AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
सोमवार

17 अगस्त 2020

1:38:09 pm
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यह कहां से कहां आ गए, अरब संघ की निष्क्रियता ने पूरे अरब समाज को किया शर्मसार!

इतिहास के शर्मनाक समझौतों में से एक इस्राईल और मिस्र के बीच होने वाला कैम्प डेविड समझौता, जिसके बाद अरब संघ ने मिस्र को संघ से निकाल दिया था और इस संघ का मुख्यालय क़ाहिरा से ट्यूनीशिया स्थानांतरित कर दिया गया। लेकिन दूसरी ओर कुछ ही दिन पहले संयुक्त अरब इमारात और इस्राईल के बीच हुए वैसे ही समझौते पर अरब संघ केवल न पूरी तरह चुप्पी साधे हुए है बल्कि इस संघ की बैठक में इस विषय पर किसी भी तरह की कोई बात तक नहीं हुई।

22 मार्च 1945 को अरब संघ का गठन किया गया था और इसका मुख्य उद्देश्य अरब देशों के हितों की रक्षा बताया गया था। इस संघ के बुनियादी सिद्धांतों में इस बात का उल्लेख किया गया था कि यह संघ अरब सरकारों के बीच समन्वय स्थापित करने के साथ-साथ राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग के विस्तार में काम करेगा। इस संघ के गठन के मुख्य सिद्धांतों में से एक महत्वपूर्ण सिद्धांत पर भी जोर यह था कि अरब देशों को विदेशी वर्चस्व से मुक्ति दिलाई जाएगी और सभी अरब देशों के सदस्यों के बीच एकता स्थापित की जाएगी। साथ ही इस संघ के गठन का एक उद्देश्य यह भी था कि विदेश नीति के अंतर्गत इस संघ के सभी सदस्य फ़िलिस्तीन मुद्दे पर एकजुटता के साथ उसके समर्थन में किसी भी तरह की ढिलाई नहीं करेंगे। साथ ही इस संघ के सदस्यों का यह विश्वास था कि बैतुल मुक़द्दस को फ़िलिस्तीन की राजधानी मानते हुए इस ज़मीन को पवित्र स्थान के तौर पर माना जाएगा। अपने गठन के समय अरब संघ के सभी सदस्यों का यह विश्वास था कि वे ज़ायोनी शासन के मुक़ाबले में फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की आकांक्षाओं की पूरी तरह रक्षा करेंगे। यही कारण है कि इस संघ के गठन के आरंभिक दिनों में जो भी अरब संघ के सिद्धांतों से अलग कोई कार्य या फ़ैसला करता था तो यह संघ ग़लती करने वाले सदस्य देश या सरकार के ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही करता था।

इसका इतिहासिक उदाहरण हमे कैम्प डेविड समझौते के समय देखने को मिला था, जब मिस्र ने एक शर्मनाक समझौते के तहत इस्राईल के साथ हाथ मिलाया था, तो उस समय अरब संघ ने कड़ा फ़ैसला करते हुए मिस्र को इस संघ से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। साथ ही मिस्र की राजधानी क़ाहिरा में मौजूद अरब संघ के मुख्यालय को भी ट्यूनीशिया स्थानांतरित कर दिया गया था। इसके बाद मिस्र ने लगातार यह प्रयास किया कि वह अरब संघ से अपने संबंधों का समान्य कर सके और फिर वर्ष 1980 के अंत में एक बार फिर मिस्र की अरब संघ में वापसी हुई और 31 अक्तूबर वर्ष 1990 में एक बार फिर इस संघ का मुख्यालय क़ाहिरा स्थानांतरित हो गया। अरब संघ द्वारा मिस्र के ख़िलाफ़ उठाए गए कड़े क़दम को देखते हुए यह उम्मीद की जा रही थी कि हाल के दिनों में संयुक्त अरब इमारात और इस्राईल के बीच हुए शर्मनाक समझौते के बाद एक बार फिर यह संघ कुछ वैसा ही कड़ा फ़ैसला लेगा और यूएई के विरुद्ध कोई कार्यवाही करेगा। लेकिन देखने को यह मिला की न केवल अरब संघ ने संयुक्त अरब इमारात के इस शर्मनाक कृत्य के ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं की बल्कि उसने पूरी तरह चुप्पी साधे रखी।

अरब संघ, जो अरब राष्ट्रवाद के दृष्टिकोणों और विचारों के आधार पर वजूद में आया था, इन दिनों इतना खंडित, विभाजित और आंतरिक तौर पर इतना ज़्यादा बंट गया है कि अब क्षेत्रीय मुद्दों और टकराव को समाप्त करने और उसे हल करने की इसमें क्षमता नहीं रह गई है। राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक़, अरब संघ के पास अब अंतर्राष्ट्रीय मामलों में सक्रिय और प्रभावशाली भूमिका नहीं निभाने की क्षमता नहीं बची है। इसका उदाहरण क्षेत्रीय समस्याओं और स्वयं सऊदी अरब और क़तर के बीच हुए टकराव को दृष्टिगत रखते हुए देखा जा सकता है। संयुक्त अरब इमारात और इस्राईल के बीच हुए शर्मनाक समझौते का न केवल अरब देशों ने विरोध किया बल्कि मिस्र, बहरैन और ओमान ने इस समझौते का स्वागत भी किया। लेकिन सऊदी अरब सहित कुछ अन्य अरब देशों ने इस शर्मनाक समझौते पर चुप्पी साधने को प्राथमिकता दी। इसलिए यह कहा जा सकता है कि इस संघ की अब कोई विश्वसनीयता नहीं रह गई है। अब यह संघ केवल साम्रज्यवादी शक्तियों की कठपुतली बन कर रह गई है और यह कारण है कि क्षेत्र और देशों की समस्या हल करने के बजाए इस संघ के सदस्य युद्ध की ओर बढ़ते दिख रहे होते हैं जिसकी वजह से आज पश्चिमी एशिया में अशांति और अस्थिरता का बोल बाला है।