यह क़ानून उन संस्थाओं और कंपनियों को सज़ा देने की बात करता है जो चीनी हितों के लिए किसीभी क़िस्म के नुक़सान की वजह बनती हों। इस क़ानून में यह नहीं बताया गया है कि वो कोन सी सीमाएं हैं जिन्हें नहीं लांघा जा सकता।
कुछ टीकाकार कहते हैं कि यह अमरीका के ख़िलाफ़ आक्रामक विदेश नीति और पुश बैक का चिन्ह है।
चीन के अख़बार ग्लोबल टाइम्ज़ का कहना है कि यह क़ानून पश्चिमी वर्चस्ववाद के ख़िलाफ़ क़ानूनी ढांचे को मज़बूत बनाने की दिशा में अहम क़दम है।
अमरीका और पश्चिमी सरकारें बार बार दूसरे देशों की कंपनियों पर पाबंदियां लगाती हैं और उन्हें सज़ाएं देती हैं जिनसे दुनिया की कंपनियों को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ता है और बहुत से देशों के साथ उन्हें अपना व्यापार बंद करना पड़ता है।
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