इफ़्तार कर लिया, दूसरे दिन फिर सबने रोज़ा रखा इमाम अली अ.स. ने फिर जौ का इंतेज़ाम किया फिर रोटी बनीं दस्तरख़ान सजा पानी रखा गया जौ की रोटी रखी गईं जैसे ही सब इफ़्तार करने बैठे फिर घर के दरवाज़े से आवाज़ आई मैं यतीम हूं क्या कुछ खाने को मिलेगा?

सबने अपने अपने हिस्से की रोटियां उस यतीम को दे दी, तीसरे दिन फिर ऐसे ही हुआ जैसे ही इफ़्तार का इरादा किया आवाज़ आई मैं एक असीर हूं क्या थोड़ा खाना मिल सकता है?

सबने फिर पानी से इफ़्तार किया और सो गए, जब सुबह हुई तो इमाम अली अ.स. अपने बच्चों इमाम हसन अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. का हाथ पकड़ कर पैग़म्बर स.अ. के पास ले गए, पैग़म्बर स.अ. ने देखा बच्चों के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था और वह दोनों भूख की वजह से कांप रहे थे, पैग़म्बर स.अ. इमाम अली अ.स. और बच्चों के साथ उनके घर आए तो देखा शहज़ादी मुसल्ले पर बैठी इबादत कर रहीं हैं भूख की वजह ले आंखें के हलक़े दिखाई देने लगे हैं, पैग़म्बर स.अ. सबकी इस हालत को देख कर बहुत दुखी हुए तभी जिब्रईल नाज़िल हुए और रहा ऐ मेरे हबीब आप के अहलेबैत अ.स. के इस किरदार को देख कर अल्लाह आपको मुबारकबाद पेश करता है और फिर सूरए दहर की आयतों कि तिलावत की।

यह केवल कुछ मिसालें थीं जिनको आपके सामने पेश किया, वरना वह तारीख़ जिसको मैं पढ़ रहा था उसमें हज़रत ज़हरा स.अ. का पूरा वजूद मेरे सामने कुछ इस तरह था कि कहीं बच्चों को संभाल रही हैं तो कहीं चक्की चला रही हैं, कहीं इमाम अली अ.स. के दुखों सुन रहीं हैं तो कहीं किसी की मदद करती नज़र आ रही हैं, आपका वजूद आवाज़ दे रहा है कि मैं ऐसे ही फ़ातिमा नहीं हूं बल्कि मेरे इस मर्तबे के पीछे मेरी भूख मेरी प्यास मेरे मज़बूत इरादे मेरी कोशिशें मेरा दुखों को बर्दाश्त करना मेरा सब्र मेरा हौसला मेरी लगातार वह इबादतें जिनसे मेरे पैरों का सूज जाना है, मेरे कलेजे में इंसानियत का दर्द है, विलायत की राह में मेरी टूटी हुई पस्लियां और नीले बाज़ू हैं, मुझे यह राज़ समझने में देर नहीं लगी कि जितना अल्लाह की राह में ख़ुद को मिटाते चले जाओगे उतना ही बुलंदी हासिल करते चले जाओगे, लेकिन कुछ बुलंदियां और ऊंचाईयां ऐस हैं जिनसे आगे बढ़ने का हम हौसला तो कर सकते हैं लेकिन उन तक पहुंचना हमारे बस की बात नहीं होती क्योंकि हम ख़ाकी वजूद हैं और वह नूरानी वजूद थे लेकिन ख़ाकी जिस्म के साथ हमारी हिदायत कर रहे थे, लेकिन ध्यान रहे इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं कि हम थक हार के बैठ जाएं और यह सोंचने लगें कि हमारे बस का कुछ भी नहीं है।

पता नहीं आपको इस सवाल का जवाब मिला या नहीं कि फ़ातिमा अ.स. क्यों फ़ातिमा अ.स. हैं....... फ़ातिमा अ.स. अपने ख़ुलूस, ईमान, हक़ के रास्ते में क़ुर्बानी का जज़्बा रखने वाली, विलायत की राह में सब कुछ लुटा देने की बुनियाद पर फ़ातिमा अ.स. थीं।

फ़ातिमा अ.स. इसलिए फ़ातिमा अ.स. थीं क्योंकि आपने अपनी नीयत, अपने अमल में बेमिसाल थीं। फ़ातिमा अ.स. इसीलिए फ़ातिमा अ.स. थीं, कि उनके नफ़्स पर ख़ुदा की मर्ज़ी की छाप थी। हां फ़ातिमा अ.स. इसीलिए फ़ातिमा अ.स थीं।