AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
शुक्रवार

19 जून 2020

2:25:00 pm
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इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत का विशेष कार्यक्रम

17 रबीउल अव्वल सन 80 हिजरी क़मरी में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का जन्म पवित्र नगर मदीना में हुआ था।

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम आपके पिता थे जब इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ तो उस समय अब्दुल मलिक बिन मरवान का शासन था।

 इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इस्लाम धर्म के प्रचार- प्रसार के लिए बहुत अधिक काम किया है इस प्रकार से कि उन्हें शिया संप्रदाय के प्रमुख के रूप में याद किया जाता है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम और इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में बनी उमय्या और बनी अब्बास के बीच सत्ता की लड़ाई चल रही थी और दोनों के मध्य काफी राजनीतिक मतभेद थे और दोनों सरकारों का ध्यान राजनीतिक विवाद की ओर था और इस अवसर का लाठ उठाते हुए इमाम मोहम्मद बाक़िर और जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने धर्म के प्रचार- प्रसार के लिए अथक प्रयास किये। रिवायत में है कि इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्लाम ने उक शिक्षा केन्द्र स्थापित कर दिया था जिसे इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने विस्तृत रूप प्रदान कर दिया यहां तक कि कहा जाता है कि लगभग चार हज़ार धार्मिक छात्र विभिन्न क्षेत्रों से इमाम की सभाओं में भाग लेते और ज्ञान अर्जित करते थे।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में विभिन्न मत व संप्रदाय अस्तित्व में आ गये थे जिसकी वजह से समाज में काफी वैचारिक पथभ्रष्टता व गुमराही फैल गयी थी पर इमाम ने इन गुमराहियों का मुकाबला करने और विशुद्ध इस्लाम के प्रचार- प्रसार के लिए हज़ारों शिष्यों का प्रशिक्षण किया। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के बारे में ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली का मानना है कि इमाम के काल में एक सांस्कृतिक व वैचारिक आंदोलन अस्तित्व में आया और उस काल के विभिन्न धर्मों एवं मतों के लोग एक दूसरे से विचारों का आदान- प्रदान और शास्त्रार्थ करते थे। यह विशेष परिस्थिति थी क्योंकि इससे पहले बनी उमय्या का पूरा प्रयास यह था कि विशुद्ध इस्लाम की शिक्षाओं का प्रचार- प्रसार न हो। पैग़म्बरे इस्लाम और इमामों की हदीसों व कथनों को बयान न किया जाये परंतु इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में बनी उमय्या की सरकार कमज़ोर हो गयी थी जिसकी वजह से इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम महान शैक्षिक कार्य कर सके और उन्होंने इस्लाम के प्रचार- प्रसार के लिए कई हज़ार शिष्यों का प्रशिक्षण किया। हेशाम बिन हेकम, मुस्लिम सक़फी, हेशाम बिन सालिम, जाबिर बिन हय्यान और मुफज्जल बिन उमर कूफी जैसे लोगों की गणना इमाम के शिष्यों में होती है। इसी प्रकार सुन्नी मुसलमानों के जो चार संप्रदाय हैं उनमें हनफी संप्रदाय के प्रमुख अबू हनीफा भी इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शिष्यों में थे।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में मुसलमानों के मध्य ज्ञान अर्जित करने की विशेष जिज्ञासा उत्पन्न हो गयी थी और इमाम विभिन्न प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देते थे। इस प्रकार से कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने समय में पवित्र नगर मदीना में सबसे बड़ा शिक्षा केन्द्र स्थापित किया और मस्जिदे नबवी में स्वयं दर्स देते थे। पवित्र कुरआन की व्याख्या, कराअत, हदीस, गणित और दर्शनशास्त्र जैसे विषयों की शिक्षा उसमें दी जाती थी।

