AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
मंगलवार

13 जुलाई 2021

5:15:24 pm
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हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के रौज़े के रक्षक दो भाई जिन्होंने दाइशियों की नाक में दम कर दिया, मां से इजाज़त लेने और दाइश पर बिजली बनकर टूट पड़ने की दिलचस्प कहानी...

दो भाई जिन्होंने सीरिया जाने और हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के रौज़े की रक्षा करने के लिए अपनी पहचान छिपाई और फ़ातेमीयून ब्रिगेड में रहकर जंग की और इन दो स्नाइपरों ने दाइश का सुख चैनल छीन लिया था।

इन दोनो भाइयों का संबंध ईरान के पवित्र नगर मशहद से था और दोनों के बीच ऐसी गहरी दोस्ती थी जो शहादत के बाद भी उन्हें जुदा नहीं कर सकी।  इनमें से एक का नाम मुस्तफ़ा था जो धार्मिक शिक्षा केन्द्र का छात्र और हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े का सेवक था और उनके दो दो संतानें थीं। दूसरे का नाम मुजतबा था और वह कुंवारे थे और लॉ पढ़ रहे थे।  दोनों ही हज़रत ज़ैनब के रौज़े के रक्षक बनना चाहते थे और दोनों ने ही साथ में कार्यक्रम बनाया ताकि सीरिया जाने के लिए अपनी मां को तैयार कर सकें।

मुस्तफ़ा और मुजतबा जब अपनी मां को राज़ी करने की कोशिश कर रहे थे और उनकी मां को इस बात की भनक तक नहीं थी, तभी उन्होंने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा और उनके दो बेटों को सपने में देखा जो उनके घर आई हुई थीं, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा सपने में मुस्तफ़ा और मुजतबा की मां से कहती हैं कि हमारे महदी के प्रकट होने की दुआ करें, उनकी मां को सपने में आश्चर्य हुआ, हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने उनसे यह बात क्यों कही, वह नींद से उठीं और सोचने लगीं कि क्या बात थी और इस सपने का क्या मक़सद था।

इस सपने को देखे हुए कई दिन हो गये, एक दिन मुस्तफ़ा और मुजतबा एक साथ अपनी मां के पास आए तो मां ने उनको एक साथ देखा तो दिल में सोचा लगता है कोई अहम मामला है जो दोनों एक साथ आए हुए, दोनों भाई मां के पैरों के पास बैठ गये और उन्होंने बातें करना शुरू कीं। उन्होंने अपनी बातों में कर्बला का उल्लेख ही शुरू कर दिया, अभी इन दोनों की बात पूरी ही नहीं हो पायी थी कि उनकी मांग उनका मक़सद समझ गयीं, उन्होंने अपनी मां से कहा कि जब मुहर्रम का चांद नज़र आता है तो हर एक यही कहता है कि हे काश हम भी कर्बला के मैदान में होते तो इमाम पर अपनी जान न्योछावर कर देते, सभी यही कहते हैं लेकिन कोई उस पर अमल नहीं करता, आज वही दिन हैं जिन पर अमल करने की ज़रूरत है।

आख़िरकार एक तरफ़ से बार बार कहने और दूसरी तरफ़ से बार बार इन्कार का सिलिसिला जारी रहा यहां तक कि मुस्तफ़ा और मुजतबा ने सीरिया में दाइश के अपराधों पर रोशनी डालनी शुरू कर दी। उन्होंने कहा कि सीरिया में दाइश सक्रिय हैं और अगर हम ईरानी नहीं जाएंगे जो दाइश हज़रत ज़ैनब और हज़रत सकीना को फिर से बंदी बना लेंगे उसके बाद वह कहते हैं कि मां क्या हमें जाने की इजाज़त है, मां भी अपने धार्मिक जज़्बे के आगे मजबूर हो गयी और बच्चों को जाने की इजाज़त दे देती है।

इजाज़त मिलने के बाद यह दोनों बच्चे ख़ुशी से झूम उठते हैं। यह दो भाई अपनी मां से कहते हैं कि मां क्या आपको पता है कि दाइशी लोगों को जला देते हैं, संभव है कि वे हमें भी जला दें? मां कहती है कि हज़रत सकीना के जले हुए कुर्ते की क़सम, इमाम हुसैन पर क़ुर्बान हो जाओ, बच्चे फिर कहते हैं कि मां क्या आपको पता है कि दाइशी टुकड़े टुकड़े कर देते हैं, हसन (अ) के लाल क़ासिम के टुकड़े बदन की क़दम, मैं तुम्हारी शहादत देखने को तैयार हूं।

