AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : Parstoday
शनिवार

31 दिसंबर 2022

6:49:55 pm
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आज़रबाइजान ने इस्राईल में दूतावास खोलकर क्या संदेश दिया है?

आज़रबाइजान ने मुख़्तार मोहम्मदोफ़ को इस्राईल के लिए अपना पहला राजदूत नियुक्त किया है।

इससे पहले आज़रबाइजान की संसद ने राष्ट्रपति इलहाम अलीओफ़ की सरकार को अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन या इस्राईल में दूतावास खोलने की अनुमति दे दी थी। आज़रबाइजान सरकार इस तरह के क़दम ऐसी स्थिति में उठा रही है, जब हालिया कुछ महीनों में बाकू की भड़काऊ कार्यवाहियां किसी से ढकी छिपी नहीं हैं। मिसाल के तौर पर क़राबाख़ में आज़रबाइजान और आर्मेनिया के बीच युद्ध के एक साल बाद लंदन से प्रकाशित होने वाले अख़बार अल-शर्क़ अल-औसत ने एक रिपोर्ट में लिखा थाः आज़रबाइजान गणराज्य ने ईरान और इस्राईल के बीच, एक नया मोर्चा खोल दिया है। हो सकता यह बात अलीओफ़ सरकार के लिए ज़्यादा महत्व नहीं रखती हो, लेकिन विश्व राजनीति में यह ख़ुद को ही मारने के अर्थ में है, क्योंकि ईरान, आज़रबाइजान का एक पड़ोसी और मुस्लिम देश है।

हालांकि इससे पहले बाकू के अधिकारी हमेशा ही आज़रबाइजान सरकार और जनता की मदद के लिए ईरान की प्रशंसा करते नहीं थकते थे, लेकिन कराबाख़ की जंग के एक साल बाद, उन्होंने बड़ा यू-टर्न लिया और ईरान के ख़िलाफ़ तुर्किए और इस्राईल से गठजोड़ करने की बात करने लगे। इसके अलावा, अलीओफ़ सरकार ने एक ख़तरनाक क़दम उठाते हुए आज़रबाइजान-ईरान सीमा पर एक बड़ा क्षेत्र इस्राईल को सौंप दिया है। इस्राईल टाम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, आज़रबाइजान और इस्राईल ने पिछले दशकों के दौरान, सुरक्षा और निकट संबंध स्थापित किए थे। इसके अलावा, इस्राईल ने इलहाम अलीओफ़ सरकार के साथ हथियारों के बड़े समझौते किए थे, लेकिन इसके बारे में विस्तार से जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई थी। आज़री राष्ट्रपति ने 2016 में कहा थाः उनके देश ने इस्राईल से 85.4 बिलियन डॉलर के हथियार ख़रीदे हैं।      

इस्राईल के साथ संबंधों को सही ठहराने के लिए बाकू के अधिकारियों को इस वास्तविकता को नज़र अंदाज़ नहीं करना चाहिए कि आज़रबाइजान की मुसलमान जनता और ख़ास तौर पर वह वर्ग कि जो इस्राईल की वास्तविकता को पहचानता है, वह अपनी सरकार की हर तरह की ग़लत नीतियों पर मूक दर्शक बना रहेगा।

बाकू द्वारा तेल-अवीव में दूतावास खोलने के बारे में कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बाकू के राजनेता इस ग़लतफ़हमी में हैं कि इस्राईल, तुर्किए और पश्चिमी सरकारों से रिश्ते मज़बूत करने के बाद, उन्हें देश की जनता के समर्थन की बहुत ज़्यादा ज़रूरत नहीं रहेगी, लेकिन उनकी यह ग़लतफ़हमी हमेशा बाक़ी नहीं रहेगी, क्योंकि कोई भी सरकार, चाहे उसे विदेशी शक्तियों का कितना भी समर्थन हासिल हो, बिना अपनी जनता के समर्थन के ज़्यादा दिन तक टिक नहीं पाती है।

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