AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
बुधवार

29 अप्रैल 2020

4:33:52 pm
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रमज़ान का दस्तरख़ान, अल्लाह के मेहमान- 4

रमज़ान का पवित्र महीना, सुन्दर और हमेशा याद रहने वाला है।

जब रमज़ान के यह सुन्दर पल दूसरों के साथ भलाई और अच्छाई के साथ हों तो इसकी आध्यात्मिकता में चार चांद लग जाते हैं और इसके प्रभाव व इसकी विभूतियां दुगनी हो जाती हैं। दूसरों के साथ भलाई, ईश्वर को पसंद आने वाले गुणों में से एक है और इससे अल्लाह बहुत ख़ुश होता है। इसमें लोग दूसरों को अपने से ऊपर समझते हैं और उनकी समस्याओं को दूर करने की कोशिश करते हैं और इसके बदले में अल्लाह की क्षमाशीलता का पात्र बनते हैं और उसकी प्रसन्नता हासिल करते हैं।

दूसरे शब्दों में यूं कहा जा सकता है कि इसमें इंसान जो चीज़ अपने लिए पसंद करता है वही दूसरों के लिए भी पसंद करता है और जो चीज़ ख़ुद के लिए बुरी समझता है वही दूसरों के लिए भी बुरी समझता है। इसी से मिलती जुलती एक हदीस भी है जो हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के हवाले से बयान की गयी है।

पवित्र क़ुरआन में भलाई और भलाई करने वालों के बारे में बहुत सी आयतें आयी हैं जिनमें उनकी ख़ूब प्रशंसा की गयी है। पवित्र क़ुरआन में भलाई के लिए इस्तेमाल होने वाले शब्द 194 बार प्रयोग हुए हैं। एहसान यानी भलाई और इससे मिलते जुलते शब्द 34 बार और मोहसिन अर्थात भलाई करने वाले तथा इससे मिलते हुए शब्द 39 बार प्रयोग किए गये हैं।

क़ुरआने मजीद के सूरए अहक़ाफ़ की आयत संख्या 12 में ईश्वर भलाई करने वालों को शुभ सूचना देते हुए कहता है कि और इससे पहले मूसा की किताब थी जो मार्गदर्शक और दया थी और यह किताब अरबी भाषा में सबकी पुष्टि करने वाली है ताकि अत्याचार करने वालों को ईश्वरीय दंड से डराए और यह भले लोगों के लिए शुभ सूचना है।

 

इस आयत के आधार पर आसमानी किताबों को भेजना ईश्वरीय परंपरा है और आसमानी व ईश्वरीय किताबें, ईश्वरीय दया और कृपा का नमूना हैं, जैसा कि इमाम और मार्गदर्शक इंसानों के लिए मार्गदर्शक हैं, इंसानों को चाहिए कि वह समस्त आयामों में उनका अनुसरण करें और उनकी बातों पर अमल करें। इस प्रकार से ईश्वरीय दंड से डराना और उसकी दया और कृपा की शुभसूचना देना, पवित्र क़ुरआन के मार्गदर्शन के दो महत्वपूर्ण आयाम हैं। क़ुरआन का मूल लक्ष्य, अत्याचार और तबाही से लोगों को दूर रखना और भलाई और अच्छा काम करने के लिए उन्हें प्रेरित करना है।

अब सवाल यह पैदा होता है कि क़ुरआन की नज़र में भले लोग कौन हैं? क़ुरआन के अनुसार भले लोग वे हैं जो आस्था की दृष्टि से एकेश्वरवाद पर हों और व्यवहारिक दृष्टि में प्रतिरोध और धैर्य पर अमल करते हों। इस प्रकार के लोग कठिनाइयों, परेशानियों और अप्रिय घटनाओं में प्रतिरोध का प्रदर्शन करते हैं और ईश्वर के नियमों और आदेशों पर राज़ी रहते हैं।

पवित्र क़ुरआन के सूरए तौबा में भलाई और अच्छाई करने वालों के सुन्दर पारितोषिक को बयान किया गया है। सूरए तौबा की आयत संख्या 100 में आया है कि और मुहाजिर और अंसार में से आगे बढ़ने वाले और जिन लोगों ने भलाई में उनका अनुसरण किया है, उन सबसे ईश्वर राज़ी हो गया और यह सब ईश्वर से राज़ी हैं और ईश्वर ने उनके लिए वह बाग़ उपलब्ध कराए हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं और यह उनमें हमेशा रहने वाले हैं और यही बहुत बड़ी सफलता है।

 

क़ुरआने मजीद भलाई करने वालों का एक और गुण, ज़रूरतमंदों पर माल ख़र्च करना बताता है। सूरए आले इमरान की आयत संख्या 134 में ईश्वर कहता है कि (वास्तविक सद्कर्मी वही हैं) जो आराम और कठिनाई हर हाल में ज़रूरतमंदों पर पैसे ख़र्च करते हैं और क्रोध को पी जाते हैं और लोगों को माफ़ करते हैं और ईश्वर भलाई करने वालों को दोस्त रखता है।

पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के कथनों और रिवायतों में भी एहसान या भलाई किसी व्यक्ति को माफ़ करने और त्याग तथा बलिदान के अर्थ में है। यही वजह है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईमान का महत्वपूर्ण भाग, लोगों से भलाई करना है। रिवायतों के आधार पर भले और अच्छे काम करने वाले ईश्वर प्रेम के पात्र बनते हैं। ईश्वर उनका मार्गदर्शन करता है और ज्ञान व तत्वदर्शिता से उन्हें सुसज्जित करता है। इसी प्रकार ईश्वर भलाई करने वालों का अंत भी अच्छा करता है और इसीलिए वे सफल लोगों में गिने जाते हैं।

