AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
गुरुवार

16 जनवरी 2020

7:22:48 pm
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शहीद क़ासिम सुलैमानी को आतंकवाद से जोड़ना साम्राज्यवाद की मजबूरी

शहीद क़ासिम सुलैमानी जैसे जियाले वह होते हैं जो अमेरिका और इस्राईल के बिलियन डॉलर और उनकी जी तोड़ साज़िशों पर पानी फेरते हुए बे नक़ाब कर देते हैं और यह बेचारे हाथ मलते हुए खिसियाहट मिटाने के लिए केवल आतंकवादी आतंकवादी कह कर भड़ास निकालने की कोशिश करते हैं, वरना सच्चाई वह भी अच्छी तरह से जानते हैं।

जुमेरात और जुमे की रात बीच में अचानक आंख खुली, वजह तो समझ में नहीं आई, समय देखा, कुछ समझ नहीं आया, सोचता रहा, फिर सुबह की नमाज़ पढ़ी और कुछ देर के लिए लेट गया, जुमे की सुबह सुबह उठा दोस्तों के मैसेज देखने और देश विदेश की ख़बरों के पढ़ने के लिए मोबाइल को उठाया तो देखा व्हाट्सएप के सारे ग्रुप और कई दोस्तों के मैसेज एक के बाद एक आते ही जा रहे थे, हर मैसेज और हर ग्रुप में ताज़ियत का सिलसिला जारी था, तभी निगाह ऐसी ख़बर पर पड़ी जिसके पढ़ने के बाद आंखों पर यक़ीन नहीं हो रहा था, हाज क़ासिम सुलैमानी और इंजीनियर अबू मेहदी अमेरिका के हवाई हमले में शहीद हो चुके थे, कभी ज़िंदगी में इन दोनों से ही मुलाक़ात नहीं हुई थी और न ही आमने सामने कभी कोई बात हुई थी, तस्वीरों, वीडियो और न्यूज़ ही में देखा था, यह ख़बर पढ़ने के बाद दिमाग़ तो जैसे सुन पड़ गया था और आंखें थीं जो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं, नहीं मालूम अपने आप यह कैफ़ियत क्यों पैदा हो गई थी, आज पता चला कि कुछ हस्तियों से ऐसा ग़ैबी, रूही और फ़िक्री रिश्ता होता है जो ऐसे हो हालात में सामने आता है।
अब हर तरफ़ एक ही चर्चा था कि क्या अमरीका का इस तरह दूसरे देश में आए किसी शख़्स पर हमला कर के उसे मार देना सही है....
अगर क़ानून के हिसाब से देखा जाए तो यह हमला अंतरराष्ट्रीय क़ानून के ख़िलाफ़ था, जबकि इराक़ी हुकूमत ने अमेरिका के इस हवाई हमले को आत्मसम्मान और स्वराज पर हमला क़रार दिया, पिछले कुछ हमलों के समय ही इराक़ की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ने उसे तयशुदा उसूलों का उल्लंघन कहा था, उनका कहना था कि अमरीकी हमले किसी भी तरह से बर्दाश्त नहीं हैं।
इराक़ ने एक नया इतिहास लिखा, अमरीकी दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, और इराक़ी जनता की ऐसी हैबत और ऐसा आक्रोश था कि अमेरिकी राजदूत और सेना की एक बहुत बड़ी तादाद भागने पर मजबूर हो गई, बग़दाद का ग्रीन ज़ोन अल्लाहो अकबर और अमेरिका सबसे बड़ा शैतान जैसे नारों से गूंज गया, यह 4 नवंबर 1979 तेहरान जैसा मंज़र लग रहा था, जो पूरी दुनिया के लोग बग़दाद में देखा, व्हाइट हाउस, पेंटागन और CIA का हेड क्वार्टर लरज़ कर रह गया, अमरीका की अहंकारी नाक मिट्टी में बुरी तरह रगड़ी जा चुकी थी।
सीरिया, इराक़, लेबनान से लेकर फ़िलीस्तीन तक ज़ायोनी साज़िशें मिट्टी में मिलती जा रही थीं, ज़ायोनी साम्राज्यवाद को बढ़ावा देने वाला अमेरिका बिलबिला रहा था, इन्हीं सब बातों को लेकर बहुत दिनों से मानसिक बीमारी का शिकार ट्रंप ने पेंटागन के अंडर में अमेरिकी सेना की स्पेशल ऑपरेशन कमांड को मेजर जनरल क़ासिम सुलेमानी को शहीद करने का आदेश दे दिया, बग़दाद एयरपोर्ट के क़रीब ही अमरीकी मिसाइल हमलों में क़ासिम सुलैमानी और इराक़ी अवामी सेना हश्दुश शअबी के नामचीन कमांडर इंजीनियर अबू मेहदी शहीद हो गए, और इन दोनों के साथ और भी कई लोगों की शहादत हुई।
