इस बंदी महिला ने अपनी पहचान गुप्त रखते हुए अल आलम टीवी चैनल के पत्रकार को अपनी विपदा बताई और कहा कि जेल में बंद सारे क़ैदियों को भीषण शारीरिक और मानसिक यातनाओं से गुज़रना होता है। उनका कहना था कि जेल में बंद क़ैदी अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों और पुलिसिया बर्ताव की शिकायत करना चाहते हैं लेकिन उनको अपनी और अपने परिजनों की जान का ख़तरा होता है इसीलिए वह चुप रहकर सब कुछ सहन करते रहते हैं।
बहरैन की महिला बंदी ने बताया कि पूरे देश में तानाशाही का ख़ौफ़ फैला हुआ है और हर घर में उसका आतंक है, कोई घर में भी सरकार के ख़िलाफ़ नहीं हो सकता क्योंकि उन्हें पता है कि कल ही यह बात पुलिस तक पहुंच जाएगी।
इस बहरैनी महिला के पति में जेल में हैं और यातनाओं की वजह से उनकी हालत ठीक नहीं है। उनका कहना था कि जांच पड़ताल और जुर्म उगलवाने के ने अनेक तरह की यातनाएं दी गयीं क्योंकि मुझे आतंकवाद के निराधार आरोप के तहत गिरफ़्तार किया गया था,इसीलिए मुझ पर आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने की बात स्वीकार करने के लिए अनेक तरह के अत्याचार किए गये।
बहरैनी महिला कहना था कि इतना ज़्यादा मारा पीटा जाता है कि क़ैदी अपने को बेगुनाह साबित ही नहीं कर सकता और जेलर उसको उस जुर्म को स्वीकार करने पर मजबूर कर देते हैं जिसे उसने कभी किया ही न हो, अगर वह जुर्म स्वीकार करने में अनाकानी करता है तो फिर उसे भीषण यातनाओं के दौर से गुज़रना पड़ता है।
उनका कहना था कि मानसिक यातनाएं, शारीरिक यातनाओं से बदतर है, जेलर बहुत ही ख़तरनाक होते हैं और वह क़ैदियों को उनके बच्चों, पत्नी और माता पिता को जान से मारने तक की धमकी देते हैं और इस तरह जाली इक़बाले जुर्म करा लेते हैं और बंदियों को उनके परिवार वालों से मिलने जुलने नहीं देते हैं और काल कोठरी के हवाले कर देते हैं। उनका कहना था कि आले ख़लीफ़ा शासन की जेलें, क़ब्रिस्तान से कम हैं और कुछ समय के बाद बंदी मानसिक रोगों में ग्रस्त हो जाते हैं।