AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
सोमवार

27 अप्रैल 2020

1:53:05 pm
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पवित्र रमज़ान पर विशेष कार्यक्रम- 1

यह वही महीना है जिसमें क़ुरआन लोगों के मार्गदर्शन और उनके मार्गदर्शन के लिए स्पष्ट तर्क और सत्य को असत्य से अलग करने के लिए उतारा गया है।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम शाबान महीन के अंतिम दिनों में फ़रमाते हैं कि ईश्वर, यह कि रमज़ान का पवित्र महीना आ गया है, यह वही महीना है जिसमें क़ुरआन लोगों के मार्गदर्शन और उनके मार्गदर्शन के लिए स्पष्ट तर्क और सत्य को असत्य से अलग करने के लिए उतारा गया है, हमको इस पवित्र महीने में स्वस्थ्य रख और इस महीने को हमारे लिए स्वस्थ्य बना और यह महीना हमारे लिए स्वस्थ्य और सुरक्षित रहे।

जी हां दोस्तो रमज़ान की बसंत आ गयी है। यद्यपि हर सुबह, मीठी नींद से उठता और नर्म बिस्तर को छोड़ना, कठिन होता है और ज़िंदगी में यह चीज़ कई बार दोहराई जाती है किन्तु पवित्र रमज़ान के महीने की सुबह की पहली पव फटने से जीवन एक नये अंदाज़ से शुरु होता है। सूर्योदय से पहले चलने वाली मनमोहक हवा और ईश्वर की अनुकंपा और विभूतियों की फुहार, निश्चेत दिलों को प्रफुल्लता और ताज़गी प्रदान करती हैं।

आइये दोस्त पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम जाफ़र सादिक अलैहिस्सलाम की वह दुआ दोहराते हैं जो वह शाबान के महीने के अंत में पढ़ा करते थे कि सादिक़ अलैहिस्सलाम शाबान महीन के अंतिम दिनों में फ़रमाते हैं कि ईश्वर, यह कि रमज़ान का पवित्र महीना आ गया है, यह वही महीना है जिसमें क़ुरआन लोगों के मार्गदर्शन और उनके मार्गदर्शन के लिए स्पष्ट तर्क और सत्य को असत्य से अलग करने के लिए उतारा गया है, हमको इस पवित्र महीने में स्वस्थ्य रख और इस महीने को हमारे लिए स्वस्थ्य बना और यह महीना हमारे लिए स्वस्थ्य और सुरक्षित रहे।

रमज़ान के महीने पर सलाम हो, रमज़ान का महीना उस जल की भांति है जो बुराइयों और पापों की आग की लपटों को बुझा देता है। सलाम हो इस्लाम व ईश्वरीय आदेशों के समक्ष नतमस्तक होने के महीने पर, सलाम हो पवित्रता के महीने पर, सलाम हो उस महीने पर जो हर प्रकार के दोष व कमी से शुद्ध करता है, सलाम हो रातों को जागने और महान ईश्वर की उपासना करने वाले महीने पर, सलाम हो उस महीने पर जिसकी अनगिनत आध्यात्मिकता से बहुत से लोग लाभ उठाते हैं और उसके विशुद्ध व अनमोल क्षण, ज्ञान की प्यास बुझाने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हैं। यह चरित्र निर्माण का बेहतरीन महीना है, यह इंसान बनने और मानवता को परिपूर्णता का मार्ग का तय करने का बेहतरीन महीना है। यह वह महीना है जिसमें इंसान हर दूसरे महीने की अपेक्षा बेहतर ढंग से स्वंय को सद्गुणों से सुसज्जित कर सकता है। इसी प्रकार यह वह महीना है जिसमें इंसान बुराइयों से दूर रहने का अभ्यास दूसरे महीनों की अपेक्षा बेहतर ढंग से कर सकता है।

 

रमज़ान का महीना हमेशा से शांति और प्रतिष्ठा के साथ आता है ताकि वह ईश्वर से अधिक लगाव के लिए बंदे को एक और अवसर दे और ईश्वरीय विभूतियों की छत्रछाया हमको प्रदान करे। रमज़ान आ रहा है ताकि हमारी ज़िंदगी के दिनों और रातों को उपासना के सांचे पिरो कर ईश्वर के समक्ष पेश करे।

