लेबनान के अलअखबार समाचार पत्र ने लिखा है कि हसान दयाब के त्यागपत्र के बाद, फ्रांस के विदेशमंत्रालय ने लेबनान में पहली प्राथमिकता, नयी सरकार का गठन बताया है लेकिन इसके साथ ही बल दिया है कि लेबनान, सुधार के बिना विनाश की ओर बढ़ेगा। फ्रांस के बयान में जो बातें कही गयी हैं उनके मद्दे नज़र लेबनान में मीडिया का ख्याल है कि फ्रांस लेबनान में राष्ट्रीय सरकार के गठन का इच्छुक नहीं है बल्कि अमरीका और सऊदी अरब के साथ मिल कर लेबनान में एसी सरकार चाहता है जिसे यह तीनों देश, “ निष्पक्ष “ कह सकें। सऊदी अरब के निकटवर्ती एक सूत्र यह भी कहना है कि वर्तमान परिस्थितियों में राष्ट्रीय एकता पर आधारित सरकार के बारे में बात भी करना सही नहीं क्योंकि इस प्रकार की सरकार, एक अन्य क्रांति का कारण बन सकती है।
पश्चिम और सऊदी अरब के संबंधित गलियारों की ओर से यह प्रोपगंडा किया जा रहा है कि लेबनान की वर्तमान समस्या, हिज़्बुल्लाह का वर्चस्व और राष्ट्रपति मिशल औन द्वारा उसका समर्थन है।
अलअलखबार ने लिखा है कि फ्रासं, अमरीका और सऊदी अरब, हेग न्यायालय के जज नोवाफ सलाम को अपनी मद्दे नज़र निष्पक्ष सरकार का प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं। वैसे लेबनान में सरकार का गठन तत्काल होना ज़रूरी है क्योंकि लेबनान इस स्थिति में नहीं है कि वह राजनीतिक शून्य को सहन कर सके। सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रपति मिशल औन और जेबरान बासिल को नोवाफ सलाम के नाम पर आपत्ति नहीं है और हिज़्बुल्लाह तथा संसद सभापति नबीह बेर्री का रुख नोवाफ सलाम के नाम पर अभी स्पष्ट नहीं है।
अलअखबार के अनुसार, वर्तमान परिस्थितियों में लेबनान में कई विकल्प के बारे में सोचा जा रहा है।
एक तो यह है कि समय से पहले संसदीय चुनाव का आयोजन हो जाए लेकिन इस सुझाव को लागू करना बेहद कठिन है क्योंकि इसकी राह में बहुत सी समस्याएं हैं जिनमें सब से बड़ी समस्या, नये चुनावी कानून पर आम सहमति बनाना है जो कई बरसों से लेबनना के लिए एक विकराल समस्या बन चुका है। इसके अलावा भी लेबनान की जो स्थिति है उसमें सत्ता में शामिल बहुत से दलों को अपना जनाधार कम होने की आशकां है इस लिए भी वह फिर से संसदीय चुनाव पर तैयार नहीं होंगे।
दूसरा रास्ता यह है कि एक नयी सरकार बनायी जाए जिसका ढांचा भी नया हो लेकिन इसमें समस्या यह है कि वर्तमान परिस्थितियों में सरकार का ढांचा बदलना असंभव है। वैसे सअद हरीरी सरकार के त्यागपत्र के बाद पैदा होने वाली समस्याओं की वजह से नयी सरकार बनाना भी इतना आसान नहीं होगा खास कर अब जब बैरुत धमाके के बाद दबाव इतना अधिक हो गया है और अरब देशों ने लेबनान पर अपना रुख भी पूरी तरह से साफ नहीं किया है।
इन सब हालात में यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि फ्रांस ने लेबनान के लिए एसी योजना तैयार की है जिसमें लेबनान की सरकार के भीतर शक्ति के संतुलन को फिर से बनाने और लेबनान में अमरीका के दुश्मनों को कमज़ोर करने की अमरीकी रणनीति के हिसाब से काम किया गया है। अमरीका, फ्रासं और सऊदी अरब लेबनान के वर्तमान हालात को, हिज़्बुल्लाह पर दबाव डालने के लिए बेहतर समझ रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या अमरीका में इतनी ताक़त है कि वह वर्तमान परिस्थितियों में हिज़्बुल्लाह को लेबनान की सत्ता से बेदखल कर सके? दूसरा सवाल यह है कि एसे हालात में जब प्रदर्शनकारी, सअद हरीरी की सत्ता में वापसी को असंभव बना रहे हैं, लेबनान के प्रधानमंत्री पद के लिए किसका नाम पेश किया जाता है?
लेबनान में बैरुत धमाके ने एक बड़ी राष्ट्रीय त्रासदी पैदा कर दी है, लेबनान कराह रहा है लेकिन पश्चिमी देश और सऊदी अरब, लेबनान के बारे में सोचने के बजाए, इस देश की सत्ता से हिज़्बुल्लाह को बेदखल करने की योजना बना रहे हैं ताकि इस्राईल को सुरक्षित किया जा सके। यही वजह है कि बहुत से हल्कों में यह कहा जा रहा है कि बैरुत धमाके के पीछे, इस्राईल का हाथ हो सकता है क्योंकि धमाकों के बाद जो कुछ हो रहा है और जो कुछ किया जा रहा है उन सब से इस्राईल को ही फायदा पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। फ्रासं, अमरीका और सऊदी अरब की तिकड़ी, लेबनान को इस्राईल के लिए सुरक्षित ठिकाना बनाने की साज़िश में व्यस्त है लेकिन क्या लेबनानियों में हिज़्बुल्लाह की लोकप्रियता उनकी साज़िश को नाकाम बना देगी?