इराक़ी सरकार, अमरीका और युरोपीय संघ की सरकारों को बगदाद में अपने दूतावासों को बंद करने के फैसले को बदलने पर तैयार करने की कोशिश कर रही है। अमरीका ने यह फैसला, बगदाद में अपने दूतावास राकेटों से किये गये हमलों के बाद लिया है।
टीकाकारों का कहना है कि अगर अलकाज़मी की सरकार, अपने देश में विदेशी कूटनैतिक कार्यालयों और संस्थापों को राकेट हमलों से नहीं बचा पायी तो एक त्रासदी पूर्ण भविष्य, इराक़ का इंतेज़ार कर रहा है।
इस सिलसिले में इराक़ी सांसद, मुस्ना अमीन ने एक बातचीत में कहा है कि अगर इराक़, कूटनयिक संस्थानों की सुरक्षा के अपने वादे का पालन नहीं कर पाएगा तो विश्व समुदाय इराक़ को एक हिंसक देश के रूप मे देखेगी और उसके खिलाफ कार्यवाही करेगी। उनका मानना है कि इराक़ आर्थिक क्षेत्र में बेहद खतरनाक मोड़ पर है और इसी तरह इस देश की राजनीतिक व सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी बढ़ रही हैं और अब डर इस बात का है कि इराक़ में हंगामा न हो जाए जो अन्त में गृहयुद्ध में बदल जाए।
इस इराक़ी सांसद ने कहा कि इराक़ सातवें अनुच्छेद के अंतर्गत और विश्व समुदाय की निगरानी में भी जा सकता है इस लिए सरकार को चाहिए कि जितनी जल्दी सभंव हो, राकेट हमले बंद करवाए।
यह ऐसी दशा में है कि जब इराक़ के विधि विशेषर, अली अत्तमीमी ने भी अरबी-21 के साथ एक वार्ता में कहा कि सन 1961 में वियना समझौते के अनुसार , दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों की सुरक्षा इराक़ का कर्तव्य है और इराक़ ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
अत्तमीमी का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार, जब अतंरराष्ट्रीय समझौते को नुकसान पहुंचता है तो ज़िम्मेदार देश पर प्रतिबंध का खतरा मंडलाने लगता है इसके अलावा समझौते के अनुसार, दूतावास, उस देश का एक हिस्सा समझा जाता है जहां का वह दूतावास होता है और दूतावास पर हमले का मतलब, उस देश पर हमला होता है।
इस बारे में अत्तफकीर राजनीतिक अध्ययन केन्द्र के प्रमुख एहसान अश्शेमरी ने ट्वीट किया कि कूटनयिकों के इराक़ से निकलने के बाद, सरकार को हटाने के लिए अंतररष्ट्रीय हस्तक्षेप, सब से मज़बूत विकल्प होगा।
इराक़ को दोबारा सातवें अनुच्छेद के तहत दर्ज किये जाने के बारे में अत्तमीमी ने अरबी-21 को बताया कि इसका अर्थ यह होगा कि इराक़ का संचालन अंतरराष्ट्रीय देख - रेख में होगा और उसकी सप्रंभुता अधूरी होगी मतलब वैसा ही होगा जैसा इराक़ पर पॉल ब्रेमर के शासन के काल में था। उस वक्त भी हालात यही थे।
वह आगे कहते हैं कि सुरक्षा परिषद भी अंतरराष्ट्रीय सेना को इराक़ भेज सकती है जो वहां जाकर सैन्य कार्यवाही करेंगे क्योंकि इन हालात में इराक़ एक ऐसा देश बन जाएगा जो अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा के लिए खतरा समझा जाएगा।
वे कहते हैं कि अगर इराक़ अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण में चला गया तो इससे वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था पूरी तरह से बिखर जाएगी क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी तरफ से एक शासक का निर्धारण करेगा जो इराक़ का प्रशासन संभालेगा और चुनाव का आयोजन कराएगा।
अत्तमीमी कहते हैं कि इराक़ में कूटनियकों पर हमले का मकसद इस देश की अर्थ व्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाना है जो संवेदनशील स्थिति में है। अस्ल में इराक में आने वाला हर डालर अमरीकी चैनल से गुज़रता है इस लिए इराक की करैन्सी बुरी तरह से गिर जाएगी जैसा कि लेबनान और ईरान की गिरी है।
अत्तमीमी कहते हैं कि इराक़ की सरकार और वहां के राजनेताओं को अच्छी तरह से मालूम है कि राकेट हमलों की वजह से इस देश से कूटनयिकों की वापसी का इराक़ के लिए भयानक परिणाम निकलेगा यही वजह है कि सरकार हमला करने वालों को गिरफ्तार करना ज़रूरी समझती है क्योंकि इराक़ से कूटनियकों की वापसी के साथ ही इराक़ में आर्थिक व सुरक्षा संकट और अराजकता की उल्टी गिनती शुरु हो जाएगी।
यह ऐसी दशा में है कि जब अभी बुधवार को 25 देशों के राजदूतों के साथ एक बैठक में इराक़ी प्रधानमंत्री अलकाज़मी ने विदेशी कूटनयिकों की सुरक्षा का आश्वासन दिया और इसे सरकार का कर्तव्य बताया। उन्होंने बल दिया है कि इराक़ के लंबे समय से चल रही कठिन परिस्थितियों से निकालने के लिए ही वह सत्ता में आए हैं। उन्होंने कहा कि कूटनयिकों पर हमलों का मक़सद, सरकार को कमज़ोर करना, देश की मुख्य चुनौतियों से ध्यान हटाना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इराक़ को अलग थलग करना है।