ईश्वर हर उस बंदे को जो उस पर आस्था रखता है, भले कर्म के बदले में नया जीवन देता है जिसमें वह ज्ञान व पहचान के उच्च चरण में पहुंच जाता है जहां दूसरे नहीं पहुंच पाते। साथ ही ईश्वर उसे सत्य को जीवित करने और असत्य को मिटाने की शक्ति देता है जो दूसरों के पास नहीं होती। यह ज्ञान और नई शक्ति से मोमिन बंदे चीज़ों की वास्तविकता को देखता है जैसी वह है और सत्य व असत्य के बीच भेद करता है। इस पहचान के नतीजे में मोमिन कभी भी दुनिया के मोह में नहीं फंसता।

ईश्वर जिसे पवित्र जीवन दे दे तो शैतान में उसे फांसने की शक्ति नहीं रह जाती, उसके बहका नहीं सकता। ऐसा व्यक्ति सिर्फ़ और सिर्फ़ ईश्वर की प्रसन्नता चाहता है। उसकी नज़र में वही चीज़ भली है जिसे ईश्वर भला समझता है और वह चीज़ बुरी है जिसे ईश्वर बुरा समझता है। उस समय वह अपने मन में एक प्रकार का प्रकाश व प्रसन्नता महसूस करता है जिसे परखा नहीं जा सकता। वह हमेशा बाक़ी रहने वाले जीवन में खो जाता है और भलाई के ऐसे चरण में पहुंच जाता है जहां किसी प्रकार की बुराई का कोई ठिकाना नहीं होता। ये सब वास्तविक जीवन के लक्षण हैं।

 

सुन्दर समाज वह समाज होता है जिसमें लोगों के दूसरों के साथ अच्छे और नैतिकता से संपन्न रिश्ते हों। इस समाज में लोग एक दूसरे से निकट होते हैं और एक दूसरे की समस्याओं को दूर करने का प्रयास करते हैं। अपने जैसों से प्रेम करने, भलाई करने, माफ़ करने तथा ज़रूरतमंदों पर ख़र्च करने जैसी विशेषताएं एक अच्छे समाज में पायी जाती हैं और यह यही चीज़ें समाज को पूरी तरह से बदल कर रख देती हैं। ईश्वर लोगों को अच्छा काम करने और भलाई करने की ओर प्रेरित करता है। भला कर्म करने वालों की सराहना करता है और उनकी विशेषताएं बयान करते हुए उन्हें सफलता और मार्गदर्शन की ओर बुलाता है। पवित्र क़ुरआन के सूरए लुक़मान की आयत संख्या 5 में ईश्वर कहता है कि यही लोग अपने ईश्वर की ओर से सही रास्ते पर हैं और यही कल्याण पाने वाले हैं।

पवित्र क़ुरआन के सूरए बक़रह की आयत संख्या 195 में ईश्वर कहता है कि और उसे ईश्वर के मार्ग में ख़र्च करो और अपनी आत्मा को बर्बादी में न डालो, नेक बर्ताव करको कि ईश्वर भला कर्म करने वालों के साथ है।

क़ुरआने मजीद की बहुत सी आयतें, इन्सान के ईमान और उसकी उपासना को, इंसान में भलाई के मुख्य कारण और दूसरी ओर इंसानों के बारे में एक मुस्लिम व्यक्ति की ज़िम्मेदारी के रूप में याद करती हैं। इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर भलाई और अच्छाई की वजह से समाज में संपत्ति का बराबर वितरण हुआ और वर्गभेद व्यवस्था समाप्त हुई है, समाज के लोगों के बीच दोस्ती और मेल मुहब्बत पैदा होती है, लोगों के पाप माफ़ होते हैं और इसके परिणाम में भले लोगों को लोक परलोक में कल्याण की शुभ सूचना दी जाती है और ईश्वर के निकट उसकी लोकप्रियता बढ़ती है।

शोधों से पता चलता है कि भलाई और अच्छाई तथा हर अच्छा काम अंजाम देने के इरादे की वजह से मनुष्य में सेरोटोनीन (Serotonin) नामक पदार्थ पैदा होता है। यह पदार्थ भावनाओं को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यही वजह है कि कृपा और दया तथा अच्छा काम करने से मनुष्य के शरीर और आत्मा पर सीधा प्रभाव पड़ता है। दा पावर आफ़ इन्टेंन्शन नामक पुस्तक के लेखक डाक्टर वेनी वाल्टर डायर इस बारे में कहते हैं कि भला काम यद्यपि जितना भी साधारण हो, न केवल भलाई करने वाले व्यक्ति में बल्कि उस व्यक्ति में भी सेरटोनीन पैदा करने का कारण बनता है जिसको लाभ पहुंचा है। रोचक बात यह है कि यह चीज़ आस पास के लोगों को भी प्रभावित करती है जो उस भले काम को होता हुआ देखते हैं। दूसरे शब्दों में यूं कहा जा सकता है कि भलाई और अच्छा, भला काम करने वालों को, जिसके साथ भलाई की जाती है उसको और आसपास के लोगों को जो इस काम को देख रहे हैं सभी को प्रभावित करता है।

जी हां दोस्तो आज हमने यह सीखा कि भलाई के लिए ज़रूरी यह है कि जिस चीज़ को हम पसंद करते हों उसे ईश्वर के मार्ग में ख़र्च करें ताकि हमारा भी शुमार सफल और कल्याण पाने वाले लोगों में हो सके।