AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
सोमवार

7 दिसंबर 2020

3:37:19 pm
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ईरान के ख़िलाफ़ सऊदी अधिकारियों के निराधार दावे, राजनैतिक बिखराव और भय की निशानी

सऊदी अरब के अधिकारी जो इन दिनों क्षेत्र के राजनैतिक हालात और ट्रम्प की चुनावी हार के परिणामों से घबराए हुए हैं, निराधार दावे करके कोशिश कर रहे हैं कि अपने आपको क्षेत्र में अस्थिरता फैलाने वाली अपनी कार्यवाहियों और आतंकवाद से बरी करा लें जो उनके पेट्रो डाॅलरों और तकफ़ीरी विचारों से अस्तित्व में आया है।

सऊदी अरब के विदेश मंत्री फ़ैसल बिन फ़रहान ने फ़्रान्स प्रेस से बात करते हुए जो बयान दिया है वह सऊदी अरब की इसी राजनैतिक घबराहट की निशानी है। उन्होंने इस इंटरव्यू में और इसी तरह मेडिट्रेनियन डायलाॅग असेमबली में ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम पर चिंता जताई। उन्होंने इसी तरह कहा कि अगर ईरान के साथ किसी भी तरह का नया समझौता होता है तो उसके लिए सऊदी अरब और फ़ार्स की खाड़ी के तटवर्ती अरब देशों से ज़रूर सलाह ली जानी चाहिए। बिन फ़रहान ने इसी तरह परमाणु हथियारों के फैलाव और बैलिस्टिक मीज़ाइलों के बारे में बातचीत के लिए रियाज़ की तैयारी की घोषणा की। इन बातों से पता चलता है कि सऊदी अधिकारी अपने ही बनाए हुए संकटों से निकलने के लिए क्षेत्र में एक बार फिर ईरानोफ़ोबिया की नीति से फ़ायदा उठाना चाहते हैं।

 

इस तरह की साज़िशों को सऊदी अरब की हारी हुई कूटनीति ऐसे समय में अपनाने की कोशिश कर रही है जब पिछले कुछ दशकों की घटनाओं पर एक सरसरी नज़र डालने से सऊदी अरब की विध्वंसक भूमिका के बारे में कुछ और ही तथ्य सामने आते हैं। सच्चाई यह है कि सऊदी अरब की ओर से अन्य देशों के मामलों में हस्तक्षेप और प्राॅक्सी वाॅर शुरू करने के लिए गठजोड़ बनाना ही पश्चिमी एशिया के इलाक़े में अशांति व अस्थिरता की जड़ है जिससे इस पूरे क्षेत्र की सुरक्षा ख़तरे में पड़ गई है। रियाज़ अतीत को देखने के बजाए, अपने अपराधों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए दूसरों पर निराधार आरोप लगा रहा है लेकिन इससे वह यमन युद्ध में अपने अपराधों, आतंकवाद के समर्थन, इस्राईल से संबंध स्थापना के मार्ग पर चलने और फ़िलिस्तीनी काॅज़ से ग़द्दारी पर पर्दा नहीं डाल सकता।

 

कई बरस से रियाज़ की कूटनीति सहयोग व समझ-बूझ से दूर हो चुकी है। उसका यह रवैया वाइट हाउस में ट्रम्प के आने के बाद और संकट खड़े करके फ़ायदा हासिल करने की वाॅशिंग्टन की नीति के बाद और तेज़ी से आगे बढ़ गया है। सऊदी युवराज मुहम्मद बिन सलमान वाइट हाउस की ओर से हरी झंडी दिखाए जाने के बाद निरंतर ईरान के ख़िलाफ़ ज़हर उगल रहे हैं। ईरान पर सऊदी अरब की ओर से इस समय जो आरोप लगाए जा रहे हैं, उनमें दो बातें ध्यान योग्य हैं। एक तो यह कि क्षेत्र की शांति व स्थिरता को तबाह करने में सऊदी अरब की वास्तविक भूमिका को छिपाना और दूसरे ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में निराधार दावे करके अपनी अस्पष्ट परमाणु गतिविधियों की ओर से लोगों का ध्यान भटकाना।

 

आईएईए के परमाणु हथियार निरीक्षकों के पूर्व प्रमुख और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर ओली हाइनन का कहना है कि सऊदी अरब ने परमाणु पारदर्शिता नहीं दिखाई है और हमें रियाज़ के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की स्पष्ट सूचनाओं तक हमारी पहुंच संभव नहीं हो सकी है बल्कि केवल कुछ रिएक्टरों का निरीक्षण कराया गया है। बहरहाल अतीत से पता चलता है कि दूसरों पर आरोप लगाने से क्षेत्र में टिकाऊ शांति व सुरक्षा को मज़बूत बनाने में कोई मदद नहीं मिलेगी। आले सऊद को शायद याद नहीं कि अमरीका ने बरसों तक ईरान को क्षेत्र की सुरक्षा के लिए एक ख़तरे के तौर पर पेश करने की कोशिश की जबकि वह खु़द ही क्षेत्र में युद्ध व संकट शुरू करने के लिए सऊदी अरब को उकसाता रहता था। इस तरह के अतीत के साथ सऊदी अरब निश्चित रूप से इस पोज़िशन में नहीं है कि ईरान के राष्ट्रीय व सुरक्षा हितों की सच्चाई में फेर-बदल कर सके और परमाणु समझौते के भविष्य के बारे में बात कर सके या फिर वार्ता के लिए पूर्व शर्त पेश कर सके।