AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
शुक्रवार

26 जून 2020

1:37:54 pm
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जब हिज़्बुल्लाह क्षेत्रीय ताक़त बन गया, ग़ज़्ज़ा पट्टी ताक़तवर हो गई, तालेबान से वार्ता पर अमरीका मजबूर हो गया, ईरान बहुत बड़ी शक्ति बन गया तो फिर अमरीकी प्रतिबंध मज़ाक़ नहीं तो क्या हैं?!

अमरीका ने पहले तो ईरान के उन पांच तेल टैंकरों के कपतानों पर प्रतिबंध लगाए जो पेट्रोल और अन्य पेट्रोकेमिकल पदार्थ लेकर वेनेज़ोएला गए थे और इसके एक दिन बाद अमरीका ने स्टील, सीसा और अन्य खदानों के क्षेत्रों में काम करने वाली आठ कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिए।

इन प्रतिबंधों में कुछ नया नहीं है जो अधिकतर बल्कि सारे ही पर्यवेक्षकों की नज़र में अब मज़ाक़ बनकर रह गए हैं। अब तो ईरान में शायद ही कोई कंपनी बची होगी जिस पर अमरीका का प्रतिबंध न लगा हो। सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई से लेकर विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ तक सारे ही अधिकारियों को प्रतिबंध का निशाना बना गया है लेकिन मज़े की बात तो यह है कि ईरानी प्रशासन इन प्रतिबंधों के कारण उद्योग, खाद्य पदार्थ और रक्षा के क्षेत्रों में आत्म निर्भर बन गया। यही नहीं अब तो दुनिया के दूसरे सिरे पर स्थित देश वेनेज़ोएला को पेट्रोल का निर्यात भी कर रह है।

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हो सकता है कि कोई यह बहस करे कि इन प्रतिबंधों की वजह से ईरान में गंभीर आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हो गईं और ईरानी करेंसी की क़ीमत बहुत गिर गई और यह सही भी है लेकिन जो ईरान के दुशमन और अमरीका के दोस्त हैं उन में भी अधिकतर इसी संकट में फंसे हुए हैं और आने वाले दिनों में उनका संकट और भी गंभीर रूप ले सकता है। क्योंकि तेल और गैस की क़ीमतें गिर गई हैं और इनमें कई देश हैं वह हैं जो युद्धों में फंसे हुए हैं।

हमने 1996 के आख़िर में अफ़ग़ानिस्तान की यात्रा की थी क्योंकि हमें अलक़ायदा के प्रमुख ओसामा बिन लादेन से मुलाक़ात करनी थी। उस समय तालेबान की सरकार थी और देश में अफ़रा तफ़री जैसे हालात थे। अमरीका ने प्रतिबंध लगा रखे थे और स्थानीय करेंसी का मूल्य बहुत गिर गया था। डालर दीजिए तो उसके बदले में आपको इतनी अफ़ग़ानी करेंसी मिल जाती थी कि उसे रखने के लिए थैले की ज़रूरत थी। हालत यह हो गई कि इस करेंसी से व्यापार ही रोक दिया गया। बाज़ारों में सामान के बदले सामान का लेन देन शुरू हो गया। यानी जैसे अगर आपको मुर्गी लेनी है तो मिसाल के तौर पर उसके बदले आप एक किलो शकर दीजिए। मगर आज तालेबान अमरीका से लड़ते लड़ते मज़बूत स्थिति में पहुंच गए हैं। इस समय अफ़ग़ानिस्तान के दो तिहाई हिस्से पर तालेबान का क़ब्ज़ा है। वह अमरीका से बात कर रहे हैं और किसी तरह की कोई छूट देने के लिए तैयार नहीं हैं। अमरीका की हालत यह है कि वह अफ़ग़ानिस्तान में बड़े पैमाने पर अपना पैसा बर्बाद कर चुका है और हज़ारों सैनिकों को गवां चुका है।

अमरीका ने जो प्रतिबंध लगाए हैं उनसे ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई को क्या नुक़सान पहुंचेगा जिन्होंने तीस साल से ईरान के बाहर का कोई दौरा नहीं किया और ईरान के भीतर या बाहर किसी एकाउंट में उनका एक भी डालर नहीं है। अमरीकी प्रतिबंध विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ का क्या बिगाड़ लेंगे जिनकी मुसकुराहट अब और भी गहरी हो गई है। अगर हिज़्बुल्लाह की बात करें तो अमरीकी प्रतिबंधों के बावजूद उसकी ताक़त बढ़ी ही नहीं बल्कि लगातार बढ़ती जा रही है। वह क्षेत्रीय ताक़त बन चुका है। हालत यह है कि अमरीका और इस्राईल भी अब उसकी ताक़त देखकर थर्राते हैं।

अमरीकी प्रतिबंधों ने ईरान को बड़ी क्षेत्रीय ताक़त में बदल दिया। आज ईरान के पास स्थानीय रूप से तैयार किए गए मिसाइलों, पनडुब्बियों और हर तरह के हथियारों का बड़ा भंडार है और हमलावर को मुंहतोड़ जवाब देने का मज़बूत इरादा है। इसका नतीजा यह है कि ईरानी तेल टैंकर अमरीका की नाक के नीचे स्थित वेनेज़ोएला पहुंचते हैं और अमरीका उनका रास्ता रोकने की हिम्मत नहीं कर पाता। अगर इस्राईल के बेगन स्टडीज़ सेंटर की शोध रिपोर्ट को सही माना जाए तो अमरीका की इस हालत की वजह ईरान के मिसाइलों का सटीक निशाना है। स्टडीज़ सेंटर का कहना है कि ईरान ने इराक़ में अमरीका की सैनिक छावनी एनुल असद पर मिसाइल बरसाए तो उनका निशाना इतना सटीक था कि उस इलेक्ट्रानिक सेंटर को उन्होंने ध्वस्त कर दिया जिससे ड्रोन विमानों को कंट्रोल किया जाता था और नतीजा यह हुआ कि कई घंटे तक ड्रोन विमान हवा में बिना गाइडेंस के उड़ते रहे। दूसरी ओर उन अरब राष्ट्रों और सरकारों की हालत पर एक नज़र डालिए जो अमरीका की गोद में बैठी हैं और जिन पर कोई प्रतिबंध नहीं लगा है।

हमें दूर जाने की ज़रूरत नहीं हम एक नज़र ग़ज़्ज़ा पट्टी पर डाल लें जिसकी दस साल से इस्राईल ने नाकाबंदी कर रखी है। यह छोटी सी ज़मीनी पट्टी अपने को इतना ताकतवर बना चुकी है कि उस पर कोई भी हमला करने से पहले इस्राईल को हज़ार बार सोचना पड़ता है क्योंकि यहां से फ़ायर होने वाले मिसाइल इस्राईलियों को दिनों नहीं हफ्तों तहख़ानों में क़ैद रहने पर मजबूर कर सकते हैं।

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अमरीकी प्रतिबंधों का अब कोई मूल्य नहीं रह गया है। बल्कि इसके उल्टे नतीजे निकलने लगे हैं। हम तो देख रहे हैं कि अमरीकी प्रतिबंधों के बाद कुछ देश बड़े ताक़तवर बन गए हैं, स्पेस में सैटेलाइट भेज रहे हैं, और अगर चाहें तो परमाणु हथियार बना सकते हैं।

अब्दुल बारी अतवान

अरब जगत के विख्यात लेखक व टीकाकार