AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
रविवार

16 दिसंबर 2018

4:58:15 pm
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फ़िलिस्तीनी संगठन हमास का 31 साल का सफ़र, पत्थरों से लड़ाई मिसाइल और ड्रोन हमलों तक कैसे पहुंची?!

फ़िलिस्तीन के हमास आंदोलन की स्थापना 1987 में हुई और उसी समय से यह संगठन फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की रक्षा और फ़िलिस्तीनियों के छिने अधिकारी की वापसी के लिए संघर्षरत है।

इस संगठन का मानना है कि ग़ैर क़ानूनी इस्राईली शासन से बातचीत का कोई फ़ादया नहीं है इस अतिग्रहणकारी शासन से अधिकार वापस लेने हैं तो इसके लिए एक ही रास्ता है कि संघर्ष किया जाए।

हमा संगठन अपने रणनैतिक दस्तावेज़ में साफ़ साफ़ कहता है कि फ़िलिस्तीनी जनता के अधिकारों को वापस लिया जाएगा, इस्राईल के ग़ैर क़ानूनी क़ब्ज़े को समाप्त करके फ़िलिस्तीनी इलाक़ो को आज़ाद करवाने के लिए रक्षा शक्ति में विस्तार किया जाएगा। हमास संगठन ने जिस समय अपना काम शुरू किया उस समय इस्राईली अतिग्रहणकारियों के मुक़ाबले में फिलिस्तीनी इंतेफ़ाज़ा आंदोलन के कार्यकर्ता इस्राईली सेना के हमलों के जवाब में पत्थरों का प्रयोग करते थे।

हमास ने पत्थरों को अपना हथियार बनाया लेकिन देखते ही देखते संगठन के कार्यकर्ताओं ने बंदूक़ों का प्रयोग शुरू कर दिया।इस्राईली हमलावरों ने एक बड़ा आप्रेशन करके हमास तथा दूसरे प्रतिरोधक संगठन जेहादे इस्लामी के 400 से अधिक नेताओं और अधिकारियों को निर्वासित करके मरजुज़्ज़ुहूर नामक इलाके में भेज दिया जिसके बाद हमास ने शहादत प्रेमी हमले शुरू कर दिए। अलअक़सा इंतेफाज़ा आंदोलन शुरू हुआ तो हमास ने प्रतिरोध के तरीक़ो में विविधता पैदा कर दी।

हमास संगठन को ग़ज़्ज़ा पट्टी के इलाक़े में नाकाबंदी में रखा गया लेकिन इस संगठन ने इसके बावजूद अपने शस्त्रागार का विस्तार किया और वहीं पर ग्रेनेड और आरपीजी का उत्पादन किया इस तरह आधुनिक हथियारों से लैस इस्राईली सेना का मुक़ाबला करने की इस संगठन की शक्ति बढ़ी। हमास ने वर्ष 2001 में अपना पहला मिसाइल बनाया जिसकी मारक दूरी चार किलोमीटर थी। हमास ने बहुत तेज़ी से अपने मिसाइल की रेंज में विस्तार किया और इसे बढ़ाकर 160 किलोमीटर तक पहुंचा दिया। इसी मिसाइल से हमास ने हैफ़ा नगर पर हमला किया। हमास की सैनिक शाख़ा इज़्ज़ुद्दीन क़स्साम ब्रिगेड ने एक स्नाइपर राइफ़ल बनाई जो दो किलोमीटर की घातक मार कर सकती है।

जुलाई 2014 में क़स्साम ब्रिगेट ने ड्रोन विमान बनाकर इस्राईल और उसके घटकों को हैरत में डाल दिया। हमास ने अबाबील नाम के तीन ड्रोन बनाए। अबाबील ड्रोन से माध्यम से हमास ने जासूसी के कई अभियान पूरे किए। एक अभियान में तो ड्रोन विमान ने तेल अबीब में स्थित इस्राईली युद्ध मंत्रालय की तसवीरें लेकर अपने कंट्रोल रूम को भेजीं।

सुरंगे एक स्ट्रैटेजिक हथियार

क़स्साम ब्रिगेड अपने रक्षा उपकरणों और साधनों की विविधता बढ़ाती जा रही है। अतिग्रहणकारी इस्राईली सेना का मुक़ाबला करने के लिए उसने सुरंगों को बड़े कारगर हथियार के रूप में प्रयोग किया है। वर्ष 2001 में हमास ने पहली बार सुरंगों को हथियार के रूप में प्रयोग किया। हमास के सैनिकों ने ग़ज़्ज़ा पट्टी के दक्षिण में स्थित तरमीद नामक इस्राईली सैनिक चेकपोस्ट के नीचे सुरंगे द्वारा पहुंचकर वहां बम लगा दिया और फिर बम का धमाका करके चेकपोस्ट को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद भी हमास ने आनन फ़ानन में बनाई जाने वाली सुरंगों के ज़रिए इस्राईली सैनिकों पर कई हमले किए। एक हमले में इस्राईली सैनिक गिलआद शालीत को क़ैदी बना लिया था।

