AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
शुक्रवार

9 अक्तूबर 2020

12:45:26 pm
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अरबईन से इतना डर क्यों?

आज बीस सफ़र, कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथियों की शहादत का चालीसवां दिन है।

लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने अरबईन के उपलक्ष्य में अपने भाषण में कहा कि यह कार्यक्रम इतिहास में हमेशा रहा है लेकिन समकालीन दौर में सद्दाम शासन अरबईन के कार्यक्रम को रोकती थी और शियों को इमाम हुसैन की पैदल ज़ियारत नहीं करने देती थी, यहां तक कि कभी कभी वह इमाम हुसैन के ज़ायरीन को लक्ष्य बनाने के लिए विमानों व हेलीकाॅप्टरों का  भी इस्तेमाल करती थी। सवाल यह है कि क्यों कुछ शासक और शक्तियां इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अरबईन से डरती हैं? इस सवाल के कई जवाब में कई कारण बयान किए जा सकते हैं।

 

पहला कारण इमाम हुसैन के अरबईन का धार्मिक आयाम है। यह शियों से संबंधित एक कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम में कर्बला की महान घटना के नायकों को श्रद्धांजली दी जाती है। इस्लाम को बचाने और अधर्मी शासक से धर्म को सुरक्षित रखने के लिए इमाम हुसैन उठ खड़े हुए थे। कर्बला की घटना का सबसे बड़ा प्रभाव यह था कि उसने मिथ्याचारियों के मुंह से नक़ाब खींच ली थी और राजशाही को धर्म से अलग कर दिया था। वास्तव में बनी उमय्या के शासक, धर्म के मूल सिद्धांतों का पालन किए बिना अपने शासन के लिए धर्म को एक साधन के रूप में इस्तेमाल करना चाहते थे।

 

आज की दुनिया में आले सऊद, इस्लामी जगत के नेतृत्व का दावेदार है और अपने आपको मक्के व मदीने के पवित्र स्थलों का सेवक कहता है लेकिन व्यवहारिक रूप से वह एक इस्लामी देश यानी यमन पर लगभग छः साल से हमले कर रहा है, जिसमें लाखों लोग मारे जा चुके हैं। सऊदी अरब दुनिया के सामने जो इस्लाम पेश कर रहा है वह पूरी तरह से खोखला है और इस्लाम के वास्तविक सिद्धांतों से उसका कोई लेना देना नहीं है। इसके मुक़ाबले में इमाम हुसैन का अरबईन सच्चे इस्लाम का एक स्पष्ट उदाहरण है जो बिना किसी सीमा के मानवता प्रेम, शांति और मानव प्रतिष्ठा पर बल देता है। इस आधार पर अरबईन, पश्चिम समर्थित कथित इस्लाम से पूरी तरह भिन्न है और यही कारण है कि विरोधी अरबईन के मिलियन मार्च से डरते हैं।

 

अरबईन से भय का दूसरा कारण यह है कि यह कार्यक्रम, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन की राजनैतिक पहचान को ज़िंदा रखे हुए है। इमाम हुसैन के आशूरा आंदोलन के अनेक आयाम थे जिनमें से राजनैतिक पहलू काफ़ी मज़बूत है। अत्याचार के ख़िलाफ़ उठ खड़ा होना, इमाम हुसैन के आशूरा आंदोलन का एक अहम संदेश है। यज़ीद की कई हज़ार की सेना के मुक़ाबले में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के 72 साथी जानते थे कि वे शहीद हो जाएंगे लेकिन उन्होंने यज़ीदियों के मुक़ाबले में इमाम हुसैन के तर्क का पालन किया। आशूरा की संस्कृति प्रतिरोध की भावना को मज़बूत बनाती है। इसी संस्कृति ने ईरान पर थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध में प्रतिरोध को मज़बूत बनाया था। इसी संस्कृति ने हिज़्बुल्लाह को लेबनान में जिताया है और यही संस्कृति है जिसने पूरे क्षेत्र में प्रतिरोध को गौरवान्वित किया है।

 

आज क्षेत्र में प्रतिरोध के विरोधी देख रहे हैं कि प्रतिरोध का मोर्चा मज़बूत हो गया है और शक्ति का संतुलन इस मोर्चे के पक्ष में मुड़ चुका है। उनका मानना है कि यह स्थिति सबसे ज़्यादा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आशूरा आंदोलन की शिक्षाओं व संदेशों से प्रेरित है। यही कारण है कि वे अरबईन को कमज़ोर बनाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।