AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
रविवार

11 नवंबर 2018

3:38:46 pm
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फ़िलिस्तीनी युवा ने मचा दिया इस्राईल में हड़कंप, कठिन भविष्य की ओर बढ़ रहा है इस्राईल

दसियों लाख की संख्या में फ़िलिस्तीनी शरणार्थी अपनी भूमि की ओर लौटने की कोशिश और प्रतीक्षा कर रहे हैं।

फ़िलिस्तीन के भीतर भी लाखों की संख्या में एसे फिलिस्तीनी हैं जो शरणार्थी कैंपों में रहते हैं और वह अपनी आंख से देखते हैं कि उनके शहरों और गांवों पर इस्राईल में आकर बसने वाले यहूदियों ने क़ब्ज़ा कर लिया है। यह फ़िलिस्तीनी अपनी भूमियों की ओर वापसी के लिए संघर्षरत रहते हैं। गत शुक्रवार की रात इस्राईली सेना के कड़े पहरे के बावजूद एक फिलिस्तीनी युवा ग़ज़्ज़ा के क़रीब स्थित एक ग़ैर क़ानूनी यहूदी बस्ती में जा घुसा और उसने वहां आग लगा दी।

इस्राईली मीडिया ने रविवार को यह रिपोर्ट दी कि फ़िलिस्तीनी युवा ने गज़्ज़ा पट्टी की सीमा पर इस्राईल ओर से लगाई गई बाड़ को पार कर लिया और एक किलोमीटर भीतर तक घुस गया। इस्राईली सेना के उपकरणों ने फ़िलिस्तीनी युवा की गतविधियों को रिकार्ड कर लिया था मगर इसके बावजूद वह नेतीफ़ हआसरा गांव तक जा पहुंचा और वहां उसने उसने आग लगा दी। बाद में इस्राईली पुलिस और सेना के जवानों ने उसे गिरफ़तार कर लिया।

इस्राईली सूत्रों का कहना है कि यह युवा इससे पहले भी कम से कम सात बार सीमावर्ती बाड़ को पार करके ज़ायोनी बस्तियों में घुस चुका था और उसने भारी नुक़सान पहुंचाया था जबकि इस्राईली सेना उसे गिरफ़तार नहीं कर सकी थी।

इस्राईली सेना ने ग़ज़्ज़ा पट्टी की सीमा पर अपने अत्याधुनिक निगरानी उपकरण लगा रखे हैं और इसके बावजूद फ़िलिस्तीनी युवाओं का बाड़ पार कर लेना और ज़ायोनी बस्तियों में पहुंच कर हमला करना और ग़ज़्ज़ा वापस लौट जाना इस्राईल के लिए गंभीर चिंता की बात है।

इस्राईल में इस बात पर हड़कंप मचा है कि जब फ़िलिस्तीनी युवा इस तरह बाड़ को पार कर लेते हैं तो निश्चित रूप से फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ता संगठनों जैसे हमास और जेहादे इस्लामी के जवानों के लिए बाड़ को पार करने और इस्राईली बस्तियों में घुसकर हमला करना या इस्राईली सैनिकों को बंधक बना लेना निश्चित रूप से बहुत आसान काम होगा।

फ़िलिस्तीनी संगठनों के पास इस क्षमता का मामला एसे समय सामने आया है कि जब फ़िलिस्तीनी संगठनों की मिसाइल ताक़त ते इस्राईल पहले ही काफ़ी चिंतित है। फ़िलिस्तीनी संगठनों ने ग़ज़्ज़ा पट्टी के कड़े परिवेष्टन के बावजूद मिसाइल शक्ति को इस प्रकार के विकसित कर लिया है कि इस्राईल के भीतर कोई भी स्थान एसा नहीं हो जो फ़िलिस्तीनी संघर्षकर्ताओं के मिसाइलों की रेंज से बाहर हो। वैसे भी इस्राईल की अधिकतम चौड़ाई 110 किलोमीटर और न्यूनतम चौड़ाई 17 किलोमीटर बताई जाती है एसे में किसी भी मिसाइल हमले की स्थिति में इस्राईल सुरक्षित नहीं रह सकता।

