AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
शुक्रवार

24 अप्रैल 2020

1:36:54 pm
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सऊदी अरब के सबसे बड़े सुन्नी धर्मगुरु व समाज सुधारक की जेल में मौत, आले सऊद शासन पर हत्या का आरोप

सऊदी अरब की जेल में एक और सुन्नी मुस्लिम विद्वान और सुधारवादी नेता डॉक्टर अब्दुल्लाह अल-हामिद की मौत हो गई है।

आले सऊद शासन ने हामिद को उनके सुधारवादी विचारों तथा कार्यों के कारण, 2013 में जेल में डाल दिया था।

2009 में हामिद ने कुछ अन्य कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर सऊदी सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स एसोसिएशन (एसीपीआरए) की स्थापना की थी। यह संस्था सऊदी अरब में मानवाधिकारों के हनन तथा बच्चों और महिलाओं के शोषण के मामले उठाती थी।

69 वर्षीय डॉ. हामिद को जेल में ही 9 अप्रैल को दौरा पड़ा था, जिसके बाद वह कोमा में चले गए थे। सऊदी अरब में राजनीतिक क़ैदियों के मुद्दे उठाने वाले प्रिज़नर्स ऑफ़ कॉन्शंस नामक सोशल मीडिया अकाउंट ने उनकी मौत का कारण जानबूझकर स्वास्थ्य की उपेक्षा करना बताया है।

सऊदी अरब की जेलों में हज़ारों सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार, सुन्नी और शिया धर्मगुरु बंद हैं, जिन्हें बग़ैर मुक़दमा चलाए या झूठे आरोपों में फांसी दे दी जाती है, या जेल इस हद तक यातनाएं दी जाती हैं कि क़ैदी जेल ही में दम तोड़ दे।

डॉ. हामिद की मौत पर मानवाधिकार संगठन MENA के निदेशक इनेस उस्मान ने गहरा दुख जताते हुए कहा कि हम अब्दुल्ला अल-हामिद की मौत की ख़बर सुनकर टूट गए हैं। उनकी मौत के लिए सऊदी अधिकारियों की जवाबदेही तय होनी चाहिए। उन्हें बहुत ही ख़राब परिस्थितियों में हिरासत में रखा गया था और उन्हें इलाज की सहूलत तक नहीं दी गई। उनका गुनाह सिर्फ़ यह था कि वे देश में मानवाधिकारों के लिए आवाज़ उठाते थे।

अल-हामिद का जन्म 1950 में सऊदी अरब के उत्तर में स्थित बुरैदाह में हुआ था। उन्होंने उच्च धार्मिक व सेक्यूलर शिक्षा हासिल की थी और वे रियाज़ स्थित मोहम्मद बिन सऊद इस्लामिक यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर थे।

वे एक दक्ष लेखक थे और उन्होंने 15 किताबें, दर्जनों लेख और सात कविता संग्रह लिखे थे। वे एक सभ्य समाज की जमकर वकालत करते थे और उन्होंने कई महत्वपूर्ण इस्लामी विषयों में अध्ययन किया था।

अल-हामिद सऊदी अरब के आधिकारिक धार्मिक मत वहाबियत की संकीर्ण विचारधारा के भी मुखर विरोधी थे। उनका कहना था कि मुस्लिम ओलमा या विद्वान इस्लाम में राजनीतिक दायित्वों, मानवाधिकारों, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सामाजिक विषयों पर लिखने के बजाए मिसवाक और नाख़ून कतरने का महत्व ही बयान करते रहेंगे तो समाज में कभी सुधार नहीं आ सकेगा।

पहली बार अल-हामिद को 1993 में उस वक़्त गिरफ़्तार किया गया था, जब उन्होंने देश में मानवाधिकारों की आवाज़ उठाई थी।

डॉ. अल-हामिद उन 100 सऊदी सुधारवादियों का भी हिस्सा थे, जिन्होंने 2003 में आले सऊद शासन को एक ऐतिहासिक पत्र लिखकर देश में संवैधानिक राजशाही और स्वतंत्र न्यायपालिका की मांग की थी।

उसके बाद अल-हामिद समेत इस पत्र पर दस्तख़त करने वाले कई विद्वानों को गिरफ़्तार कर लिया गया और राष्ट्रीय हितों के ख़िलाफ़ बोलने के लिए 7 साल की जेल की सज़ा सुना दी गई। लेकिन 2005 में किंग अब्दुल्लाह के सिंहासन संभालने के बाद उन्हें शाही माफ़ी दे दी गई। किंग अब्दुल्लाह के दौर में वे राजनीतिक और सामाजिक सुधारों का प्रतीक बन गए।

मार्च 2013 में हामिद को एसीपीआरए के सह-संस्थापक मोहम्मद अल-क़हतानी के साथ जेल में डाल दिया गया और उन पर सरकार विरोधी प्रदर्शन भड़काने, विदेशी संस्थाओं को ग़लत जानकारियां उपलब्ध करवाने, जासूसी करने और ग़ैर क़ानूनी रूप से संस्था चलाने जैसे आरोप लगाए गए।