AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
मंगलवार

29 दिसंबर 2020

12:06:35 pm
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सऊदी अरब में मानवाधिकारों का खुल्लम खुल्ला हनन और अमरीका का दोग़ला रवैया!

सऊदी अरब में मानवाधिकारों का निरंतर हनन हो रहा है जिसकी हालिया मिसाल, महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली कार्यकर्ता लुजैन अल हज़लूल को दी गई 6 साल क़ैद की सज़ा है। सऊदी अरब के इस रवैये पर अमरीका में विभिन्न प्रकार की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।

एक अमरीकी सिनेटर क्रिस मर्फ़ी ने मंगलवार को ट्वीट करके सऊदी अरब में मानवाधिकारों के हनन पर रिपब्लिकन सांसदों की चुप्पी की कड़ी आलतोचना की। उन्होंने ट्वीट किया कि सऊदी अरब, जल्द ही काम शुरू करने जा रही बाइडन सरकार के प्रति अपनी सद्भावना दिखाने के लिए, लुजैन हज़लूल को यातनाएं देना और राजनैतिक दृष्टि से प्रताड़ित करना बंद कर सकता था लेकिन उसने इसके बजाए, महिलाओं के लिए ड्राइविंग की मांग करने वाली इस कार्यकर्ता को 6 साल जेल की सज़ा सुना दी। एक अन्य रिपब्लिकन सिनेटर और अमरीकी सिनेट के विदेशी संबंध समिति के प्रमुख जिम रीश ने भी लुजैन अल हज़लूल को दी गई सज़ा पर प्रतिक्रिया जताते हुए लिखा है कि मैं पूरी तरह से निराश हो गया कि सऊदी अरब की आतंकवाद निरोधक अदालत ने इस मानवाधिकार कार्यकर्ता को 5 साल 8 महीने जेल की सज़ा दी है।

 

आलोचकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अपने विरोधियों को गिरफ़्तार करने, जेल में डालने और उनकी हत्या करने में सऊदी अरब की सरकार का अतीत अत्यंत काला है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार करना, यातनाएं देना, ग़ायब कर देना, अन्यायपूर्ण तरीक़े से मुक़द्दमा चलाना और उन्हें प्रताड़ित करना, आले सऊद के लिए आम बात है। सऊदी अरब ने इसी तरह मार्च 2015 में यमन के ख़िलाफ़ युद्ध शुरू करके यमनी नागरिकों के जनसंहार, असैनिक इमारतों के विध्वंस और आवासीय क्षेत्रों पर बमबारी के माध्यम से अनेक अमानवीय अपराध किए हैं। मानवाधिकार के हनन के संबंध में विश्व स्तर पर सऊदी अरब की अनेक बार आलोचना हो चुकी है लेकिन इसके बावजूद अमरीका, यमन में रियाज़ के अत्याचारपूर्ण युद्ध में सऊदी अरब का भरपूर साथ दे रहा है और उसे विभिन्न प्रकार के हथियारों से लैस कर रहा है।

 

वास्तव में वाॅशिंग्टन भी अन्य मामलों की तरह मानवाधिकार के क्षेत्र में भी दोहरे मानदंड अपनाता है। अमरीका ऐसी स्थिति में अपने विरोधी या प्रतिस्पर्धी देशों पर मानवाधिकार के हनन का आरोप लगाता है जब वह सऊदी अरब समेत अपने घटक देशों के संबंध में चुप्पी या ज़्यादा से ज़्यादा दिखावे की निंदा की नीति अपनाता है। सऊदी अरब काफ़ी समय से मानवाधिकारों का व्यापक हनन कर रहा है और इसकी सबसे स्पष्ट मिसाल अक्तूबर सन 2018 में इस्तंबोल में सऊदी वाणिज्य दूतावास में सरकार विरोधी सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी की निर्ममता से की गई हत्या है। ट्रम्प सरकार ने इस मामले की लीपा-पोती का हर संभव प्रयास किया और व्यवहारिक रूप से सऊदी क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान के ख़िलाफ़ किसी तरह की कार्यवाही नहीं की जिन्होंने इस पाश्विक कार्यवाही का आदेश दिया था।

 

इस समय भी सऊदी अरब की एक अदालत ने इस देश की महिला मानवाधिकार कार्यकर्ता लुजैन हज़लूल को झूठे आरोपों में छः साल क़ैद की सज़ा सुनाई है लेकिर अमरीका की सरकार, जो आज़ादी और मानवाधिकार की रक्षा के बड़े बड़े दावे करती है, इस संबंध में आपराधिक मौन धारण किए हुए है। हालांकि निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन और कुछ अन्य नेताओं ने ट्रम्प सरकार से अलग नीति अपनाई है लेकिन अमरीका की पिछली सरकारों का अतीत यही दर्शाता है कि वाॅशिंग्टन सऊदी अरब के पेट्रो डाॅलर्ज़ समेत अपने स्ट्रेटेजिक हितों को मानवाधिकार, प्रजातंत्र और आज़ादी से ज़्यादा महत्व देता है।