AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
रविवार

12 जुलाई 2020

3:35:19 pm
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इस्राईल का अरब देशों को हैरान करने वाला सुझाव... अमरीका पर अरब देश क्यों भरोसा नहीं कर सकते? जानें इस्राईल का नज़रिया

लंदन से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र ने इस्राईल में हुए एक अध्ययन की दिलचस्प रिपोर्ट प्रकाशित की है।

इस्राईल में राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन केन्द्र द्वारा किये गये एक शोध में में बताया गया है कि फार्स की खाड़ी के देशों को क्षेत्र के प्रति अमरीकी लापरवाही और सऊदी अरब के साथ उसके संबंधों तनाव से जो एक बड़ा पाठ मिलता है वह यह है कि सारे अंडे एक ही बास्केट में रखना बेहद खतरनाक हो सकता है लेकिन इन हालात में भी अमरीका की इस क्षेत्र में हथियार बेचने वाला सब से बड़ा देश बना हुआ है।

     इस्राईली अध्ययन में बताया गया है कि हथियारों के आयात के लिए सऊदी अरब अमरीका पर ही सब से अधिक ध्यान देता है लेकिन इससे चीन के लिए अवसर समाप्त नहीं होते क्योंकि अमरीका के इन्कार के बाद चीन ड्रोन विमानों के उत्पादन में सऊदी अरब के साथ सहयोग कर रहा है ।

     चीन की ही तरह रूस भी सऊदी अरब को एस-400 एन्टी मिसाइल सिस्टम खरीदने पर तैयार कर रहा था लेकिन जब सऊदी अरब ने यह देखा कि अमरीका, रूस से एस-400 खरीदने की वजह से तुर्की के साथ एफ-35 युद्धक विमान का सौदा ही रद्द करना चाह रहा है तो वह रूस से एन्टी मिसाइल खरीदने में असंमजस का शिकार हो गया।

     इसके साथ ही रूस और सऊदी अरब के सहयोग में बड़ी बाधा उस समय नज़र आयी जब अप्रैल में तेल का युद्ध शुरु हुआ जिसकी वजह से तेल के बाज़ार में एसी गिरावट आयी जिसका सही हो

 लेकिन इस्राईल, चीन और रूस की तरह और अमरीका के विपरीत, हथियारों के व्यापार को मानवाधिकार और अंतरराष्ट्रीय नियमों से संबंध नहीं मानता। इस्राईल, ईरान के साथ विशेष संबंध रखने वाले  अपने प्रतिस्पर्धी चीन और रूस की तुलना में विशिष्टता रखता है क्योंकि इस्राईल, ईरान के खतरे की वजह से सऊदी अरब और यूएई के साथ सहयोग करता है और इस बात में कोई शक नहीं है कि सऊदी अरब और यूएई ईरान पर अधिकतम दबाव की अमरीकी नीति के प्रभावो का जायज़ा ले रहे हैं लेकिन समस्या यह है कि अमरीका के अधिकतम दबाव का असर दो वर्षों के बाद भी कोई खास नज़र नहीं आ रहा है।

इस्राईल में राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन केन्द्र द्वारा किये गये शोध में बताया गया है कि यह एक सच्चाई है कि अमरीका ने यह साबित कर दिया है कि वह एसा घटक है जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता जिसकी वजह से फार्स की खाड़ी के यूएई और अन्य छोटे देशों की यह समझ में आ गया कि उन्हें ईरान से भी सपंर्क रखना चाहिए ताकि भविष्य में अमरीका और ईरान के मध्य किसी भी सैन्य टकराव की दशा में उनके हित सुरक्षित रहें।

क्षेत्र के अरब देशों में अमरीका से भरोसा उस समय और उठ गया जब वह सऊदी अरब के तेल प्रतिष्ठानों पर ईरान के कथित हमले का कोई जवाब देने में विफल रहा, इसी तरह यूएई के तट पर तेलवाहक जहाज़ो पर हमले का भी कोई जवाब नही दिया गया। फार्स की खाड़ी के देशों का अपने ऊपर विश्वास बहाल करने के लिए अमरीका ने पेट्रियोट एन्टी मिसाइल सिस्टम सऊदी अरब भेजा जिनमे से दो बैटरियां हालिया दिनों में वापस मंगवा ली।

इस्राईल में राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन केन्द्र द्वारा किये गये शोध में बताया गया है कि जब अमरीका ने ईरान के जनरल क़ासिम सुलैमानी की हत्या की तो इस कार्यवाही पर फार्स की खाड़ी के देशों ने खास तौर पर खुशी मनायी लेकिन इसके साथ ही उन्हें इलाक़े में युद्ध की आग भड़कने का खतरा भी सता रहा था।

इस्राईल में होने वाले इस अध्ययन के अनुसार फार्स की खाड़ी के देशों के लिए इस्राईल के साथ संबंध आज भी संवेदनशील मुद्दा है और अरब देशों के साथ इस्राईल के सहयोग की एक सीमा है लेकिन अरब देशों को यह लगता है कि इस्राईल सीरिया में ईरान का मुक़ाबला कर सकता है और उसके परमाणु कार्यक्रम को नुकसान पहुंचा सकता है लेकिन अरब देशों का जनमत, इस्राईल के साथ अरब सरकारों के संबंधों में विस्तार की राह की बड़ी रुकावट है क्योंकि अरब देशों की जनता में फिलिस्तीनियों का भारी समर्थन है और तेल की क़ीमत में कमी और आर्थिक समस्याओं की वजह से बहुत सी सेवाएं प्रदान करने में असर्मथ अरब सरकारें अपने देश की जनता को नाराज़ करने का खतरा मोल नहीं लेना चाहतीं। 

ना फिलहाल नज़र नहीं आता।