सुरंग तकनीक पर हमास ने लगातार काम किया और आज कहा जाता है कि ग़ज़्ज़ा पट्टी ज़मीन के ऊपर होने के साथ ही ज़मीन के नीचे भी पूरी तरह आबाद है। ज़मीन के भीतर पूरा इलाक़ा बसा हुआ है जिसमें हमास और जेहादे इस्लामी संगठनों के महत्वपूर्ण ठिकाने हैं। इस्राईल से होने वाले युद्धों में फ़िलिस्तीनी संगठनों ने कई बड़े आप्रेशन इन्हीं सुरंगों की मदद से किए जिनमें चार आप्रेशन बहुत मशहूर हैं। इन आप्रेशनों से इस्राईल को भारी नुक़सान उठाना पड़ा था।

 

समुद्री हथियार

हमास की सैनिक शाखा क़स्साम ब्रिगेड ने समुद्र को भी इस्राईल का मुक़ाबला करने के महत्वपूर्ण मैदान के रूप में प्रयोग किया है। नवम्बर 2000 में फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ताओं ने इस्राईल की एक युद्धक नौका को धमाके से उड़ा दिया था। हमदी नसयू नाम के फ़िलिस्तीनी युवा ने शहादतप्रेमी हमला किया और इस्राईली युद्धक नौका के पास अपनी छोटी से नौका ले जाकर धमाका कर दिया। इसके बाद मार्च 2004 में हमास ने नैवल युनिट की स्थापना की। इस युनिट ने दैरुल बलह शहर के पश्चिम में तल क़तीफ़ नामक ज़ायोनी कालोनी पर हमला किया जिसमें तीन ज़ायोनी सैनिक मारे गए।

हमास ने नैवल युनिट में लगातार विस्तार किया और आज हमास के पास यह बहुत मज़बूत फ़ोर्स है। ज़ीकीम नामक सैनिक आप्रेशन में इस युनिट ने अपनी ताक़त का लोहा मनवाया। वर्ष 2014 में जब इस्राईल ने ग़ज़्ज़ा पट्टी पर हमला किया तो 24 घंटे के बाद नैवल युनिट ने इस्राईल पर बड़ा हमला किया। इस युनिट ने इस्राईल की ज़ीकीम नामक छावनी पर हमला किया जिसमें अनेक इस्राईली सैनिक मारे गए तथा एक मीरकावा टैंक ध्वस्त हो गया था।

इस हमले के बाद इस्राईली सेना के चीफ़ आफ़ स्टाफ़ बेनी गान्टेस ने कहा था कि यह तो मानना पड़ेगा कि हमारा मुक़ाबला बहादुर लड़ाकों से है। यदि कोई सैनिक टैंक के पीछे दौड़कर उस पर बम चिपका दे तो वह वाक़ई बहुत बहादुर है।

 

मीडिया और प्रचारिक हथियार

हमास ने मीडिया पर भी बहुत ध्यान दिया है। हमास ने मीडिया के माध्यम से प्रतिरोध की संस्कृति का प्रसार किया। संचार माध्यमों से हमास शहीदों की वसीयतनामे प्रकाशित और प्रसारित करता है और साथ ही इस्राईल के भीतर भी अपना संदेश भेजता है। हमास ने अपने सैनिक आप्रेशनों की वीडियो संचार माध्यमों पर जारी कर दी जिससे इस्राईल के भीतर हड़कंप मच गया।

अब हमास अपनी मीडिया शक्ति का विस्तार करके इस स्थिति में पहुंच चुका है कि वह इस्राईल से मनोवैज्ञानिक युद्ध भी सफलता और कुशलता के सथ लड़ रहा है। हालिया हफ़्तों में इस्राईल का फ़िलिस्तीनी संगठनों से जो टकराव हुआ उसमें हमास ने इस्राईली सेना की एक बस को बड़ी सफलता से मिसाइल हमले का निशाना बनाया  और इसकी वीडियोग्राफ़ी भी की। इस हमले की वीडियो मीडिया चैनलों पर जारी हुई तो इससे इस्राईल के भीतर आम लोग ही नहीं बल्कि इस्राईली अधिकारी भी सकते में आ गए क्योंकि इससे साबित होता था कि हमास के मिसाइलों में सटीक रूप से अपने निशाने को ध्वस्त करने की क्षमता बढ़ गई है।

हमास ने मीडिया के स्तर पर इस्राईल को तब और हैरत में डाल दिया जब उसने ग़ज़्ज़ा पट्टी के ख़ान युनुस नगर के निकट प्रवेश करने वाली इस्राईली स्पेशल फ़ोर्स की टीम की तसवीरें जारी कर दीं। इस्राईल का यह ख़ुफ़िया आप्रेशन था और इस्राईली सैनिक फ़िलिस्तीनियों के भेष में यह आप्रेशन करने गए थे लेकिन उनका पूरा प्लान हमास की नज़र में आ गया और टीम मे शामिल सैनिकों की तसवीरें भी जारी कर दीं।

इसी बड़े बदलाव को महसूस करके इस्राईल ने हाल ही में जब फ़िलिस्तीनी संगठनों से टकराव शुरू हुआ तो 48 घंटे के भीतर संघर्ष विराम कर लिया और इसके लिए उसने मिस्र की मदद मांगी।

फ़िलिस्तीनी भी यह बात सार्वजनिक रूप से कहते हैं कि हमास और जेहादे इस्लामी सहित प्रतिरोधकर्ता फ़िलिस्तीनी संगठनों की ताक़त में विस्तार ईरान की निर्णायक भूमिका से हुआ है। ईरान और हिज़्बुल्लाह ने इसमें बहुत महत्वपूर्ण मदद की है और इस समय ही कर रहा है।