AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
गुरुवार

12 नवंबर 2020

12:14:55 pm
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सऊदी अरब के जिद्दा में ग़ैर मुस्लिमों के क़ब्रिस्तान में अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम में धमाका...गिरफ़तार कार्यकर्ताओं को छोड़ने पर रियाज़ सरकार का विचार..क्या यह बाइडन की धमकियों का असर है?

सऊदी अरब के पटल पर दो बड़ी घटनाएं हुई हैं जिनका गहरा असर आने वाले हफ़्तों में दिखाई देगा।

एक तो पश्चिमी शहर जिद्दा में ग़ैर मुस्लिमों के क़ब्रिस्तान में होने वाला धमाका है जिसके नतीजे में एक यूनानी डिपलोमैट और एक सऊदी सुरक्षा अधिकारी सहित कई लोग घायल हो गए। धमाका उस कार्यक्रम में हुआ जिसका आयोजन फ़्रांस के दूतावास ने पहले विश्व युद्ध की समाप्ति की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में किया था।

दूसरे लंदन में सऊदी अरब के राजदूत ख़ालिद बिन बंदर बिन सुलतान का बयान है जिसमें उन्होंने कहा कि सऊदी सरकार वर्ष 2018 से जेलों में बंद कार्यकर्ताओं की रिहाई पर विचार कर रही है जिनमें लजीन हज़लूल भी शामिल हैं जिनके नाम की चर्चा विश्व स्तर पर हो रही है। सऊदी अरब 21 और 22 नवम्बर को जी-20 के शिखर सम्मेलन की मेज़बानी से पहले यह काम करने जा रहा है क्योंकि कई देशों ने सऊदी अरब में मानवाधिकार की ख़राब स्थिति के कारण इस सम्मेलन में अपने प्रतिनिधित्व का स्तर घटा दिया है।

अगर हम पहली घटना की बात करें तो यह सऊदी सरकार के लिए गहरी चिंता की बात है क्योंकि कई साल से सऊदी अरब में इस प्रकार की कोई घटना नहीं हुई है। इससे पता चलता है कि कुछ विध्वंसकारी तत्व सऊदी सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगाने में कामयाब हो गए। इस समारोह में चूंकि डिपलोमैट शामिल हुए थे इसलिए ज़ाहिर है कि इसके लिए बड़े पैमाने पर सुरक्षा इंतेज़ाम किए गए थे। इस घटना के बाद कई देशों के दूतावासों ने अपने अपने देशों के नागरिकों के लिए चेतावनी जारी की है कि अलक़ायदा या दाइश जैसे वहाबी आतंकी इसी तरह की कार्यवाहियां कर सकते हैं।

दूसरी घटना का जहां तक सवाल है तो सऊदी राजदूत ने जो कुछ कहा है उससे पता चलता है कि सऊदी अरब अब यह मानने पर मजबूर हो गया है कि कार्यकर्ताओं की गिरफ़तारियों सहित कई मामलों की वजह से उसकी साख दुनिया भर में ख़राब हो रही है।

सऊदी अरब को इस विषय को लेकर अब और गहरी चिंता इसलिए हो गई है कि अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनल्ड ट्रम्प की हार हो गई है जो मुहम्मद बिन सलमान की हर सही या ग़लत नीति का डटकर बचाव करते थे। निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन कह चुके हैं कि वह सऊदी अरब के साथ संबंधों पर मानवधिकार के मुद्दों के दृष्टिगत पुनरविचार करेंगे। बाइडन ट्रम्प की ओर से बिन सलमान के निरंकुश समर्थन की आलोचना कर चुके हैं और यह भी कह चुके हैं कि पत्रकार जमाल ख़ाशुक़जी हत्याकांड में वह न्याय दिलाने की भरपूर कोशिश करेंगे।

सऊदी अरब को सबसे ज़्यादा चिंता इस बात की है कि नए राष्ट्रपति ईरान के साथ किए गए परमाणु समझौते में दोबारा लौटना चाहते हैं और ईरान पर लगे प्रतिबंध हटाने की कोशिश करेंगे और ईरान की सील कर दी गई संपत्ति आज़ाद कर देंगे तो इसका फ़ायदा ईरान और उसके घटकों को होगा। यानी लेबनान का हिज़्बुल्लाह आंदोलन, यमन का अंसारुल्लाह आंदोलन और इराक़ की हश्दुश्शअबी फ़ोर्स सब तेज़ी से मज़बूत होंगे।

कुछ लोग हो सकता है कि यह कहें कि सऊदी अरब एक क्षेत्रीय ताक़त है और जो बाइडन सरकार उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती क्योंकि ओबामा सरकार ने भी गहरे मतभेदों के बावजूद सऊदी अरब के साथ 115 अरब डालर के 42 सौदे किए थे। लेकिन यह तथ्य बिल्कुल सामने है कि अब अमरीका सऊदी अरब के तेल पर निर्भर नहीं है क्योंकि अब वह अपनी ज़रूरत भर ही नहीं बल्कि इससे ज़्यादा तेल का उत्पादन करने लगा है और तेल निर्यातक देश बन गया है। दूसरी बात यह है कि सऊदी अरब की तेल आमदनी आधी से भी कम हो गई है जिसके नतीजे में उसके सालाना बजट में 100 अरब डालर से अधिक का घाटा हो रहा है। कोरोना वायरस की महामारी ने हालात और भी ख़राब कर दिए हैं।

हमें यक़ीन है कि सऊदी राजदूत ने जो बयान दिया है वह बहुत सोच समझ कर दिया है और सऊदी सरकार विश्व भर में होने वाली बदनामी से परेशान होकर अपने स्टैंड से पीछे हट रही है। ख़ास तौर पर उसे जी-20 शिखर सम्मेलन को नाकाम होने से बचाना है। हालांकि बाद में राजदूत पर भारी दबाव पड़ने के कारण इस बयान का खंडन किया गया मगर यह बात उन्होंने गार्डियन अख़बार को दिए गए इंटरव्यू में कही थी और गार्डियन अख़बार अपनी सटीक जानकारियों और पेशावराना कार्यशैली के लिए मशहूर है इसलिए यह संभव नहीं है कि उसने बेबुनियाद ख़बर छाप दी होगी।

अगर कार्यकर्ताओं की रिहाई होती है तो यह अच्छा क़दम होगा और यह अच्छे बदलाव की शुरूआत मानी जाएगी मगर इस तरह के क़दम के प्रभाव भी सीमित होंगे। सऊदी अरब के लिए ज़रूरी हो गया है कि अपनी नीतियों में बुनियादी बदलाव की दिशा में आगे बढ़े।

स्रोतः रायुल यौम