पाकिस्तान की मानवाधिकार मंत्री ने एक ट्वीट करके फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां की तुलना एडल्फ़ हिटलर से कर दी और कहा कि फ़्रांसीसी स्कूलों में मुस्लिम बच्चों को शिनाख्ती नंबर दिए जा रहे हैं जबकि अन्य बच्चों के लिए यह क़ानून नहीं है, यही काम हिटलर ने किया था और यहूदियों को अपने कपड़ों पर पीले रंग का स्टार लगाने पर मजबूर किया था ताकि सबको पता चल जाए कि यह यहूदी है।
इस ट्वीट पर फ़्रांस आग बगूला हो गया और फ्रांसीसी विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान सरकार के समक्ष इस मामले पर अपना कड़ा विरोध दर्ज कराया और ट्वीट वापस लेने की मांग की।
हो सकता है कि कुछ लोगों को यह लगे कि मैक्रां की तुलना हिटलर से करके शीरीं मज़ारी ने अतिशयोक्ति की है लेकिन इस्लामी जगत में अधिकतर लोगों का यह मानना है कि फ़्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रां ने दुनिया के लगभग दो अरब मुसलमानों के जान से प्यारे पैग़म्बर का अनादर करके सारी रेडलाइनें पार कर दीं। फ़्रांसीसी सरकार देश के लगभग एक करोड़ मुसलमानो के हिजाब पर प्रतिबंध का क़ानून बना चुकी है और फ़्रांसीसी स्कूलों में मुस्लिम छात्रों और अन्य छात्रों के बीच भेदभाव कर रही है।
मैक्रां ने जो ग़लती की है उसे भूलना या माफ़ करना बहुत कठिन है। उन्होंने चुनावी हितों को देखते हुए देश के चरमपंथियों का साथ देने का फ़ैसला किया और मुस्लिम आबादी की आस्थाओं और कल्चर को निशाना बनाया। मैक्रां अपनी इस नस्ल परस्ती पर अड़े भी रहे इससे पीछे हटने या माफ़ी मांगने पर तैयार नहीं हुए। यही नहीं वह तो मुस्लिम नेतृत्व और मस्जिदों के लिए कड़े नियम बना रहे हैं। यह हरकतें अब तक यूरोपीय संघ के 28 सदस्यों में से किसी भी अन्य देश ने नहीं की थीं।
आख़िर में हम राष्ट्रपति मैक्रां से यह सवाल करना चाहते हैं कि अगर वह अपमानजनक कार्टूनों को उनका अधिकार मानते हैं जिन्होंने यह कार्टून बनाएं हैं क्योंकि यह अभिव्यक्ति की आज़ादी के दायरे में आता है तो क्या शीरीं मज़ारी ने जो किया है वह अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है? क्या उन्होंने भी अपने इसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए मैक्रां की तुलना हिटलर से नहीं की है? या फिर फ़्रांसीसी राष्ट्रपति को यह लगता है कि चूंकि शीरीं मज़ारी मुसलमान हैं और अश्वेत हैं इसलिए उन्हें अभिव्यक्ति की आज़ादी का हक़ नहीं है?
हमें नहीं लगता कि फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इस सवाल का जवाब देंगे।
संपादकीय लेख
रायुल यौम