हम इसे विरोधाभासी इसलिए कह रहे हैं कि अमरीका ने अपने सारे पेट्रियट और थाड मिसाइल ढाल सिस्टम सऊदी अरब से निकाल लिए हैं तो वह सऊदी अरब पर लगभग रोज़ ही हो रहे मिसाइल और ड्रोन हमलों को कैसे रोक लेगा?
मिसाइल ढाल सिस्टम निकाले जाने से नाराज़ सऊदी अरब ने जवाबी कार्यवाही यह की कि अमरीकी रक्षा मंत्री लुइड आस्टिन की रियाज़ यात्रा को रद्द कर दिया। इसके बाद सऊदी अरब को ठंडा करने के लिए अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने सऊदी अरब का दौरा किया और वह कूटनैतिक बयान दिए हैं जिनका ज़मीनी हालात से कोई तालमेल नहीं है।
अमरीकी अधिकारी के बयान में एक और बिंदु महत्वपूर्ण है। उन्होंने यमन विवाद के राजनैतिक हल की बात कही है। हालांकि पिछले सात साल से अमरीका का इस तरह का बयान बेबुनियाद ही साबित हुआ है। अब तो यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन का यमन की धरती पर नियंत्रण है, इमारात इस जंग से निकल चुका है और सऊदी गठबंधन हर मोर्चे पर हार रहा है।
सऊदी सरकार चाहती है कि यह जंग ख़त्म हो जाए जिसने उसे सैकड़ों अरब डालर का नुक़सान पहुंचा दिया है लेकिन सऊदी प्रशासन में हार स्वीकार करने का साहस नहीं है और वह नहीं चाहता कि सारे समीरकण अंसारुल्लाह के पक्ष में झुक जाएं।
यमन युद्ध की हालत यह है कि अलबैज़ा प्रांत पर पूरी तरह अंसारुल्लाह और यमनी सेना का नियंत्रण हो चुका है यानी सऊदी गठबंधन को शिकस्त हुई है। शबवा के बड़े भाग पर अंसारुल्लाह ने बिना लड़ाई के ही नियंत्रण कर लिया। मारिब के भी 80 प्रतिशत इलाक़ों पर अंसारुल्लाह का ही क़ब्ज़ा है, शेष बचे इलाक़ों पर नियंत्रण के लिए लड़ाई चल रही है।
मारिब पर नियंत्रण अंसारुल्लाह का रणनैतिक लक्ष्य है क्योंकि इसकी एतिहासिक हैसियत है और यह यमन में सऊदी गठबंधन का मुख्य ठिकाना माना जाता है और तीसरी बात यह है कि यहीं तेल और गैस के भंडार हैं। यमन में इस समय ईंधन के संकट की वजह से बिजली की क़िल्लत है।
अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सोलिवन झूठे वादे कर रहे हैं। उन्होंने मिस्र, इमारात और सऊदी अरब तीनों घटकों से झूठे वादे किए हैं। अमरीका की प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं। पूरे मध्यपूर्व से अमरीका बाहर निकल रहा है यह एक सच्चाई है मगर खेद है कि अब भी कुछ अरब सरकारें अमरीका के झूठे वादों पर ही विश्वास करने पर तुली हैं बल्कि दर्जनों अरब डालर भी अमरीका की झोली में डाल देना चाहती हैं।
स्रोतः रायुल यौम