इस साल जुलाई में होने वाले हज के रद्द होने की संभावना से जहां सऊदी अरब को भारी नुक़ासन हो सकता है, वहीं यह सोच कर ट्रैवल एजेंटों और कंपनियों के होश उड़ गए हैं।
सऊदी शासन ने मुसलमानों के सबसे पवित्र दो धार्मिक स्थलों मक्का और मदीना जाने और वहां से उड़ने वाली सभी उड़ानों को कम से कम 15 अप्रैल तक के लिए बंद कर दिया है।
सरकार ने 27 फ़रवरी से उमराह के लिए जाने वाले तीर्थयात्रियों के प्रवेश पर भी प्रतिबंध लगा दिया था।
उसी दिन इस्राईल के क़ब्ज़े वाले पूर्वी बैतुल मुक़द्दस और वेस्ट बैंक से क़रीब 2,500 फ़िलिस्तीनी अम्मान के रास्ते उमराह के लिए सऊदी अरब की यात्रा करने वाले थे।
केवल फ़िलिस्तीन ही नहीं बल्कि दुनिया भर के ट्रैवल एजेंट्स पहले तीर्थयात्रियों के वीज़ा के लिए भर के ह के लिध लगा दिया था।
तक के लिएही तीर्थयात्रियों की वीज़ा के लिए करोड़ों डॉलर का भुगतान कर चुके थे।
इस्लामी कैलेंडर के जारी तीन महीनों में बड़ी संख्या में दुनिया भर के मुसलमान उमराह और ज़ियारत के लिए पवित्र शहर मक्का और मदीना पहुंचते हैं।
अभी तक सऊदी अधिकारियों ने वीज़ा के लिए भुगतान की गई राशि को लौटाने या नहीं लौटाने के बारे में किसी तरह का कोई आश्वासन भी नहीं दिया है।
वेस्ट बैंक में एक ट्रैवल एजेंसी के मालिक अशरफ़ हामिद का कहना है कि वीज़ा फ़ीस, एयर टिकट, होटल बुकिंग, ट्रांस्पोर्ट और इंश्योरेंस के लिए भुगतान की गई राशि का अगर हिसाब किया जाएगा तो हमारे लिए यह बहुत बड़ा नुक़सान है।
इस बीच, सऊदी अरब ने दर्जनों देशों से उड़ानों के आने-जाने और यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया है। क़तीफ़ प्रांत को लॉकडाउन कर दिया है, स्कूलों को बंद और सांस्कृतिक और खेल कार्यक्रमों को रद्द कर दिया है।
पर्याप्त स्वास्थ्य जानकारी नहीं देने वाले यात्रियों पर 5 लाख या 1 लाख 33 हज़ार डॉलर तक का जुर्माना लगाने की घोषणा की है।
हर साल क़रीब 70 लाख मुसलमान उमराह और 20 लाख से भी ज़्यादा हज के लिए मक्का की यात्रा करते हैं।
2017 में सऊदी शासन क उमराह और हज से 12 अरब डॉलर से अधिक आय हुई थी, जो इस देश के वार्षिक राजस्व का लगभग सात प्रतिशत है।
क्या इतिहास में पहले कभी हज को रद्द किया गया है?
1932 में जबसे अरब प्रायद्वीप में आले सऊद के राजशाही शासन की स्थापना हुई है और इस देश का नाम सऊदी अरब रखा गया, हज को कभी रद्द नहीं करना पड़ा।
लेकिन इससे पहले कई बार हज को महामारी, युद्ध और लड़ाईयों की वजह से हज को रद्द किया गया है।
उदाहरण स्वरूप, सन् 865 में, अल-सफ़्फ़ाक के नाम से मशहूर इस्माइल बिन यूसुफ ने मक्का में पवित्र अराफ़ात पर्वत पर बड़े पैमाने पर तीर्थयात्रियों का नरसंहार किया। इस नरसंहार की वजह से उस साल हज को रद्द कर दिया गया।
930 में बहरीन स्थित कट्टरपंथी संप्रदाय क़रमातियों के प्रमुख अबू ताहिर अल-जनाबी ने पवित्र शहर मक्का पर हमला कर दिया था।
क़रमातियों ने पवित्र शहर मक्का में 30 हज़ार तीर्थयात्रियों का क़त्ले-आम किया उनके शवों को पवित्र माने जाने वाले ज़मज़म कुएं में फेंक दिया। उन्होंने महान मस्जिद को भी लूटा और काबे में लगे हजरे असवद या काले पत्थर को भी चुराकर बहरीन ले गए।
कई वर्षों के बाद मुसलमान हजरे असवद को मक्का वापस लौटाने में सफल हुए, और इन वर्षों के दौरान हज का आयोजन नहीं हो सका।
1831 में भारत से फैलने वाली प्लेग की महामारी से मुसलमानों के सबसे पवित्र शहर मक्का और मदीना भी अछूत नहीं रहे। भारत से हज के लिए जाने वाले तीन-चौथाई तीर्थयात्रियों की यात्रा के दौरान ही मौत हो गई थी।