AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
शनिवार

25 मई 2019

2:03:06 pm
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रिहा हुए फ़िलिस्तीनी क़ैदी को शहीद करवाने में सीरियाई विद्रोहियों ने इस्राईल का दिया साथ, क्या इससे ज़्यादा शर्मनाक कुछ हो सकता

हमारे लिए और हम जैसे लाखों लोगों के लिए वह ख़बर चौंका देने वाली और दुखी कर देने वाली थी जो इस्राईली मीडिया में गुरुवार की रात आई।

ख़बर में बताया गया कि सीरिया की सरकार से लड़ने वाले विद्रोही संगठनों में से एक के प्रमुख ने इस्राईली इंटेलीजेन्स अमान को गुप्त जानकारियां दीं जिनकी मदद से 15 दिसम्बर 2015 को दमिश्क़ के दक्षिण में इस्राईल ने समीर क़िन्तार को शहीद कर दिया।

चौंका देने वाली इसलिए थी कि शहीद समीर क़िन्तार को गोलान हाइट्स के उन इलाक़ों में इस्राईल के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी जिस पर इस्राईल का ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़ा है। यह ज़िम्मेदारी उन्हें हिज़्बुल्लाह की योजना के तहत और ख़ुद सैयद हसन नसरुल्लाह की ओर से सौंपी गई थी। इस मिशन में समीर क़िन्तार के मुख्य सहयोगियों में एक शहीद एमाद मुग़निया के बेटे शहीद जेहाद मुग़निया थे। समीर क़िन्तार ने अपनी उम्र के 30 साल इस्राईली जेलों में गुज़ारे और जो गिरफ़तारी के समय 17 साल के थे और फ़िलिस्तीनी संगठनों की ओर से किए गए आप्रेशन का हिस्सा थे जब गिरफ़तार हुए यानी वह महान सेवा अंजाम दे रहे थे। उन्होंने इस्राईली जेलों के अरब क़ैदियों के सरदार की उपधि दी गई।

सैनिक अधिकारी मार्को मोनरो ने जो इस्राईली इंटेलीजेन्स की ओर से सीरियाई विद्रोही संगठनों से सहयोग और समन्वय का काम करते थे इस आप्रेशन के बारे में इस्राईली टीवी चैनल को बताया कि सीरियाई विद्रोही संगठन के प्रमुख ने समीर क़िन्तार के बारे में गुप्त सूचनाएं दी थीं। मार्को मोनरो के पास और भी बहुत सी जानकरियां होंगी कि किस तरह इन संगठनों की इस्राईल ने मदद की और उन्होंने इस्राईल की क्या सेवाएं की हैं। किस तरह दोनों पक्षों के सहयोग से सीरिया के भीतर और बाहर आतंकी कार्यवाहियां अंजाम दी गईं?

शहीद क़िन्तार वर्ष 2008 में उस से इस्राईली जेल से रिहा हुए जब हिज़्बुल्लाह और इस्राईल के बीच क़ैदियों ता तबादला हुआ। हिज़्बुल्लाह ने लेबनान युद्ध में मारे गए दो इस्राईली सैनिकों के शव लौटाए और इस्रईल को 199 फ़िलिस्तीनी और लेबनानी क़ैदियों को रिहा करना पड़ा। समीर किन्तार इसके बाद भी युद्ध के मोर्चे से दूर नहीं रहे। उन्होंने हिज़्बुल्लाह का हिस्सा बनकर इस्राईल के ख़िलाफ़ अपना संघर्ष जारी रखा यहां तक कि शहीद कर दिए गए।

इस्राईली इंटैलीजेन्स को सूचनाएं देना और इन सूचनाओं के सहारे इस्राईल का उन पर हमला और उनकी शहादत सीरियाई विद्रोही संगठनों के बहुत बड़े विश्वासघात को दर्शाती है और यह भी साबित करती है कि सीरियाई जनता के अधिकार की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाले यह संगठन किस तरह इस्राईल के हाथों बिके हुए हैं। इस्राईल ने इस समय अगर सीरियाई विद्रोही संगठनों से अपने गुप्त सहयोग की ख़बर लीक की है तो इसका मतलब यह है कि वह इन संगठनों से और सेवाएं लेना चाहता है और इसके लिए उन पर दबाव डाल रहा है।

यह बात आने वाले दिनों में और भी स्पष्ट होगी। हो सकता है कि सीरियाई संगठनों का फिर कोई नया और घृणित चेहरा सामने आए।

साभार रायुल यौम