AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
बुधवार

9 दिसंबर 2020

5:32:14 pm
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क़तर की दृढ़ता के सामने नर्म पड़ रहा है सऊदी अरब...कुशनर की यात्रा का ईरान से क्या है संबंध? फ़ार्स खाड़ी के इलाक़े में अरब सरकारों के बीच क्या खिचड़ी पक रही है?

अब तक साफ़ नहीं हो सका है कि कुवैत के अमीर ने जारी सप्ताह सऊदी अरब और क़तर के बीच जिस संधि की बात कही है कि उसके मूल बिंदु और प्रारूप क्या हैं। कुवैत 2017 से क़तर के साथ सऊदी अरब, इमारात, बहरैन और मिस्र के गंभीर विवाद को निपटाने की कोशिश कर रहा था मगर उसे सफलता नहीं मिल पायी थी।

यह भी नहीं स्पष्ट है कि अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प के दामाद और सलाहकार जेर्ड कुशनर ने रियाज़ और दोहा की यात्रा केवल इसलिए की थी कि सऊदी अरब अपनी वायु सीमा क़तर के विमानों के लिए खोल दे या दोनों के बीच कोई व्यापक समझौता कराना उनका मक़सद था। वायु सीमा का मुद्दा इसलिए महत्वपूर्ण है कि क़तर के विमान इस समय ईरान की वायु सीमा से गुज़रते हैं जिसके नतीजे में ईरान को सालाना 100 मिलियन डालर की रक़म मिलती है। सऊदी अरब और अमरीका दोनों चाहते हैं कि यह रक़म ईरान को न मिलकर सऊदी अरब को मिले।

टीकाकारों को लगता है कि केवल वायु सीमा के मामले में समझौता नहीं बल्कि दूसरे अनेक मुद्दों पर भी दोनों देशों के विवाद हल करने के लिए कुशनर ने यह यात्रा की थी।

 

सऊदी अरब और क़तर के बीच इसी महीने बहरैन में फ़ार्स खाड़ी सहयोग परिषद की शिखर बैठक में समझौता होने की संभावना है। यह विचार भी बहुत मज़बूत है कि सऊदी अरब और इमारात के बीच बढ़ते विवाद के नतीजे में क़तर और सऊदी अरब के समझौते का रास्ता साफ़ हुआ है।

यमन युद्ध में सऊदी अरब और इमारात के प्राक्सी संगठनों में ज़ोरदार टकराव है और कभी कभी देखने में आता है कि इमारात के प्राक्सी संगठन मज़बूत स्थिति में पहुंच जाते हैं जिससे सऊदी अरब बहुत आक्रोश में है। दूसरी बात यह है कि इमारात ने यमन से अपने सैनिक निकाल लिए हैं जिसका नतीजा यह हुआ है कि यमन जंग का बहुत भारी और ख़र्चीला बोझ सऊदी अरब को संभालना पड़ रहा है। इस समय यमन की सेना और अंसारुल्लाह आंदोलन का गठबंधन सऊदी अरब के महत्वपूर्ण आर्थिक व सामरिक केन्द्रों पर मिसाइल और ड्रोन हमले कर रहा है।

एक बिंदु यह है कि इस्राईल से शांति समझौते के मुद्दे पर सऊदी अरब के शाही ख़ानदान के भीतर मतभेद पैदा हो जाने की ख़बरें आने लगी हैं। किंग सलमान और उनके क़रीबी अधिकारी यह नहीं चाहते कि इस्राईल से समझौता करके सऊदी अरब इस्लामी जगत में अपनी साख को बट्टा लगाए मगर क्राउन प्रिंस और उनके सर्कल में शामिल अधिकारी ज़ोर दे रहे हैं कि इस्राईल से शांति समझौता कर लिया जाए। चूंकि इस्राईल के क़रीब जाने के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान के फ़ैसले पर इमरात के क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन ज़ाएद का गहरा प्रभाव माना जाता है इसलिए किंग सलमान का क़रीबी धड़ा धीरे धीरे इमारात से दूरी बना रहा है और साथ ही क़तर से क़रीब होना चाहता है।

 

चूंकि अमरीका में जो बाइडन की सरकार सत्ता संभालने जा रही है इसलिए सऊदी अरब अपनी नीतियों में बुनियादी बदलाव भी करना चाहता है ताकि बाइडन प्रशासन की नीतियों से किसी हद तक ख़ुद को समन्वित कर सके।

क़तर ने अपनी दृढ़ता के नतीजे में सऊदी अरब, इमारात, बहरैन और मिस्र की ओर से की जाने वाली नाकाबंदी का सफलता से सामना किया मगर अब बहुत ज़रूरी है कि लीबिया, सीरिया और अन्य इलाक़ों में चरमपंथी संगठनों के समर्थन की नीति पर पुनरविचार करे क्योंकि अरब देशों के बीच बहुत सारे विवाद की जड़ तीसरे देशों में प्राक्सी गुटों का समर्थन भी रहा है।

स्रोतः रायुल यौम