ईरान ने हमेशा कहा है कि क्षेत्र की सुरक्षा को न तो ख़रीदा जा सकता है और न बाहर से आयात किया जा सकता है। इसी तरह इलाक़े की सुरक्षा को बाहरी देशों के तत्वों के हवाले नहीं किया जा सकता जो ख़ुद ही अशांति व अस्थिरता का कारण हैं और क्षेत्र को अशांत व असुरक्षित रख कर पड़ोसी देशों की समरसता में बाधा डालना चाहते हैं और इस तरह अपनी उन साज़िशों को व्यवहारिक बनाना चाहते हैं जो पूरी तरह से क्षेत्रीय देशों व राष्ट्रों के हितों के विपरीत हैं। इलाक़ के कुछ देश, क्षेत्र की सुरक्षा के बारे में ईरान जैसी ही नीति रखते हैं। इन्हीं में से एक देश, इराक़ है जिसके रक्षा मंत्री जुमआ एनाद सादून एक उच्च स्तरीय सैन्य शिष्टमंडल के साथ तेहरान की यात्रा पर आए हैं। उन्होंने ईरान के सैन्य व राजनैतिक नेतृत्व से मुलाक़ातों में दोनों देशों के बीच सैन्य व प्रतिरक्षा सहयोग में विस्तार और इसी तरह दोनों राष्ट्रों की रक्षा को सुनिश्चित बनाने के बारे में वार्ताएं की हैं।
कहा जा सकता है कि इराक़ के रक्षा मंत्री का ईरान का दौरा, क्षेत्र की सुरक्षा को मज़बूत बनाने और अमरीका की आयातित सुरक्षा को रद्द करने की दिशा में एक क़दम है। अमरीका चाहता है कि काल्पनिक दुश्मनों, जाली संकटों और संगठित उपद्रवों के माध्यम से क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति का मार्ग समतल करना, क्षेत्रीय देशों के ख़ज़ाने ख़ाली करना, क्षेत्र को अपने हथियारों की बिक्री की मंडी में बदलना और ज़ायोनी शासन की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाना चाहता है। निश्चित रूप से इराक़ के रक्षा मंत्री की ईरान यात्रा और उनके द्वारा ईरान के हथियारों की तारीफ़ और इसी तरह इन हथियारों के इराक़ी सेना के लिए उपयुक्त होने और इराक़ी सेना को इन हथियारों की ज़रूरत होने पर बल, अमरीका के लिए अच्छी ख़बर नहीं होगी क्योंकि वह, क्षेत्र के देशों के बीच किसी भी तरह की समरसता को अपनी "आयातित सुरक्षा" के दफ़्न होने के समान समझता है। इसी तरह उसके हाथ से इस क्षेत्र में सैन्य उपस्थिति के सारे बहाने निकल जाएंगे और फिर वह ज़ायोनी शासन को, एक स्वाभाविक सरकार के रूप में क्षेत्र के देशों पर थोप नहीं सकेगा।
अमरीका अच्छी तरह जानता है कि ईरान व इराक़ की एकता, एकजुटता व समरसता के चलते उसके पास क्षेत्र से निकलने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा क्योंकि ये दोनों ही, क्षेत्र के अहम देश हैं और इसी कारण अमीरका में जो भी सरकार सत्ता में आई, विशेष कर ट्रम्प सरकार, उसने कोशिश की कि जिस तरह से भी संभव हो, ईरान व इराक़ के बीच एकजुटता व समरसता पैदा न होने दे। अमरीका ने इस लक्ष्य को साधने के लिए इराक़ी जनता के शांतिपूर्ण प्रदर्शनों में अपने पिट्ठू तत्वों को घुसाने, ईरान के वाणिज्य दूतावास पर हमले के लिए बासी तत्वों को इस्तेमाल करने और शहीद क़ासिम सुलैमानी व शहीद अबू महदी की हत्या तक सारे ही हथकंडे इस्तेमाल किए।
इराक़ के रक्षा मंत्री की ईरान यात्रा और ईरानी अधिकारियों की ओर से उनका व्यापक स्वागत, इस वास्तविकता का प्रमाण है कि दोनों देशों के संबंध इससे कहीं ज़्यादा मज़बूत हैं कि अमरीका की साज़िशों और बासी तत्वों व दाइशी आतंकियों से उन्हें नुक़सान पहुंचाया जा सके। ईरान व इराक़ के संबंधों की जड़े इतिहास की गहराइयों से जड़ पकड़ चुकी हैं। इसी तरह इस इलाक़े को, संसार के उस छोर से आए हुए सुरक्षा बलों की ज़रूरत नहीं है। ईरान व इराक़ समेत क्षेत्र के राष्ट्र हर किसी से बेहतर अपने इलाक़े की सुरक्षा के महत्व से अवगत हैं। ये राष्ट्र यही रहेंगे और अमरीकी व ग़ैर अमरीकी सभी विदेशियों को अंततः यहां से जाना ही होगा।