इस्राईल ने 12 साल से अधिक समय से गज़्ज़ा पट्टी की समुद्र, ज़मीन और हवा से नाकाबंदी कर रखी है। ज़ायोनी सैनिकों के सोमवार के हमले में दर्जनों फ़िलिस्तीनी घायल हो गए हैं। ग़ज़्ज़ा पट्टी की नाकाबंदी तोड़ने के लिए पिछले चार महीने से प्रदर्शन शुरू हुए हैं। इन प्रदर्शनों में नाकाबंदी तोड़ने का प्रयास भी किया जा रहा है साथ ही फ़िलिस्तीनी अपने उन इलाक़ों में वापसी की मांग कर रहे हैं जिन पर इस्राईल ने क़ब्ज़ा करके ज़ायोनियों को बसा दिया है।
फ़िलिस्तीनियों ने अपना संघर्ष एसे समय में तेज़ किया है जब फ़िलिस्तीन के ख़िलाफ़ बहुत बड़ी साज़िश रची गई। यह साज़िश इस्राईल और अमरीका ने मिलकर रची है जबकि इसको लागू करने के लिए सऊदी अरब की सरकार को प्रयोग किया जा रहा है। जार्डन और मिस्र को भी इस ख़तरनाक योजना में सहायक के रूप में शामिल किया गया है।
इस योजना के तहत इस्राईल कोशिश कर रहा है कि अरब देशों से उसके संबंध स्थापित हो जाएं और जिन देशों से उसके खुफ़िया संबंध हैं वह अब इन संबंधों को सार्वजनिक कर दें। इस्राईल के प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतनयाहू के ओमान दौरे और इस्राईली प्रतिनिधिमंडलों की इमारात और क़तर की यात्राओं को इस योजना का भाग समझा जा सकता है।
मगर फ़िलिस्तीनियों ने अपने संघर्ष तथा कुछ हफ़्ते पहले इस्राईल से होने वाले टकराव में अपनी मिसाइल शक्ति के प्रदर्शन से यह संकेत दे दिया है कि डील आफ़ सेंचुरी फ़िलिस्तीन के ज़मीनी तथ्यों से बहुत दूर है और इसे लागू कर पाना किसी के भी बस में नहीं है। फ़िलिस्तीनी फ़िलिस्तीनियों का है और वह अपनी धरती को आज़ाद कराके रहेंगे।