पाकिस्तान भी कोरोना महामारी से जूझ रहा है, लेकिन धार्मिक कट्टरवाद ने इस देश में कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में सरकार के लिए समस्याएं बढ़ा दी हैं। रमज़ान शुरू होने से पहले पाकिस्तान के वरिष्ठ धर्मगुरुओं और मुफ़्तियों ने सरकार को रमज़ान के दौरान नमाज़ियों के लिए मस्जिदें खुली रखने पर मजबूर कर दिया।
यह फ़ैसला देश के लिए बहुत घातक साबित हो सकता है, इसलिए कि महीने भर रमज़ान में रोज़ा रखने के बाद, शाम को जब मस्जिदों में बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होंगे, तो वायरस के विस्तार के लिए पूरी तरह से भूमि प्रशस्त होगी।
हालांकि पाकिस्तान सरकार और धर्मगुरुओं के बीच हुए समझौते के तहत मस्जिदों में नमाज़ के समय नमाज़ियों के बीच 6 फ़ीट की दूरी रखनी होगी और बूढ़ों तथा मरीज़ों को मस्जिदों में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी। लेकिन पाकिस्तान जैसे देश में इन शर्तों पर अमल करवाना संभव नहीं है।
पाकिस्तान के कमज़ोर और जर्जर स्वास्थ्य ढांचे से कोई इनकार नहीं कर सकता। इस देश के शहरों में घनी आबादी है। 25 अप्रैल को रमज़ान शुरू होने से पहले तक यहां कोरोना वायरस के 11,000 से अधिक मामले सामने आ चुके थे, जबकि 237 लोगों की मौत हो चुकी थी। लेकिन अब इन आंकड़ों में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। 26 अप्रैल तक संक्रमितों की संख्या 13,326 तक पहुंच गई और मरने वालों की तादाद 281 हो गई। इन आंकड़ों को देखने के बाद साफ़ पता चलता है कि पाकिस्तान में वायरस तेज़ी से फैल रहा है।
वास्तव में यह संख्या कहीं ज़्यादा है। 20 करोड़ की आबादी वाले देश में प्रतिदिन केवल 6,000 टेस्ट किए जा रहे हैं, इसलिए संक्रमित होने वालों और मरने वालों की सही संख्या सामने नहीं आ रही है।
ऐसे वक़्त में जब दुनिया भर के सभी मुस्लिम देशों में महामारी पर क़ाबू पाने के लिए सख़्ती से सामाजिक दूरी का पालन किया जा रहा है, पाकिस्तान में मस्जिदों में जमात के साथ नमाज़ पढ़ने की अनुमति देने का इस देश के चिकित्सा विशेषज्ञों ने कड़ा विरोध किया है।