वास्तव में इमामों की पावन जीवनी में एक सबसे बड़ा सौभाग्य जो प्राप्त हुआ वह बहुत बड़े शिक्षा केन्द्र की स्थापना थी। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास से लेकर उस वक्त तक इतने बड़े शिक्षा केन्द्र की स्थापना नहीं हुई थी। अलबत्ता इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने जिस शिक्षा केन्द्र को विस्तृत किया उसकी आधार शिला उनके पिता इमाम मोहम्मद बाकिर अलैहिस्सलाम ने रखी थी।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के एक शिष्य का इब्ने अबी लैला है। वह कहते हैं एक दिन मैं नोअमान कूफी के साथ इमाम की सेवा में हाज़िर हुआ और इमाम ने मुझसे कहा कि यह कौन है? मैंने कहा कि इनका नाम नोअमान है और यह कूफा के रहने वाले हैं जो इल्मे कलाम अर्थात ईश्वर से संबंधित ज्ञान के बारे में दक्ष हैं। इस पर इमाम ने कहा कि क्या यह वही तो नहीं है जो विभिन्न चीज़ों की तुलना एक दूसरे से करता है? मैंने कहा हां यह वही है। इसके बाद इमाम ने कहा हे नोअमान क्या अपने सिर की तुलना अपने शरीर के दूसरे अंगो से कर सकते हो? नोअमान ने कहा नहीं। इमाम ने कहा क्या उस वाक्य को जानते हो जिसका आरंभ कुफ्र और अंत ईमान है? उसने कहा नहीं। उसके बाद इमाम ने पूछा कि क्या जो आंख का नमकीन पानी होता है और कान का जो कड़ुआ, लसदार व चिपचिपा तरल पदार्थ होता है और इसी प्रकार गले और मुंह के पानी के स्वादहीन होने के बारे में जानते हो? उसने कहा नहीं। इब्ने अबी लैला ने इमाम से कहा कि मैं आप पर न्यौछावर हो जाऊं आप इन प्रश्नों के उत्तर स्वयं दे दें। इसके बाद इमाम ने फरमाया ईश्वर ने इंसान की आंख को चर्बी से बनाया है और अगर आंख में यह नमकीन पानी न हो तो चर्बी जल्दी ख़राब हो जायेगी। उसकी दूसरी विशेषता यह है कि अगर कोई चीज़ आंख में चली जाती है तो आंख में जो नमकीन पानी है उसी के माध्यम से वह चीज़ खत्म हो जाती है और आंख को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। इसी तरह ईश्वर ने कान में कड़ुवाहट रखी है ताकि उसमें कीड़े मकोड़े न घुसें और इंसान के दिमाग़ में न जायें। इसी प्रकार इमाम ने फरमाया कि जो स्वादहीन थुक होता है वह चीज़ों के स्वाद को समझने का कारण बनता है और गले में जो आर्द्रता होती है उसकी सहायता से सीने का बलग़म निकल जाता है। इसके बाद इमाम ने फरमाया कि वह वाक्य जिसका आरंभ कुफ्र और अंत ईमान है वह ला एलाह इल्ललाह है। यानी कोई पूज्य नहीं है सिवाये ईश्वर के।

