AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
शनिवार

11 जुलाई 2020

1:36:52 pm
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इस्राईली अध्ययनः सऊदी अरब, इमारात और इस्राईल बड़ी मेहनत से ईरान के ख़िलाफ़ कठोर अमरीकी प्रतिबंधों का समर्थन कर रहे हैं लेकिन दो साल से इस रणनीति का कोई नतीजा नहीं निकला!

इस्राईल में राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन केन्द्र ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें यह कहा गया है कि फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों को अमरीका की रणनीति देखकर यह पाठ मिला है कि अपनी क़िस्मत अमरीका के हाथ में सौंप देना बड़ी भयानक ग़लती थी।

मगर यह भी सत्य है कि इतना सब कुछ हो जाने के बावजूद इन देशों को अब भी अमरीका सबसे ज़्यादा हथियार बेच रहा है। यानी अमरीका अपने व्यापारिक हितों को सुरक्षित रखने में सफल है।

मगर इस बीच चीन ने भी सऊदी अरब के बाज़ार में सेंध लगा ली। अमरीका ने सऊदी अरब को एमक्यू-9 ड्रोन विमान बेचने से इंकार किया तो चीन ने मौक़े का फ़ायदा उठाते हुए ड्रोन विमानों के निर्माण में सऊदी अरब की मदद शुरू कर दी।

चीन की तरह रूस भी अब सऊदी अरब को अपना एस-400 एयर डिफ़ेन्स सिस्टम ख़रीदने के लिए तैयार कर रहा है मगर अमरीका ने एस-400 ख़रीदने के मामले में तुर्की के ख़िलाफ़ जिस प्रकार के कठोर क़दम उठाए उन्हें देखते हुए रियाज़ सरकार रूस के साथ इस सौदे से पीछे हट गई।

चीन और रूस की तरह इस्राईल भी सऊदी अरब को बहुत सारे उपकरण बेच रहा है मगर इस्राईल के साथ एक ख़ास बात यह है कि ईरान से उसके कोई संबंध नहीं है जबकि रूस और चीन के ईरान से बहुत अच्छे स्ट्रैटेजिक संबंध है। इस वजह से सऊदी सरकार का झुकाव इस्राईल की ओर काफ़ी ज़्यादा है।

सऊदी अरब और इमारात दोनों को लगता है कि ईरान पश्चिमी एशिया के इलाक़े में उनकी नीतियों के मार्ग की सबसे बड़ी रुकावट है इसलिए उन्होंने ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका के कड़े प्रतिबंधों का भरपूर समर्थन किया मगर सच्चाई यह है कि ईरान पर बहुत अधिक दबाव डालने की अमरीका की रणनीति पिछले दो साल में कोई नतीजा हासिल नहीं कर सकी।

इस अध्ययन में कहा गया है कि अमरीका ने अपने रवैए से साबित किया है कि वह भरोसेमंद घटक नहीं है यही वजह थी कि इमारात और फ़ार्स खाड़ी के दूसरे देशों ने ईरान से अपने रिश्ते बढ़ा लिए ताकि वह ईरान और अमरीका के बीच टकराव में पिस न जाएं।

स्रोतः रायुल यौम