शहीद हकीम का उद्देश्य शिया-सुन्नी और दूसरे अल्पसंख्यकों के बीच एकता को मज़बूत करना था। अखंड इराक़ की रक्षा और अमरीकी सैनिकों का इराक़ से निकलना हमारी मांग है। हम सरकार से मांग करते हैं कि वह इन सैनिकों के निकलने का टाइम टैबल बनाकर, लोगों को इस ओर से शांत कर दे।
शहीद बाक़ेरुल हकीम की इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह और इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के निकट बहुत अहमियत थी। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई को जब उनकी शहादत की ख़बर मिली तो आपने तीन दिन के राष्ट्रीय शोक का एलान किया था और अपने बयान में आयतुल्लाह बाक़ेरुल हकीम की हत्या को त्रासदी और उन्हें इराक़ पर क़ाबिज़ विदेशियों की साज़िशों से निपटने में बहुत मज़बूत मोर्चा बताया था। इराक़ी जनता इस महान शहीद की याद में सड़कों पर निकली ताकि उनकी याद को अमर बनाए।
इराक़ के दुश्मनों को हमारा साफ़ संदेश है कि हम वरिष्ठ धार्मिक नेतृत्व का अनुसरण करते हैं। जब तक हम उनका अनुसरण करेंगे उस वक़्त तक हमारे देश को कोई नुक़सान नहीं पहुंचेगा।
शहीद बाक़ेरुल हकीम मत के शिष्यों में शहीद अबू महदी अलमुहन्दिस भी थे जो 19 साल से ज़्यादा वक़्त तक इस महान धर्मगुरू के साथ थे।
शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की भी इस महान शहीद से विशेष श्रृद्धा थी।
हकीम ख़ानदान ने पिछले 4 दशक में ईश्वर के नाम को ऊंचा करने के लिए 60 से ज़्यादा सदस्यों को, इस्लाम के लिए क़ुर्बान किए हैं।