AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
शुक्रवार

24 जनवरी 2020

6:38:20 pm
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क्या जनरल सुलैमानी को शहीद करने के बाद अब फ़िलिस्तीन का काम तमाम करना चाहता है अमरीका? मंगलवार को अपनी फ़िलिस्तीन योजना का एलान

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प अगर यह कह रहे हैं कि वह आने वाले मंगलवार से पहले अपनी फ़िलिस्तीन योजना की घोषणा करना चाहते हैं तो यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या ईरान की पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स आईआरजीसी की क़ुद्स फ़ोर्स के कमांडर जनरल क़ासिम सुलैमानी को शहीद करने के बाद अब अमरीका को यह लग रहा है कि उसकी फ़िलिस्तीन योजना के रास्ते की रुकावट दूर हो गई है?

आने वाले मंगलवार को इस्राईली प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू और उनके प्रतिद्वंद्वी बेनी गांट्स वाशिंग्टन का दौरा करने वाले हैं और इससे पहले ही ट्रम्प इस योजना की घोषणा कर देना चाहते हैं। अमरीकी उप राष्ट्रपति माइक पेन्स ने दोनों को वाशिंग्टन यात्रा का न्योता दिया है ताकि अमरीका की फ़िलिस्तीन योजना के बारे में दोनों इस्राईली नेताओं की पूर्ण सहमति बनाई जा सके।

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प को यह भी पता है कि उनकी योजना पर फ़िलिस्तीनी संगठनों की कड़ी प्रतिक्रिया सामने आएगी। महमूद अब्बास के नेतृत्व वाले फ़िलिस्तीनी प्रशासन और ग़ज़्ज़ा स्थित हमास ने पहले ही कह दिया है कि वह इस योजना को हरगिज़ नहीं मानेंगे।

अमरीका ने डील आफ़ सेंचुरी के नाम से जो योजना तैयार की है वह बेहद विवादस्पद है और इसका विरोध महमूद अब्बास जैसे वह फ़िलिस्तीनी नेता भी कर रहे हैं जिनका मानना था कि इस्राईल के ख़िलाफ़ संघर्ष करने का कोई फ़ायदा नहीं है बल्कि इस्राईल से वार्ता और समझौता करके फ़िलिस्तीन संकट का समाधान निकालना ही सबसे उचित रास्ता है। इस सोच के नेताओं को भी अब साफ़ साफ़ कहना पड़ रहा है कि न तो इस्राईल से वार्ता का कोई फ़ायदा है और न ही अमरीका से वार्ता करके कोई समाधान तलाश किया जा सकता है।

इस समय अमरीका ने ईरान के विख्यात कमांडर जनरल क़ासिम सुलैमानी को आतंकी हमले में क़त्ल करने के बाद डील आफ़ सेंचुरी के एलान की बात शुरू की है तो इसके पीछे शायद ट्रम्प प्रशासन की यह सोच है कि अब इस योजना के रास्ते में बहुत बड़ी रुकावटें नहीं आएंगी क्योंकि जनरल सुलैमानी के बारे में अमरीकियों और उनके घटकों को अच्छी तरह मालूम है कि उन्होंने फ़िलिस्तीन ही नहीं पूरे पश्चिमी एशिया में अमरीका की हर साज़िश को नाकाम बना दिया। इसके उदाहरण के तौर पर सीरिया, इराक़ और यमन को पेश किया जा सकता है।

सवाल यह है कि क्या अमरीका का यह सोचना सही है कि अब डील आफ़ सेंचुरी के रास्ते की रूकावटें कम हो गई हैं? विशेषज्ञ अच्छी तरह जानते हैं कि यह सोच निराधार है। जनरल सुलैमानी तो हमेशा शहादत के लिए तैयार रहते थे अतः वह हर योजना और हर रोडमैप इतनी मज़बूती से तैयार करते थे कि वह स्थायी रहे और उनकी शहादत पर समाप्त न हो जाए। जनरल क़ासिम सुलैमानी रोडमैप के लिए मज़बूत आधार तैयार करने के उद्देश्य से बड़े से बड़ा ख़तरा मोल लोने से नहीं हिचकिचाते थे। कई फ़िलिस्तीनी अधिकारी और नेता कह चुके हैं कि उन्होंने एक बार नहीं बल्कि कई बार ग़ज़्ज़ा का सफ़र किया और फ़िलिस्तीनियों को इस तरह मज़बूत बना दिया कि वह इस्राईल के सामने बड़ी सफलता के साथ प्रतिरोध और अपनी रक्षा कर सकते हैं।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि फ़िलिस्तीनियों को उन्होंने ज़रूरी उपकरणों से लैस कर दिया।

इससे नतीजा निकालना मुश्किल नहीं है कि डील आफ़ सेंचुरी हो या इराक़, सीरिया और यमन सहित पश्चिमी एशिया के बारे में अमरीका की अन्य योजनाएं हों किसी में भी वाशिंग्टन को सफलता मिलना मुश्किल है। यही नहीं अमरीका के लिए इस इलाक़े में अब रुक पाना ही टेढ़ी खीर हो गया है। इराक़ में शुक्रवार को निकले मिलियन मार्च पर नज़र डालकर समझा जा सकता है कि इस इलाक़े में अमरीका किस हालत में पहुंच चुका है। यह वह हालत हरगिज़ नहीं है जिसमें अमरीका बैठ कर रोड मैप बनाए और उसे लागू करे, यह अमरीका के बोरिया बिस्तर समेटने के हालात हैं।