जी हां, वास्तव में हमारे दिल इस अद्वितीय अवसर के लिए कितने उत्सुक थे ताकि एकांत में रहकर ईश्वर से अपने दिल की बातें बयान करें, दोस्तो आइये इस महीने में अपने पापों से भरे दिलों पर मरहम लगाएं और प्रायश्चित के पंख लगाकर ईश्वरीय अनुकंपाओं के आसमान की सैर करें, ईश्वर तेरा लाख लाख शुक्र के तूने एक और रज़मान में इबादत करने का अवसर प्रदान किया।

जब रमज़ान का पवित्र महीना आता था तो पैग़म्बरे इस्लाम बहुत अधिक प्रसन्न होते थे और रमज़ान के पवित्र महीने में नाज़िल होने वाली अनवरत बरकतों व अनुकंपाओं का स्वागत करते और उनसे लाभ उठाते और महान ईश्वर के उस आदेश पर अमल करते थे जिसमें वह कहता है” हे पैग़म्बर कह दीजिये कि ईश्वर की कृपा और दया की वजह से मोमिनों को प्रसन्न होना चाहिये और यह हर उस चीज़ से बेहतर है जिसे वे एकत्रित करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम रमज़ान के पवित्र महीने में हर दूसरे महीने से अधिक उपासना की तैयारी करते थे। इस प्रकार रमज़ान के पवित्र महीने का स्वागत करते थे कि अच्छा कार्य करना उनकी प्रवृत्ति बन जाये और पूरे उत्साह के साथ रमज़ान के महीने में महान ईश्वर की उपासना करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम रमज़ान के पवित्र महीने के आने से पहले कुछ महत्वपूर्ण कार्य अंजाम देते थे और यह कार्य उपासना करने में पैग़म्बरे इस्लाम की अधिक सहायता करते थे।

रोज़ा रखना इस्लाम धर्म का एक स्तंभ है और यह मोमिनों की अध्यात्मिक परिपूर्णता और उनके भीतर परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यही वजह है कि पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजन पवित्र रमज़ान के महीने का भरपूर तरीक़े से स्वागत करते थे क्योंकि यह ईश्वरीय मेहमानी और रोज़े रखने के दिन हैं।

रिवायत में मिलता है कि पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम ने शाबान के महीने के आख़िरी शुक्रवार को रमज़ान के महत्व पर बल देते हुए अपने एक संबोधन में जिसे ख़ुतबए शाबानिया कहा जाता है, कहा कि हे लोगों! बरकत, दया, कृपा और प्रायश्चित का ईश्वरीय महीना आ गया है। यह ऐसा महीना है जो ईश्वर के निकट समस्त महीनों से श्रेष्ठ है। इसके दिन बेहतरीन दिन और इसकी रातें बेहतरीन रातें और उसके क्षण बेहतरीन क्षण हैं। यह वह महीना है जिसमें तुम्हें ईश्वरीय मेहमानी के लिए आमंत्रित किया गया है, ईश्वरीय सम्मान और प्रतिष्ठा प्रदान की गयी है, तुम्हारी सांसें ईश्वरीय गुणगान व तसबीह हैं, इसमें तुम्हारा सोना उपासना और तुम्हारे कर्म स्वीकार और तुम्हारी दुआयें कबूल हैं। इस महीने की भूख- प्यास से प्रलय के दिन की भूख- प्यास को याद करो, गरीबों, निर्धनों और वंचितों को दान दो, अपने से बड़ों का सम्मान करो और छोटों पर दया करो और सगे-संबंधियों के साथ भलाई करो। अपने पापों से प्रायश्चित करो, नमाज़ के समय अपने हाथों को दुआ के लिए उठाओ कि वह बेहतरीन क्षण है और ईश्वर अपने बंदों को दयादृष्टि से देखता है।

पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम मनुष्य की मानसिता पर रोज़े के प्रभाव के बारे में कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने दिल की परेशानी को शांत करना चाहता है उसे पवित्र रमज़ान में और हर मीने तीन दिन रोज़े रखने चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम एक अन्य स्थान पर फ़रमाते हैं कि पवित्र रमज़ान के रोज़े और हर महीने में तीन दिन के रोज़े, दिल की परेशानियों को दूर करता है। इस सुन्दर कथन में मनुष्य की मानसिकता पर रोज़े के महत्व को बयान किया गया है, यह केवल रोज़े के फ़ायदों में से केवल एक ही है।

कुछ लोगों ने पिछली शताब्दी को परेशानियों और अवसाद से भरी शताब्दी का नाम दिया है किन्तु 21वीं शताब्दी में भी अध्यात्म की कमी थी और औद्योगिक जीवन की चकाचौंध और कट्टरपंथी प्रतिस्पर्धा ने मनुष्य के अवसाद को और अधिक गहरा कर दिया। समाजिक रहन सहन में तेज़ी से बदलाव, समाजिक व पारंपरिक मूल्यों का कम होना और इन सबसे बढ़कर धार्मिक आस्थाओं के आधारों के कमज़ोर होने की वजह से मनुष्य के अवसाद और उसकी परेशानियों में वृद्धि कर दी है।

पवित्र रमज़ान की सुन्दरताओं में से एक रोज़ेदारों को सुन्दर और अच्छे गुणों का स्वामी बनाना है। उदाहरण स्वरूप पवित्र रमज़ान की शुरुआत ही तनाव को समाप्त करने वाली है। मशीनी ज़िंदगी ने दिलों के बीच मुहब्बत को कम कर दिया, जीवन पर एक अजीब स्थिति का राज हो गया है किन्तु रमज़ान के महीने के आते ही दिल में मुहब्बत की जोत जग जाती है और इंसान अधिक से अधिक ईश्वर की प्रसन्नता हासिल  करने की कोशिश करने लगता है। यह कहा जा सकता है कि दिलों में मुहब्बत की जोत जगाना और मनुष्य के बीच मेल मिलाप पैदा करना पवित्र रमज़ान की पहला अध्यातमिक असर है। पवित्र क़ुरआन भी इसी बिन्दु की ओर सूरए होजूरात की आयत संख्या 10 में संकेत करता है कि मोमिन आपस में बिल्कुल भाई भाई हैं इसीलिए अपने भाईयों के बीच सुलह करो और अल्लाह से डरते रहो कि शायद तुम पर दया की जाए।

इस समय जीवन का आदर्श बदल गया है। दिलों में प्रेम, मोहब्बत और निष्ठा कम हो गयी है और जीवन में उपेक्षा की भावना का बोल- बाला हो गया है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई के शब्दों में हर साल रमज़ान महीने का आध्यात्मिक समय स्वर्ग के टुकड़े की भांति आता है और ईश्वर उसे भौतिक संसार के जलते हुए नरक में दाखिल करता है और हमें इस बात का अवसर देता है कि हम इस महीने में स्वयं को स्वर्ग में दाखिल करें। कुछ लोग इस महीने की बरकत से इसी तीस दिन में स्वर्ग में दाखिल हो जाते हैं, कुछ लोग इस 30 दिन की बरकत से पूरे साल और कुछ इस महीने की बरकत से पूरे जीवन लाभ उठाते और स्वर्ग में दाखिल होते हैं जबकि कुछ इस महीने से लाभ ही नहीं उठा पाते और वे सामान्य ढंग से इस महीने गुज़र जाते हैं जो खेद और घाटे की बात है।

जी हां दोस्तो रमज़ान ईश्वर से अपने दिल की बात बयान करने और उससे दुआएं करने का महीना है। इस महीने ईश्वर अपने निश्चेत और परेशान बंदों की मेहमानी करता और उसे अपने कृपा के अपार सागर से तृप्प करता है। ईश्वर की मेहमानी अध्यात्म और परिज्ञान से भरी हुई होती है। आइये ईश्वर के फैले हुए इस दस्तरख़ान से लाभान्वित हों और अपने पापों का प्रायश्चित करें।