AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
शुक्रवार

7 फ़रवरी 2020

4:55:26 pm
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सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच, कभी प्यार तो कभी नफ़रत, क्या है इसका मुख्य कारण? इस्लामाबाद, रियाज़ के किस रवैये से है निराश?

पाकिस्तान और सऊदी अरब के संबंधों को लेकर आए दिन एक अलग ही समाचार सामने आते हैं। कभी तो दोनों देशों के बीच इतना अधिक प्यार देखने को मिलता है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान सऊदी युवराज मोहम्मद बिन सलमान के ड्राइवर बन जाते हैं और कभी इतनी नफ़रत के दोनों देशों के नेता अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक दूसरे को बुरा भला कहते सुनाई देते हैं।

आजकल दुनिया भर के संचार माध्यमों में कुछ ऐसी ख़बरें सामने आ रही हैं कि जिससे पता लगता है कि इस्लामाबाद एक बार फिर रियाज़ के किसी रवैये को लेकर बहुत निराश हो गया है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक़, सऊदी अरब के शहर जेद्दाह में 9 फरवरी को होने वाले ओआईसी मंत्रिपरिषद के सम्मेलन की तैयारियां जारी हैं, लेकिन पाकिस्तानी अख़बार डॉन की एक रिपोर्ट के अनुसार सऊदी अरब नहीं चाहता कि कश्मीर के मुद्दे पर ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक बुलाई जाए, बल्कि वह पाकिस्तान की इच्छा के विपरीत इस मुद्दे पर दूसरे प्रस्ताव दे रहा है। ऐसे में, इस बात की कोई संभावना नहीं है कि सम्मेलन का कोई सत्र भारत प्रशासित कश्मीर पर हो, जिसकी मांग पाकिस्तान लगातार करता आ रहा है। इस बीच पाकिस्तान के विदेश मामलों के कई जानकारों ने सऊदी अरब के रवैये पर जहां एक ओर अफसोस जताया है वहीं दूसरी ओर इमरान ख़ान सरकार से मांग की है कि वह सऊदी अरब के साथ पाकिस्तान के रिश्तों की समीक्षा करें।

कराची यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग के पूर्व प्रमुख डॉक्टर तलअत वेज़ारत ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "समय आ गया है कि हम सऊदी अरब के साथ अपने संबंधों की समीक्षा करें क्योंकि सऊदी अरब और संयुक्त अरब इमारात का पूर्ण रूप से भारत समर्थक रवैया है और वे पाकिस्तान का समर्थन नहीं करना चाहते। उन्होंने कहा कि, पाकिस्तान को उन देशों के महत्व को समझना चाहिए जो हमारे लिए नुक़सान उठाते हैं।" तलअत वेज़ारत का इशारा मलेशिया की तरफ़ था जिसने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कश्मीर समस्या उठाने की वजह से आर्थिक नुक़सान उठाया है। डॉक्टर वेज़ारत ने कहा, "मलेशिया कश्मीर पर अपने रुख से पीछे नहीं हटा। भारत ने उससे तेल लेना बंद कर दिया लेकिन उसने पाकिस्तान की मदद की। उन्होंने कहा कि, इसी तरह तुर्की ने भी हमारे रुख का समर्थन किया है और हम हैं कि सऊदी अरब के कहने पर कोलालामपुर कांफ्रेस में शामिल नहीं हुए। डॉक्टर वेज़ारत ने कहा कि अब हमें तुर्की और मलेशिया के साथ मिल कर एक नया इस्लामी संगठन बनाना चाहिए।"

जानकारों का कहना है कि, कई वरिष्ठ पाकिस्तानी राजनेता भी कश्मीर पर सऊदी अरब के रुख से निराश हैं और इमरान ख़ान सरकार से अपनी नीति पर दोबारा विचार करने की मांग कर रहे हैं। नेशनल पार्टी के नेता और सीनेटर मोहम्मद अकरम बलोच कहते हैं, "हमें भी वास्तविकताओं के मुताबिक़ चलना चाहिए। उन्होंने कहा कि, सऊदी अरब धुर मुस्लिम विरोधी इस्राईल के साथ अपने रिश्ते स्थापित कर रहा है और यहां हम उसको इस्लामी जगत का नेता समझ रहे हैं। बलोच ने कहा कि, मुझे लगता है कि हमें भी अपने राष्ट्रीय हितों को देखते हुए अपनी विदेश नीति को बदलना चाहिए और सऊदी अरब के प्रभाव से निकलना चाहिए।"

कुला मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान इस समय अगर किसी देश से सबसे अधिक नफ़रत करता है तो वह है सऊदी अरब क्योंकि भारत को तो इस देश की सरकार अपना सबसे बड़ा विरोधी देश समझती है, लेकिन क्योंकि सऊदी अरब पाकिस्तान का रोल मॉडल रहा है और इस देश के नेता अपनी हर समस्या का हल सऊदी अरब में जा कर तलाशते रहे हैं। आज वही सऊदी अरब पाकिस्तान को किनारे लगाता जा रहा है। वास्तविक्ता तो यही है कि आरंभ से ही रियाज़ इस्लामाबाद को केवल अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल करता आया है और कभी भी आर्थिक मदद के अलावा पाकिस्तान का किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर खुल कर साथ नहीं दिया है। बहरहाल अब देखना यह है कि पाकिस्तान इस बार सऊदी अरब से अपनी नारज़गी को कब तक जारी रख पाता है। नहीं तो हमेशा की तरह थोड़ी सी तकरार के बाद इस्लामाबद ख़ुद ही रियाज़ पहुंचकर सऊदी अधिकारियों को मनाते दिखाई देगा।