फ़ाइनेंशियल टाइम्स की इस रिपोर्ट ने यूक्रेन को लेकर पश्चिमी देशों के मतभेदों का रहस्योद्घाटन किया है। अमरीका यूक्रेन युद्ध को आगे बढ़ाने और इस युद्ध में यूक्रेन की भरपूर सहायता को जारी रखने पर तो ज़ोर दे रहा है, लेकिन यूक्रेन को नाटो में शामिल करने का विरोध कर रहा है। जबकि यूरोपीय देश, यूक्रेन युद्ध को लंबी नहीं खींचना चाहते हैं और नाटो में उसकी सदस्यता के समर्थक हैं।
अमरीका को किसी भी तरह से यूक्रेन की सुरक्षा और उसके राष्ट्रीय हितों का समर्थक नहीं माना जा सकता है, उसका सिर्फ़ एक मक़सद है, रूस को कमज़ोर करना। जबकि यूरोपीय देश, रूस के पड़ोसी हैं और जहां दोनों के कई साझा हित हैं, वहीं एक की सुरक्षा दूसरे के लिए भी काफ़ी महत्व रखती है।
अमरीका, इस युद्ध को रूस को कमज़ोर करने के अवसर के रूप में देख रहा है, लेकिन इसी के साथ वह रूस और नाटो के बीच सीधा टकराव नहीं चाहता है। दूसरी ओर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने चेतावनी दे दी है कि जुलाई शिखर सम्मेलन में वह उसी वक़्त भाग लेंगे जब नाटो में कीव की सदस्यता के संबंध में कोई ठोस प्रस्ताव पेश किया जाएगा।
आगामी नाटो शिखर सम्मेलन में इस पश्चिमी सैन्य संगठन में यूक्रेन की सदस्यता का विरोध ख़ास तौर पर अमरीका और जर्मनी जैसे देश का विरोध, इस संबंध में कीव सरकार से किए गए कई वादों के विपरीत है।
नाटो में यूक्रेन की सदस्यता का मुद्दा, 2008 में अमरीका और यूरोपीय राष्ट्राध्यक्षों द्वारा उठाया गया था। 2008 में बुख़ारेस्ट शिखर सम्मेलन में नाटो के सदस्य देशों के प्रमुखों ने, यूक्रेन और जॉर्जिया के इस संगठन में शामिल होने की बात कही थी, ताकि इस सैन्य संगठन का विस्तार रूस के क़रीब देशों और रूस की सीमाओं तक किया जा सके। उसी के बाद से यह मुद्दा, रूस और पश्चिम के बीच तनाव का एक मुख्य बिंदू बन गया है।
कहा जा सकता है कि यह मुद्दा, यूक्रेन-रूस युद्ध का एक मुख्य कारण है। रूस इस बात को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर ख़तरा मानता है। रूसी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के उप सचिव अलेक्ज़ेंडर वेंडिक्तोव का इस संदर्भ में कहना हैः कीव अच्छी तरह से समझता है कि नाटो में उसकी सदस्यता का परिणाम तीसरे विश्व युद्ध के रूप में निकल सकता है। नाटो के सदस्य देश भी मानते हैं कि यह क़दम, एक तरह से आत्महत्या है।
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