बचपन से उलमा और ज़ाकेरीन से यह हदीस सुनी थी कि पैग़म्बर स.अ. अपनी बेटी का बेहद सम्मान करते थे। आपने अपनी बेटी के लिए फ़रमाया फ़ातिमा अ.स. मेरे कलेजे का टुकड़ा है जिसने उनको तकलीफ़ पहुंचाई उसने मुझे तकलीफ़ पहुंचाई, उनकी मर्ज़ी मेरी मर्ज़ी है और उनके नाराज़ होने से अल्लाह नाराज़ होता है।
अक़्ल और समझ के बढ़ने के साथ साथ दिमाग़ में यह सवाल भी पक्का होता गया कि आख़िर कैसे किसी की ख़ुशी और नाराज़गी से अल्लाह ख़ुश और नाराज़ हो जाएगा? इतना बड़ा मर्तबा किसी को ऐसे ही तो नहीं मिल सकता, फिर हज़रत ज़हरा स.अ. कैसे अल्लाह की ख़ुशी और नाराज़गी का कारण बनी?
इस सवाल के जवाब की खोज ने इतनी दलीलें सामने रख दीं कि जो मेरे लिए इस सवाल के जवाब में बहुत थीं, हो सकता है इन दलीलों से किसी को उसके किसी और सवाल का जवाब भी मिल जाए।
** एक दिन पैग़म्बर स.अ. एक कनीज़ के साथ घर में आए और कनीज़ का हाथ हज़रत ज़हरा स.अ. के हाथ में दे कर फ़रमाया, बेटी यह कनीज़ आज से तुम्हारी ख़िदमत करेगी यह पाबंदी से नमाज़ पढ़ती है इसलिए तुम्हारे लिए बेहतर होगी, फिर आपने उस कनीज़ के हुक़ूक़ के बारे में कुछ नसीहत बयान फ़रमाईं, आपने अपने वालिद की तरफ़ देखते हुए कहा, आज से घर के कामों को मैंने बांट दिया है एक दिन घर के काम आपकी बेटी करेगी और एक दिन यह कनीज़, आपके इस जवाब को सुन कर पैग़म्बर स.अ. की आंखों में आंसू आ गए और आपने इस आयत की तिलावत फ़रमाई, अल्लाह ही बेहतर जानता है कि अपनी रिसालत (ज़िम्मेदारी) किसके सुपुर्द करे।
** फ़िज़्ज़ा घर की कनीज़ थीं, उनको हज़रत ज़हरा अ.स. की मारेफ़त भी थी और अहलेबैत अ.स. के मर्तबे को भी जानती थीं, लेकिन आपने घर के कामों को बांट रखा था एस दिन घर का सारा काम फ़िज़्ज़ा करती थीं एक दिन आप ख़ुद करती थीं, सलमान फ़ारसी का बयान है कि एक दिन मैंने देखा कि शहज़ादी बच्चों को गोद में संभाले हुए चक्का चला रही हैं जबकि आपका हाथ ज़ख़्मी है और उससे ख़ून बह रहा है, मैंने कहा शहज़ादी घर पर फ़िज़्ज़ा मौजूद हैं फिर आप उनसे काम क्यों नहीं लेतीं, आपने फ़रमाया कल फ़िज्ज़ा ने घर के काम किए आज मेरी ज़िम्मेदारी है।
जारी है