AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
मंगलवार

26 मई 2020

3:58:00 pm
1040330

दक्षिणी लेबनान की आज़ादी ने क्षेत्र के सभी समीकरण बदल दिए, प्रतिरोध का मीज़ाइली जवाब, विध्वंसक होगाः रायुल यौम

अरबी भाषा के मशहूर अख़बार रायुल यौम के प्रधान संपादक ने लिखा है कि प्रतिरोधक बलों के हाथों ज़ायोनी शासन के अवैध क़ब्ज़े से दक्षिणी लेबनान की आज़ादी, बहुत बड़ी कामयाबी थी जिसने पूरे इलाक़े के सभी समीकरणों को बदल दिया और प्रतिरोध के मोर्चे को परंपरागत अरब सेनाओं का विकल्प बना दिया।

अब्दुल बारी अतवान ने अपने संपादकीय में लिखा है कि इस बात को भूलना बहुत मुश्किल है कि 25 मई सन 2000 को ज़ायोनी शासन अपने सैनिकों की अधिक संख्या को मरने से बचाने के लिए कितने लज्जाजनक ढंग से दक्षिणी लेबनान से बाहर निकला था और लेबनान के प्रतिरोध को एक महान विजय हासिल हुई थी। ख़ास कर इस लिए भी कि नेतनायहू सरकार के वर्तमान विदेश मंत्री गाबी अशकनाज़ी, वह अंतिम इस्राईली सैन्य अधिकारी थे जो सबसे आख़िर में दक्षिणी लेबनान से निकले थे। यह वह पहली जीत थी जो इस्राईल के अवैध क़ब्ज़े से किसी अरब क्षेत्र की आज़ादी के लिए जनता की लड़ाई के माध्यम से हासिल हुई थी और दूसरी तरफ़ अवैध क़ब्ज़ा करने वाली इस्राईली सरकार बिना किसी शांति समझौते के भागने पर मजबूर हुई थी। इसके बाद इसी तरह की जीत, सन 2005 में अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के दक्षिणी भाग यानी ग़ज़्ज़ा पट्टी में हासिल हुई थी।

 

सन 2000 प्रतिरोध की संस्कृति के इतिहास में सबसे अहम मोड़ था और इसी साल, प्रतिरोध का मोर्चा, परंपरागत अरब सेनाओं का विकल्प बन गया। प्रतिरोध ने एक प्रभावी रणनीति अपनाई जिसकी पहली उपलब्धि अवैध क़ब्ज़ा करने वाले शासन के सैनिकों की बड़ी संख्या में मौत थी। इसके अलावा इस्राईल को बहुत अधिक माली नुक़सान भी हुआ। यह जानी और माली नुक़सान इस प्रकार का था कि इस्राईल का राजनैतिक व सैन्य नेतृत्व इसे सहन नहीं कर पाया और जनता के दबाव के सामने झुक कर उसने प्रतिरोध के सामने हाथ खड़े कर दिए। दक्षिणी लेबनान पर अवैध क़ब्ज़े के दौरान 18 साल से अधिक उम्र वाले जो इस्राईली सैनिक प्रतिरोध के हाथों मारे गए हैं, उनकी संख्या 1200 है जबकि 10,000 घायल हुए हैं।

 

आज जो प्रतिरोध का मोर्चा है वह बीस साल पहले के प्रतिरोध के मोर्चे से बिलकुल अलग है। दक्षिणी लेबनान से अपमानजनक ढंग से भागने के 6 साल बाद तत्कालीन ज़ायोनी प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्ट ने फिर इस इलाक़े पर क़ब्ज़ा करके अपनी सेना का मनोबल बहाल करने और उस पर लगे कलंक को धोने की कोशिश की लेकिन उसका नतीजा अधिक अपमानजनक था और इस्राईल की "अपराजेय सेना" को अपने इतिहास की अधिक बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा। भविष्य में इस्राईल की इससे भी बड़ी लज्जाजनक पराजय, अप्रत्याशित नहीं है। आजका प्रतिरोध चाहे वह दक्षिणी लेबनान में हो या ग़ज़्ज़ा पट्टी में हो, सैन्य रणकौशल, मीज़ाइल सिस्टमों, ड्रोनों, साहसी बलों और ठोस नेतृत्व के कारण युद्ध के बारे में फ़ैसला करने में सक्षम है और ज़ायोनी शासन उसके बारे में हज़ार बार सोचने पर विवश है क्योंकि प्रतिरोध के बलों को शहीद होने की जल्दी होती है।

 

इस्राईल की सेना अपने लड़ाकू विमानों और अमरीकी टैंकों के बावजूद दक्षिणी लेबनान या ग़ज़्ज़ा पट्टी में एक मीटर भी घुसने की हिम्मत न कर सकी क्योंकि इस शासन के नेतृत्व को अच्छी तरह मालूम है कि प्रतिरोध का मीज़ाइली जवाब विध्वंसक होगा जिससे इस्राईली काॅलोनियों में रहने वाले लाखों लोग, अपनी जान बचाने के लिए शरण स्थलों की ओर भागने पर मजबूर होंगे। इससे प्रतिरोध की शक्ति का पता चलता है। पिछले दिनों ग़ज़्ज़ा में जेहादे इस्लामी के अहम कमांडर ईहाब अबुल अता की हत्या करने के इस्राईल के अपराध पर प्रतिरोध ने जवाब में सैकड़ों राॅकेट और मार्टर गोले इस्राईली काॅलोनियों की ओर फ़ायर किए जिसके नतीजे में इस्राईल की आधे से ज़्यादा काॅलोनियां ठप्प हो गईं और इस हमले ने नेतनयाहू को, जो अस्क़लान में एक चुनावी सभा से ख़रगोश की तरह भागने लगे थे, मज़ाक़ का पात्र बना दिया।

 

इस वक़्त दक्षिणी लेबनान के पहाड़ों में हिज़्बुल्लाह के शस्त्रागारों में डेढ़ लाख से ज़्यादा विकसित और सटीक निशाना लगाने वाले मीज़ाइल मौजूद हैं जिन्हें स्थानीय विशेषज्ञों ने तैयार किया है और लगभग इतने ही मीज़ाइल ग़ज़्ज़ा पट्टी में बरसों से जारी घेराबंदी के बावजूद मौजूद हैं। लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने अपने हालिया भाषण में, जो उन्होंने मुस्तफ़ा बदरुद्दीन की बरसी के अवसर पर दिया, बल देकर कहा कि बैतुल मुक़द्दस की आज़ादी के बाद वे बैतुल मुक़द्दस में नमाज़ अदा करेंगे। ईश्वर की इच्छा से और प्रतिरोध की छाया में यह वादा ज़रूर पूरा होगा और ईश्वर से हमारी प्रार्थना है कि सैयद हसन नसरुल्लाह की इमामत में पढ़ी जाने वाली नमाज़ में हम सबसे पहले शामिल होने वाले लोगों में रहें और ईश्वर के निकट यह इच्छा कोई बड़ी नहीं है। (HN)

 

साभारः रायुल यौम