इस बात में कोई शक नहीं कि यह बहुत बड़ा नुक़सान है, और बेशक इस्लामी जगत और अरब का, दुनिया में आज़ादी चाहने वालों की एक बहुत तादाद ग़म में डूबी हुई है, इसलिए कि कहने को तो हाज क़ासिम सुलैमानी ईरानी थे और क़ुद्स सेना के मेजर जनरल थे लेकिन पूरे अरब और इस्लामी जगत में ज़ायोनी साम्राज्यवाद के मुक़ाबले प्रतिरोध के आइकॉन थे, वह एक ऐसे शिया मुसलमान थे जिन्होंने अरब के सुन्नियों और कुर्दों के हक़ के लिए भी प्रतिरोध किया और अनगिनत मौक़ों पर उनकी जान की हिफ़ाज़त की, आज अगर हमास, ज़ायोनी दरिंदों के नापाक इरादों के सामने ठोस रुकावट बने हुए हैं तो इसका बहुत बड़ा क्रेडिट मेजर जनरल क़ासिम सुलैमानी को जाता है, आज अगर लेबनान पर पिछली बार की तरह इस्राईल हमला करने से डरता है तो इसके पीछे भी शहीद क़ासिम सुलैमानी की ही मेहनत है।
आज अगर सीरिया और इराक़, ISIS की तकफ़ीरी आतंकवाद और उसके सरगना के हमलों से काफ़ी हद तक महफूज़ है तो उसका सेहरा भी क़ासिम सुलैमानी के सर है, संक्षेप में इतना समझ लीजिए मिडिल ईस्ट में अब तक साम्राज्यवाद के घुसपैठ की सबसे बड़ी रुकावट यही शहीद मेजर जनरल क़ासिम सुलैमानी थे जिन्होंने अमेरिका के साथ साथ ज़ायोनी साज़िशों को न केवल नाकाम किया बल्कि उन साज़िशों को रचने के लिए अमेरिका और इस्राईल द्वारा ख़र्च किए जाने वाले बिलियन डॉलर पर भी पानी फेर दिया।
जब इमाम मूसा सद्र को ज़बर्दस्ती मिसिंग पर्सन बना दिया गया था उस समय ईरान में इस्लामी इंक़ेलाब कामयाब नहीं हुआ था, लेकिन उनको ज़बर्दस्ती ग़ायब कर दिए जाने ने भी दुश्मन को इंक़ेलाब लाने से नहीं रोक पाया, सद्दाम द्वारा लंबी जंग थोपने के बाद भी अमेरिकी लॉबी ईरान के इस्लामी इंक़ेलाब को धुंधला करने में नाकाम रही, शैख़ राग़िब हर्ब, सय्यद अब्बास मूसवी और एमाद मुग़निया को शहीद करने के बावजूद ज़ायोनी और अमेरिकी लॉबी हिज़बुल्लाह को झुकाने में नाकाम रहे, इसी तरह फ़िलिस्तीन में इस्लामी प्रतिरोध के लीडरों को शहीद करने के बावजूद फ़िलिस्तीनी जनता के प्रतिरोध को एक इंच पीछे नहीं हटा सके, आयतुल्लाह बाक़िर अल-सद्र और आयतुल्लाह बाक़िर अल-हकीम को बुज़दिली से शहीद कर के भी इराक़ में अपनी साज़िशों को कामयाब नहीं कर पाए।
यही नहीं इराक़ में अमेरिका ने अपनी साज़िशों को कामयाब करने के लिए अपने पालतू सद्दाम को भी साज़िश की भेंट चढ़ा दिया फिर भी अपने मक़सद यानी इस्लामी जगत को दीनी रहबरी से दूर करने में नाकाम रहे।
यह पिछले कई दशकों का इतिहास है जिसका निचोड़ बयान किया गया है, और यह ऐसे हालात हैं जिनमें इस्लाम और मुसलमानों के साथ विश्वासघात करने वाले कुछ अरब देश भी बे नक़ाब हुए लेकिन साम्राज्यवाद और ज़ायोनी दरिंदगी अपने मिशन में कामयाब नहीं हो सका।
और  आज शहीद क़ासिम सुलैमानी के नाम के साथ आतंकवाद का जोड़ना कोई नई बात नहीं है यह साम्राज्यवाद का इतिहास रहा है कि इनकी साज़िश के आड़े आने वाले हर किसी पर आतंकी होने का आरोप लगाया है, इसलिए आज अगर अमेरिका या उसी के रास्ते पर चलने वाले किसी देश का कोई नेता या लीडर शहीद क़ासिम सुलैमानी को आतंकी कहता है तो यह उसकी मजबूरी है क्योंकि शहीद क़ासिम सुलैमानी जैसे जियाले वह होते हैं जो अमेरिका और इस्राईल के बिलियन डॉलर और उनकी जी तोड़ साज़िशों पर पानी फेरते हुए बे नक़ाब कर देते हैं और यह बेचारे हाथ मलते हुए खिसियाहट मिटाने के लिए केवल आतंकवादी आतंकवादी कह कर भड़ास निकालने की कोशिश करते हैं, वरना सच्चाई वह भी अच्छी तरह से जानते हैं।


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