बच्चे सीरिया जाने के लिए मश्हद से निकल पड़ते हैं, वह सीरिया जाने की कार्यवाही करते हैं लेकिन कामयाब नहीं हो पाते, महीनों तक दौड़ने धूपने के बाद आख़िरकार उन्हें कामयाबी मिलती है और वह भी इस शर्त के साथ कि पहले वह अफ़ग़ानी लहजा सीखें ताकि फ़ातेमीयून ब्रिगेड के ज़रिए सीरिया जा सकें।

इस कार्यक्रम में मां की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही, यही वजह थी कि उन्होंने अपना एक एक उपनाम चुना, मुस्तफ़ा ने अपना नाम बशीर ज़मानी रखा जबकि मुजतबा ने अपना नाम जवाब रेज़ाई रखा। इन दोनों ने ख़ुद को ख़ालाज़ाद भाई के रूप में बताया। यह दोनों भाई धीरे धीरे सीरिया जाने की तैयारी करने लगे, मां उनके बैग तैयार कर रही थी, मुस्तफ़ा अपनी पत्नी और बेटी से रुख़सत होते हैं और मां से कहा जाता है कि शगुन का पानी गिराएं लेकिन बच्चे चिल्लाकर कहते हैं कि पानी न गिराएं क्योंकि हमें वापस नहीं आना है।

मुस्तफ़ा और मुजतबा सीरिया में भी साथ थे और जब कमान्डर को पता चला कि दोनों का निशाना अचूक है तो उन्होंने इन दोनों को स्नाइपर के रूप में चुना और उन्होंने फ़ैसला सही साबित कर दिया क्योंकि दोनों भाईयों का निशाना कभी नहीं चूकता था और बताते हैं कि दाइश के आतंकी इन दोनों भाईयों से बहुत घबराते थे और तंग आ चुके थे।

एक आप्रेशन के दौरान, सीरिया की सेना एक तरफ़ से, सड़क की तरफ़ से हिज़्बुल्लाह के जवान और पहाड़ी इलाक़े से अलफ़ातेमीयून ब्रिगेड के जवान आगे बढ़ रहे थे, थोड़ी दूरी पर स्नाइपर लगे थे जो उनका रास्ता साफ़ कर रहे थे,  आप्रेशन में मुस्तफ़ा और मुजतबा एक ही मोर्चे में थे और उन्होंने अपने साथियों का रास्ता साफ़ करना शुरू किया ताकि वह आसानी से आगे बढ़ सकें।

झड़प धीरे धीरे तेज़ हो रही थी और दाइश और स्नाइपरों के बीच की दूरी भी कम हो रही थी, दोनों ओर से गोलियों की बौछार हो रही थी तभी एक हैंडग्रेनेड उस मोर्चे में आ गिरा जहां मुस्तफ़ा और मुजतबा थे, ग्रेनेड फट जाता है और दोनों भाई एक साथ शहीद हो जाते हैं।

भीषण झड़पों के बीच हज़रत ज़ैनब के रौज़े के रक्षक क्षेत्र में पहुंच जाते हैं और शहीद मुर्तज़ा अताई किसी तरह दोनों भाईयों के मोर्चे में पहुंचते हैं और देखते हैं कि दोनों भाईयों ने एक दूसरे के कंधे पर अपना सिर रख रखा है, पहले तो वह समझे कि लगता है थकन की वजह से सो रहे हैं लेकिन बाद में उनका ज़ख़्म दिखा फिर समझ गये कि शहीद हो गये।  

इन दो भाईयों की शहादत के बाद उनके साथियों ने उनकी लाशें कैंप में पहुंची क्योंकि यह दोनों भाई अफ़ग़ानी ख़ालाज़ाद भाई के नाम से मशहूर थे इसीलिए पहले तो क़ुम में उनके घर वालों को तलाश किया जाने लगा लेकिन ही एक कमान्डर सैयद हुसैनी समझ गये कि यह दोनों भाई ईरानी और मशहद के रहने वाले हैं लेकिन उन्होंने उनको वचन दिया था कि उनकी पहचान छिपी रहेगी ।

इन दोनों भाईयों की शहादत के कुछ दिन बाद कमान्डर सैयद हुसैनी ने कार्यवाही आगे बढ़ाई और दोनों भाईयों को गुमनाम शहीद के रूप में पहले हज़रत फ़ातेमा मासूमा के हरम की परिक्रमा कराई गयी और उसके बाद यह राज़ फ़ाश हुआ। राज़ के सामने आने के बाद इन शहीदों को पवित्र नगर मशहद ले जाया गया और बहिश्ते इमाम रज़ा में उनको दफ़्न कर दिया गया।