AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
शनिवार

25 अप्रैल 2020

9:59:05 am
1029639

किस तरह ध्वस्त हो रहा है अमरीका-सऊदी अरब एलायंस?

अमरीका और सऊदी अरब के बीच जो एलायंस है उसे फ़ायदों को देखते हुए की जाने वाली समझौते की शादी कहा जा सकता है। यह संबंध दूसरे विश्व युद्ध के समय से शुरू हुए मगर अब यह एलायंस ध्वस्त हो रहा है।

अमरीकी मैगज़ीन फ़ारेन पालीसी ने केट जानसन और राबी ग्रामर का एक लेख प्रकाशित किया है जिसमें कहा गया है कि इस समय तेल के बाज़ारों की बदहाली के कारण अमरीका और सऊदी अरब के बीच बहुत गंभीर रूप से अविश्वास उत्पन्न हो गया है।

इस समय जो संकट है उसकी झलक 1973 के संकट में देखी जा सकती है। उस साल सऊदी अरब के नेतृत्व में ओपेक ने अकतूबर की जंग में इस्राईल के समर्थकों विशेष रूप से अमरीका को तेल बेचना बंद कर दिया था।

इस समय भी सऊदी अरब ने तेल का हथियार इस्तेमाल किया और दुनिया भर में फैले कोरोना संकट के बीच तेल की क़ीमतें पूरी दुनिया में बहुत नीचे पहुंचा दीं। इसका दुनिया की अर्थ व्यवस्था पर गहरा असर पड़ा।

पिछले 75 साल से जारी अमरीका सऊदी अरब संबंधों में कई बार उतार चढ़ाव आए। अरब इस्राईल युद्ध और 11 सितम्बर की घटनाओं के बाद गंभीर संकट भी पैदा हुआ लेकिन अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति फ़्रैंकलिन रोज़वेल्ट और सऊदी अरब के संस्थापक नरेश अब्दुल अज़ीज़ बिन आले सऊद के बीच फ़रवरी 1945 में स्वेज़ नहर में कोइंसी जहाज़ पर हुआ समझौता और एलायंस टूटा नहीं। इस समझौते में कहा गया है कि अमरीका सऊदी अरब की सुरक्षा और इस देश के तेल संसाधनों की सुरक्षा को सुनिश्चित रखेगा जबकि इसके बदले में सऊदी अरब तेल के क्षेत्र में और पश्चिमी एशिया के इलाक़े में अमरीका के हितों और मंसूबों का भरपूर साथ देगा।

मगर अब यह समझौता टूटने की कगार पर है। अमरीकी कांग्रेस में सऊदी अरब के विरोधियों की संख्या बहुत बढ़ गई है और अब तो उसके रिपब्लिकन घटकों के भी सब्र का पैमाना छलकने लगा है।

हालांकि अमरीका, सऊदी अरब, रूस और दूसरे तेल उत्पादक देशों के बीच तेल का उत्पादन घटाने पर सहमति हो गई लेकिन फिर भी अमरीकी तेल की क़ीमत बहुत बुरी तरह गिर गई जिसके नतीजे में अमरीका के तेल संपन्न राज्यों के सांसदों ने सऊदी अरब पर बहुत तेज़ हमले शुरू कर दिए और दबाव डाला कि सऊदी अरब से अमरीकी सैनिकों को वापस बुला लिया जाए।

अब तो वाशिंग्टन में बड़े पैमाने पर यह सवाल उठ रहा है कि सऊदी अरब और अमरीका के आपसी सहयोग क क्या आधार बचा है? यहां तक कि डोनल्ड ट्रम्प ने जो सऊदी अरब के कट्टर समर्थक माने जाते हैं यह सवाल उठा दिया क्या अमरीका की ज़िम्मेदारी है कि सऊदी अरब के सारे तेल की हिफ़ाज़त करे जबकि इस देश के तेल का बड़ा भाग चीन और अन्य एशियाई देशों को जाता है? अब सऊदी अरब का तेल अतीत की तरह अमरीका और यूरोपीय देशों को निर्यात नहीं किया जाता।

सन 1973 में जो संकट उत्पन्न हुआ था दोनों देशों के एलायंस पर उसका असर बहुत दिनों तक था और इसके नतीजे में अमरीकी नेताओं और आम जनमत ने सऊदी अरब के बारे में अपने रुख़ पर पुनरविचार शुरू कर दिया था।

चूंकि अमरीकी सरकार को 1945 में हुए समझौते से गहरी दिलचस्पी थी इसलिए दोनों देशों का एलायंस बचा रहा लेकिन हालिया समय में अमरीका ने तेल उत्पादन के क्षेत्र में जो लंबी छलांग लगाई उसके नतीजे में सऊदी अरब और मध्यपूर्व के तेल पर उसकी निर्भरता ख़त्म हो गई।

इस समय वाशिंग्टन और रियाज़ का विवाह जियोपोलिटिकल परिवर्तनों और लगातार बढ़ते मतभेद की वजह से गंभीर रूप से संकट का शिकार हो गया है।

विशेषज्ञ कहते हैं कि वाशिंग्टन इस विवाह को तोड़ने की पहल नहीं करना चाहता क्योंकि पश्चिमी एशिया के इलाक़े में ईरान के सामने डटने के लिए उसे भरोसेमंद घटक की ज़रूरत है। मगर सऊदी अरब के मामलों के विशेषज्ञ ब्रास रीडल जो 30 साल तक सीआईए में काम कर चुके हैं इस बारे में कहते हैं कि अब अमरीका को सऊदी अरब की ज़रूरत नहीं रही। इस समय सऊदी अरब से ट्रम्प का व्यक्तिगत लगाव ही दोनों देशों के संबंधों को बचाए हुए है अब अगर राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडन की जीत हो जाती है तो फिर तलाक़ की प्रक्रिया तेज़ हो जाएगी, क्योंकि बाइडन बार बार कह चुके हैं कि सऊदी अरब एक डिक्टेटर देश है और उस पर हरगिज़ भरोसा नहीं किया जा सकता।

स्रोतः फ़ारेन पालीसी