सीरिया और अरब देशों के रिश्तों
पर जमी बर धीरे धीरे पिघल रही है। 6 फ़रवरी
को तुर्की में आए आए ज़लज़ले ने जहाँ अरब देशों के बीच उठायी गई दीवार को किसी हद तक
गिरा दिया है वहीँ पश्चिमी जगत के चेहरे पर पड़े नक़ाब को उठाते हुए वेस्ट के घिनौने
और वास्तविक चेहरे को एक बार फिर दुनिया के सामने ला दिया है।
अरब देशों के साथ अच्छे रिश्तों की वकालत करते हुए सीरिया के राष्ट्रपति बश्शार असद की सलाहकार बुसैना शाबान ने दमिश्क़ को लेकर अरब देशों के बर्ताव में आए बदलाव का इस्तक़बाल करते हुए कहा कि हम सभी अरब देशों के साथ अच्छे रिश्तें चाहते हैं। राष्ट्रपति असद सभी अरब देशों के साथ दोस्ताना रिश्ते चाहते हैं हम मानते हैं कि पूरा अरब समाज एक दुसरे से जुड़ा है और हमारी क़िस्मत और अंजाम एक सा है।
उन्होंने कहा कि हालिया ज़लज़ले ने एक बात साफ कर दी है कि 12 साल तक आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष भी हमारे आपसी मेल मोहब्बत, एक दुसरे से लगाव और एकजुटता, देश प्रेम पर कोई ख़ास सारा नहीं छोड़ सका क्योंकि सीरिया की जनता को इस मुश्किल वक़्त में पूरे देश और यहाँ तक कि देश से बाहर रह रहे सीरियन लोगों से मदद मिल रही है।
उन्होंने कहा कि इस ज़लज़ले ने अरब देशों की ग़ैरत को भी झिंझोड़ा है क्योंकि ज़्यादातर अरब देश सीरिया की मदद के लिए सामने आए है। इस से मालूम होता है कि अरब लोग एक दूसरे से मोहब्त करते हैं और इस की जड़ें साझा संस्कृति, ज़बान और सभ्यता में हैं।
बुसैना शाबान ने कहा कि इस ज़लज़ले के कारण एक बार फिर पश्चिमी देशों ककेचेहरे पर बड़ा झूट का नक़ाब हट गया और दुनिया के सामने उनका घिनौना चेहरे उजागर हो गया है।
वहीँ सीरिया के विदेश मंत्री फैसल मिक़दाद ने भी जेनेवा में ह्यूमन राइट्स कौंसिल में अपने बयान में कहा कि इस कौंसिल को अपने नियम क़ायदों के अनुसार चलने की ज़रूरत है। कुछ देश इस कौंसिल को अपने हितों को साधने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
मिक़दाद ने कहा कि सीरिया में आए ज़लज़ले ने हमे पिछले 12 साल से मिल रहे ज़ख्मों को और गंभीर कर दिया है लेकिन इन सबके बावजूद मानवाधिकारों की दुहाई देने वाले देशों का ज़मीर सोया रहा और उन पर कोई असर नहीं हुआ।