दूसरी चीज़ है चीन से तालेबान की बढ़ती नज़दीकियां। तालेबान अब अफ़ग़ानिस्तान को मध्य एशिया में चीन का अच्छा ठिकाना बना देने की दिशा में आगे जा रहे हैं।
अमरीकी राष्ट्रपति की यह चिंता उस समय चरम पर पहुंच गई जब तालेबान संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल मुल्ला बरादर आख़ुंद के नेतृत्व में बीजिंग पहुंच गया और उसने चीन के विदेश मंत्री वांग ई और दूसरे सुरक्षा और प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं से मुलाक़ातें कीं।
अफ़ग़ानिस्तान को उसकी स्ट्रैटेजिक स्थिति के कारण हार्ट आफ़ एशिया कहा जाता है। छह देशों पाकिस्तान, चीन, ताजेकिस्तान, उज़्बकिस्तान, तुर्कमानिस्तान और ईरान से उसकी ज़मीनी सीमाएं मिलती हैं। इस देश की 45 प्रतिशत आबादी पश्तून जाति की है और तालेबान भी इसी जाति से संबंध रखते हैं।
अमरीका की वर्तमान बाइडन सरकार चीन को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानती है। उसकी कोशिश है कि अफ़ग़ानिस्तान को तुर्कमानिस्तान आंदोलन का केन्द्र बना दे जिससे चीन में बसने वाले उइगर मुसलमानों का भी संबंध है। यानी एक तरह से अमरीका दोबारा वही हालात पैदा करना चाहता है जो उसने सोवियत संघ को अफ़ग़ानिस्तान में शिकस्त देने के लिए पैदा किए थे और वियतनाम में मिलने वाली हार का बदला लिया था। मगर अमरीका की समझ में यह बात नहीं आ रही है कि अफ़ग़ानिस्तान बदल चुका है और यही चीज़ सऊदी अरब के साथ हुई है, जो धीरे धीरे वहाबी कट्टरवाद से ख़ुद को दूर करने की कोशिश में लग गया है।
तालेबान के प्रवक्ता मुहम्मद नईम ने ट्वीट किया कि चीनी अधिकारियों से मुलाक़ात में तालेबान ने यह यक़ीन दिलाया है कि अमरीका सहित किसी को भी चीन के ख़िलाफ़ अफ़ग़ानिस्तान की धरती इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं दी जाएगी।
इसके जवाब में चीनी अधिकारियों ने वादा किया है कि वह अफ़ग़ानिस्तान की नई सरकार के साथ मज़बूत संबंध स्थापित करेंगे और अफ़ग़ानिस्तान के पुनरनिर्माण में अरबों डालर लगा देंगे। चीन ने बड़ा साफ़ संदेश दिया है कि अमरीका विध्वंस और विनाश करता है और हम पुनरनिर्माण।
तालेबान का रूस और चीन से क़रीब होना कोई हैरत की बात नहीं है। पाकिस्तान जो तालेबान के जनक के रूप में जाना जाता है चीन से बहुत अच्छे रिश्ते निभा रहा है तो फिर अगर तालेबान चीन से क़रीब होते हैं तो यह स्वाभाविक है।
इस समय सीमावर्ती इलाक़ों पर काफ़ी हद तक तालेबान का कंट्रोल है जबकि देश के 90 प्रतिशत इलाक़े भी तालेबान के क़ब्ज़े में चले गए हैं। तालेबान अपनी इस्लामी सरकार की स्थापना के एलान के लिए अब आख़िरी अमरीकी सैनिक के अफ़ग़ानिस्तान से बाहर निकलने का इंतेज़ार कर रहे हैं।
तालेबान ने अमरीका को शिकस्त दी। अफ़ग़ानिस्तान की लड़ाई में अमरीका के लगभग साढ़े तीन हज़ार सैनिक मारे गए, उसकी दो ट्रिलियन डालर से अधिक रक़म डूब गई। इसी का इंतेक़ाम लेने के लिए अब अमरीका ने क़तर में सैनिक केन्द्र स्थापित करके मेहनत शुरू कर दी है। वह तालेबान और चीन दोनों से इंतेक़ाम लेना चाहता है।