एक परिवार के एक बच्चे की शरारत से उस के घर के सभी सदस्य तंग आ चुके थे, उसकी शरारत उसके बाप और सभी दूसरे सदस्यों को तकलीफ़ दे रही थी, घर के बाहर भी सभी उससे परेशान थे, उसका बाप हर बार इस उम्मीद से उसकी पिटाई करता कि शायद अब शरारत और ग़लत आदतों से दूर हो जाए, लेकिन मार और पिटाई का कोई प्रभाव उस पर दिखाई नहीं दिया।
एक दिन उसके बाप ने उसका हाथ पकड़ा और इमामे अली अ. के पास ले गया और इमाम से उसकी शिकायत की, इमाम ने एक बार उसके बाप की तरफ़ देखा और उसको बच्चे की तरबियत और उसके पालन पोषण का तरीक़ा सिखाते हुए फ़रमाया, अपने बेटे पर हाथ मत उठाओ।
बाप अभी अपने दिल में सोच ही रहा था कि फिर कैसे बेटे की तरबियत करूँगा ? तभी इमाम ने फ़रमाया, उसकी तरबियत के लिए उस से नाराज़गी को जताते हुए दूरी करो।
बाप ने सुनते ही महसूस किया जैसे तरबियत की नई दुनिया में क़दम रखा हो, बाप ने उसी समय यह इरादा कर लिया कि वह अब इसी तरीक़े को अपनाते हुए अपने बेटे से नाराज़ रहेगा, अभी वह यह सोच ही रहा था कि इमाम ने कहा लेकिन ध्यान रहे नाराज़गी अधिक समय के लिए नहीं होनी चाहिए। (बिहारुल अनवार, जिल्द 101, पेज 99)
संदेश: बच्चे की तरबियत में मार पिटाई का कोई भी असर नहीं होता है, बल्कि नकारात्मक प्रभाव होता है, जैसे मार पिटाई का आदी हो जाने के साथ साथ माँ बाप की महानता और डर कलंकित हो जाता है, और भविष्य में तरबियत और पालन पोषण का रास्ता भी बंद हो जाएगा।