मिस्र में एक व्यक्ति रहता था उसका नाम अब्दुल मलिक था। चूंकि उसके बेटे का नाम अब्दुल्लाह था इसलिए उसे अबू अब्दिल्लाह के नाम से बुलाते थे। अब्दुल मलिक ईश्वर को नहीं मानता था और उसका मानना था कि यह ब्रह्मांड अपने आप अस्तित्व में आ गया है। उसने सुन रखा था कि शीयों के इमाम, इमाम जाफ़र सादिक़  अलैहिस्सलाम मदीना में रहते हैं तो वह मदीना आया। वह इस इरादे से मदीना आया था कि ईश्वर के अस्तित्व के बारे में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से शास्त्रार्थ करेगा। जब वह मदीना पहुंच गया तो इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के पास गया। हज का मौसम था इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम हज करने के लिए मक्का गये थे। वह मक्का रवाना हो गया। काबे के पास पहुंचा तो उसने देखा कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम काबे का तवाफ व परिक्रमा कर रहे हैं। वह भी परिक्रमा करने वालों की पंक्ति में शामिल हो गया। उसने द्वेष से भरे शब्दों में इमाम को कटाक्ष किया इमाम ने बहुत ही प्रेम से उससे पूछा कि तुम्हारा क्या नाम है? उसने कहा अब्दुल मलिक। यानी शासक का बंदा। उसके बाद इमाम ने पूछा तेरा उपनाम क्या है तो उसने कहा कि अब्दुल मलिक अबू अब्दिल्लाह यानी ईश्वर के बंदे का बाप। इस पर इमाम ने कहा जिस शासक के तुम बेटे हो वह आसमान शासक है या ज़मीन का? अब्दुल मलिक ने कुछ नहीं कहा। उस समय इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के एक मशहूर शिष्य हेशाम बिन हेकम वहां पर मौजूद थे। उन्होंने अब्दुल मलिक से कहा कि इमाम का जवाब क्यों नहीं देता? अब्दुल मलिक को हेशाम बिन हेकम की बात अच्छी नहीं लगी और उसके चेहरे का रंग बदल गया। इस पर इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने बड़े आराम से अब्दुल मलिक से कहा कि धैर्य कर मेरी परिक्रमा पूरी हो जाये उसके बाद मेरे पास आ उसके बाद दोनों बैठकर वार्ता करते हैं। जब इमाम का तवाफ़ पूरा हो गया तो अब्दुल मलिक उनके पास गया और उसके और इमाम के बीच शास्त्रार्थ इस प्रकार आरंभ हुआ। इमाम ने अब्दुल मलिक से पूछा क्या तू इस बात को स्वीकार करता है कि इस ज़मीन का ज़ाहिर और बातिन है? उसने कहा कि हां। फिर इमाम ने पूछा कि क्या तू ज़मीन के अंदर चला है जो जाने कि उसके अंदर क्या है? इस पर उसने कहा कि मुझे ज़मीन के अंदर का तो पता नहीं है परंतु मैं सोचता हूं कि ज़मीन के अंदर कुछ नहीं है। उसके बाद इमाम ने उससे कहा कि क्या आसमान पर गये हो? उसने कहा कि नहीं। इमाम ने कहा कि क्या जानते हो वहां क्या चीज़ है? इसके बाद इमाम ने कहा कि अजीब बात है कि तुम न पूरब गये न पश्चिम न ज़मीन के अंदर न आसमान पर गये कि जानो कि वहां क्या है। इतनी सारी अज्ञानता के बावजूद किस प्रकार ईश्वर का इंकार करते हो जबकि वहां मौजूद वस्तुओं के मध्य मौजूद कानून व्यवस्था ईश्वर के होने का प्रमाण हैं क्या कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति उस चीज़ का इंकार करता है जिसे वह नहीं जानता है? इस पर अब्दुल मलिक ने कहा कि अब तक किसी ने भी मुझसे इस प्रकार बात नहीं की थी और बातचीत में मुझ निरुत्तर कर दिया हो। इसके बाद इमाम ने फरमाया इस आधार पर तुम्हें संदेह है कि शायद आसमान के ऊपर कुछ हो? ज़मीन के अंदर कुछ हो? या न हो। इस प्रकार ईश्वर का इंकार करने वाला इंकार से संदेह की स्थिति में आ गया। जो नहीं जानता वह जानने वाले के लिए तर्क नहीं ला सकता। इसके बाद इमाम ने अब्दुल मलिक से कहा कि मुझसे सुन ले और याद कर ले हमें ईश्वर के बारे में लेशमात्र भी संदेह नहीं है क्या तू सूरज, चांद और रात- दिन को नहीं देखता कि एक नियत समय पर क्षितिज पर दिखाई देते हैं और अपनी निर्धारित कक्षा में घुमते हैं और लौट जाते हैं और अपने रास्ते पर लौटने के लिए वे बाध्य हैं अब तुझसे पूछते हैं कि अगर सूरज और चांद चलने में स्वतंत्र है तो वे क्यों लौट जाते हैं और अगर अपनी नियत कक्षा में चलने के लिए बाध्य नहीं हैं तो रात, दिन क्यों नहीं हो जाती और दिन रात क्यों नहीं हो जाता? इसके बाद इमाम ने कहा कि ईश्वर की सौगंध ये अपनी नियत कक्षा में चलने पर बाध्य हैं और जिसने उनको चलने पर बाध्य किया है वही उनका दृढ़ व शक्तिशाली शासक है।

बहरहाल बातचीत के अंत में अब्दुल मलिक ने इमाम से कहा कि मुझे अपने एक शिष्य के रूप में स्वीकार कर लीजिय। इसके बाद इमाम ने अपने शिष्य हेशाम बिन हेकम से कहा कि इसे अपने पास ले जाओ और इस्लाम के आदेशों की शिक्षा दो। संगीत

सुन्नी मुसलमानों के एक सम्प्रदाय का नाम मालेकी है जो मालिक बिन अनस के मानने वाले हैं। वह कहते हैं कुछ दिनों तक जाफ़र बिन मोहम्मद के यहां मेरा आना- जाना था। जब भी मैं उन्हें देखता था तो वे तीन हालत में से किसी एक हालत में होते थे। या वे नमाज़ की हालत में होते थे, या रोज़े की हालत में होते थे या कुरआन की तिलावत करते थे और कभी भी मैंने नहीं देखा कि वह वुज़ू के बिना हदीस बयान करें।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम रात की रात पढ़ने के लिए उठते थे, ऊंची आवाज़ में बिस्मिल्लाह कहते थे ताकि घर वाले सुन लें और जो भी उठना चाहे ईश्वर की उपासना के लिए उठ जाये। जब रात का अंधेरा छा जाता था तो इमाम रोटी, गोश्त और पैसे का थैला उठा लेते थे और उसे अपने कंधे पर रखकर मदीना नगर के निर्धनों व दरिद्रों के पास जाते थे और उसे उनके मध्य वितरित करते थे। वे इमाम को नहीं पहचानते थे। जब इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम शहीद हो गये तब रात को जो दरिद्रों और ग़रीबों की मदद करते थे वह नहीं होती थी तब उन्हें पता चला कि जो उनकी मदद करता था वह इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम थे।