उन्होंने कहाः सेमीनार में और सेमीनार से पहले और उसके बाद हम जो काम अंजाम देते हैं उनकी बहुत सी ख़ासियतें हैं जिनमें दो सबसे अहम हैं: एक याद और दूसरी पैग़ाम। शहीदों की याद ज़िन्दा और बाक़ी रहनी चाहिए, शहीदों का पैग़ाम सुना जाना चाहिए।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने सभी शहीदों के पैग़ाम को बयान करने में कला के इस्तेमाल को ज़रूरी बताया।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने शहादत को अल्लाह से सौदा और राष्ट्रीय हितों को हासिल करने का ज़रिया बताया। उन्होंने कहाः शहादत, जहाँ अल्लाह से सौदा है वहीं इससे क़ौमी हितों को भी हासिल किया जाता है। अल्लाह की राह में शहादत, राषट्रीय हितों को पूरा करती है।
उन्होंने नैश्नल वैल्यूज़, शहीद, और शहादत को राष्ट्रीय पहचान को बुलंदी देने वाला कारक बताया और ईरानी क़ौम की शहादत पसंदी को दुनिया में उसकी महानता का सबब क़रार दिया।
इस्लामी क्रांति के नेता ने शहादत को तस्बीह के धागे की तरह मुल्क के भीतर अलग अलग संप्रदायों को एक दूसरे से जोड़ने वाला बताया और कहाः मुल्क के उत्तरी या पूर्वी इलाक़े का कोई शहीद, दूसरे इलाक़ों के शहीदों के साथ एक ही पंक्ति में था, वे सभी एक ही मक़सद के लिए शहीद हुए, इस्लाम की इज़्ज़त के लिए, इस्लामी जुम्हूरिया की महानता के लिए, ईरान को मज़बूत बनाने के लिए, वे इससे अलग अलग संप्रदायों को एक दूसरे से जोड़ते थे, यह शहादत की विशेषता है।
उन्होंने शाहचेराग़ की घटना जैसी घटनाओं के इतिहास में ज़िन्दा रहने की तरफ़ इशारा करते हुए कहाः इस्लामी क्रांति से लेकर आज तक हर हर घटना इतिहास का प्रकाशमान अध्याय है, एक सितारा है। यही घटना जो कुछ दिन पहले शाहचेराग़ में हुई, एक अमर सितारा है, यह इतिहास में अमर रहेगी।
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