AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
शनिवार

9 जनवरी 2021

1:22:09 pm
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रियाज़ के इरादे ख़तरनाक! क्यों सऊदी अरब ने सारी शर्तें छोड़ कर जल्दी से क़तर के साथ सुलह कर ली? ا अलमयादीन ने बतायी वजह

लेबनान के अलमयादीन टीवी चैनल ने लिखा है कि परिशयन गल्फ़ का मौसम भी उस महल के माहौल की तरह साफ़ नहीं हैं जहां फ़ार्स की खाड़ी सहयोग परिषद की बैठक हुई थी क्योंकि हमारा पूरा इलाक़ा बारुद के एक ढेर पर है जिसमें किसी भी समय धमाका हो सकता है।

 सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस, मुहम्मद बिन सलमान, क़तर के नरेश शै़ख तमीम बिन हमद आले सानी के स्वागत के लिए स्वंय गये और उन्हें गले लगाकर यह एलान कर दिया कि सऊदी अरब, क़तर के साथ संबंध के 3 वर्षीय संकट को पूरी तरह से ख़त्म करने के लिए तैयार हो चुका है।

     ऐसे माहौल में फ़ार्स की खाड़ी सहयोग परिषद का 41वां शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ और अरब जगत, कुवैत की कृपा से, यह उम्मीद करने लगा कि इस दोस्ती के बल पर वह अपनी आर्थिक व सामाजिक समस्याओं को कम कर लेगा।

     यह बैठक ऐसी दशा में आयोजित हुई कि जब पूरा इलाक़ा, युद्ध के मुहाने पर खड़ा है जिसकी वजह, जनरल क़ासिम सुलैमानी की पहली बरसी पर ईरान व अमरीका के बीच बढ़ता तनाव है और यह तनाव उस समय अपने चरम पर पहुंच गया था जब बग़दाद में अमरीकी दूतावास पर एक रॉकेट हमला हुआ हालांकि ईरान ने इस हमले से अपना किसी भी प्रकार के संबंध से इन्कार किया है लेकिन यह अमरीका के लिए बहाना बन सकता है।

     बहरैन के नरेश इस बैठक में अनुपस्थित थे जिससे पता चलता है कि बहरैन को यह दोस्ती पसंद नही आयी। क़तर ने भी मनामा के बारे में अपनी नीतियों की कोई गारंटी पेश नहीं की है।

रोचक बात यह है कि जब सऊदी अरब में दोस्ती की इस बैठक का आयोजन हो रहा था तो बहरैन के सरकारी टीवी चैनल पर क़तर द्वारा बहरैनी मछुआरों के अधिकारों के हनन पर एक कार्यक्रम प्रसारित किया जा रहा था।

लेकिन जहां तक क़तर की बात है तो वहाँ के शासक, हैसम बिन तारिक़ ने यह सूचना देकर कि वह बैठक में भाग नहीं लेंगे, सब को चौंका दिया जिसके बाद इस बैठक में उनकी अनुस्पथिति पर चर्चा शुरु हो गयी। कहा जा रहा है कि सुलह की अस्पष्ट परिस्थितियों में ओमान नरेश ने अनुस्पथित रहना बेहतर समझा।

बैठक के परिणाम के बारे में कुछ ठोस रूप से नहीं कहा जा सकता लेकिन व्यवहारिक रूप से जो कुछ हो रहा है वह तनाव कम करने के लिए कुछ क़दम उठाए गये हैं।

सऊदी अरब ने क़तर के लिए अपनी सभी  सीमाओं को खोल दिया है और इसके बदले, कत़र को बायकॉट करने वाले सभी अरब देशों के ख़िलाफ़ मुक़द्दमे की कार्यवाही रोकना और अपने नुक़सान की भरपाई की मांग छोड़ना पड़ा लेकिन शर्त क्या थी ?

क़तर के विदेशमंत्री का कहना है कि हम यह नहीं चाहते कि कोई देश किसी अन्य के लिए शर्त लगाए। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि क़तर का बहिष्कार करने सऊदी अरब और उसके तीन अन्य सहयोग देशों ने उसे माफ़ करने के लिए 13 शर्तों की जो लिस्ट पेश की थी उसे भुला दिया क्योंकि क़तर ने न तो तुर्की से संबंध कम किया और न ही अलजज़ीरा टीवी चैनल को बंद किया जो सऊदी अरब की मुख्य मांग थी।

दूसरी तरफ़ बहरैन के क्राउन प्रिंस सलमान बिन हमद आलेख़लीफ़ा का कहना है कि बैठक के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर हुए हैं, शांति  समझौते पर नहीं। लेकिन क़तर के विदेशमंत्री बल देते हैं कि वर्तमान मतभेद ख़त्म करने के लिए समझौता हुआ है। हालात को देख कर यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह सऊदी अरब और क़तर के बीच होने वाला समझौता है न कि क़तर और बहिष्कार करने वाले सभी देशों के बीच लेकिन सवाल यह है कि सऊदी अरब ने शांति  समझौता क्यों  किया?

सऊदी अरब हमेशा फ़ार्स की खाड़ी सहयोग परिषद के सदस्य देशों का मुख्य स्तंभ और उनके हितों का रक्षक रहा है। अमरीका में होने वाले बदलाव की वजह से सऊदी अरब के लिए भी हालात बदल गये और अब सऊदी अरब के लिए सब से अहम बात, बाइडन के सत्ताकाल के लिए तैयारी है। इस लिए अरब देशों को एक मंच पर लाना और परस्पर मतभेद ख़त्म करना सऊदी अरब के लिए पहली तरजीह है। सऊदी क्राउन प्रिंस के लिए अब उन ख़तरों का सामना करना बहुत अधिक ज़रूरी है जिनमें  सब से आगे  वह, ईरान के परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम को समझते हैं।  इस आधार पर रियाज़ यह नहीं चाहता कि निकट भविष्य में अपने पड़ोस में भी दुश्मन बनाए रखे।

इस चरण में ईरान के ख़िलाफ़ एक संयुक्त मोर्चा बनाया जा रहा है और इस्राईल के साथ अरब देशों का गठबंधन अधिक गहरा और अधिक मज़बूत होगा। इसके अलावा यह भी है कि अरब देश, पहले की तरह अपनी अपनी सुरक्षा को एक दूसरे से जोड़ना चाहते हैं ताकि ईरान के साथ परमाणु समझौते में बाइडन की वापसी के बाद बनने वाले हालात के लिए स्वंय को तैयार करें। 

इसी वजह से सऊदी अरब, क़तर के साथ सुलह  के लिए इतना उतावला है। लेकिन सवाल यह है कि यह सुलह कितनी मज़बूत है?

क़तर के तुर्की के साथ संबंधों, या तेहरान से सहयोग पर जो विवाद था उसका क्या होगा? क़तर किधर जाएगा? तुर्की को  ख़ुश रखेगा या सऊदी अरब से दोस्ती बनाएगा?

यह सारे सवाल उठ रहे हैं जिनका कोई जवाब नहीं है।