इस्राईल के भीतर बहुत से गलियारे यह कहने लगे हैं कि इस्राईल जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है वहां उसके लिए ख़ुद को सुरक्षित रख पाना कठिन होगा। इस्राईल इस समय अरब देशों से अपनी दोस्ती की बात कर रहा है और इस विचार में है कि अरबों से दोस्ती करके वह फ़िलिस्तीन के मुद्दे को पूरी तरह ख़त्म कर देगा मगर सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि जिन देशों से इस्राईल दोस्ती का संकेत दे रहा है और जिन देशों का दौरा इस्राईल के अधिकारी कर रहे हैं वह तो कई दशकों से इस्राईल के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध निभा रहे हैं। क़तर, इमारात, सऊदी अरब, जार्डन, मिस्र और ओमान जैसे देश बहुत लंबे समय से इस्राईल के दुशमन नहीं समझे जाते और इन देशों के अधिकारियों से इस्राईल के संबंध हैं। इस समय बस इतना हुआ है कि इन देशों से इस्राईल की दोस्ती की बात खुले आम की जाने लगी है। इससे पहले तक यही दोस्ती और यही संबंध था मगर उसको पर्दे के पीछे छिपाए रखा जाता था अब यही सब कुछ खुले आम होने लगा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह इस्राईल की कोई कामयाबी नहीं बल्कि फ़िलिस्तीनियों और उनके समर्थकों का मनोबल कमज़ोर करने के लिए मनोवैज्ञानिक रणनीति है। इस्राईल उन्हें यह विश्वास दिलाना चाहता है कि इस्राईल के ख़िलाफ़ संघर्ष करने का कोई फ़ायदा नहीं है क्योंकि मुस्लिम और अरब देशों ने भी इस्राईल से संबंध स्थापित कर लिए हैं जबकि उन्होंने इस दोस्ती के लिए फ़िलिस्तीन का मुद्दा हल किए जाने और फ़िलिस्तीन देश की स्थापना की कोई शर्त नहीं रखी है। मगर हक़ीक़त यह है कि फ़िलिस्तीनियों और उनके समर्थकों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में इस्राईल को काफ़ी देरी हो गई है। इस समय फ़िलिस्तीनी तथा उनके समर्थक अर्थात ईरान, हिज़्बुल्लाह, सीरिया और इराक़ बहुत बड़ी विजय हासिल करके मनोबल की चरम सीमा पर हैं। सीरिया संकट में इस्राईल अमरीका तथा उनके घटकों ने अपने प्राक्सी संगठनों की मदद से अपनी पूरी ताक़त झोंक दी मगर उन्हें सफलता नहीं मिल पायी। सफलता उसी मोर्चे को मिली जो मध्यपूर्व के इलाक़े में अमरीका और इस्राईल के वर्चस्ववाद के ख़िलाफ़ डटा हुआ है।

अतः अब इन नए हालात में मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी इस मोर्चे पर दबाव डालना और उसका मनोबल गिरा पाना इस्राईल और उसके समर्थकों के बस की बात नहीं है। इस संदर्भ में हिज़्बुल्लाह लेबनान के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह का वह बयान बहुत महत्वपूर्ण है जिसमें उन्होंने कहा कि इस्राईली सैनिकों की तुलना में दाइशी आतंकियों से लड़ना कठिन था इसलिए कि दाइशी आतंकी आत्मघाती हमले करते थे जबकि इस्राईली सैनिकों के डर की यह हालत होती है कि वह जब भी आगे बढ़ते हैं तो पहले यह निश्चित कर लेते हैं कि साथ में टैंक, तोपें और एंबुलेंस गाड़ियां हैं या नहीं अतः उन्हें अपनी जान का बड़ा डर होता है।

जो घटनाएं हो रही हैं उनसे साफ़ है कि इस्राईल कठिन समय से गुज़र रहा है तथा अधिक कठिन भविष्य की ओर बढ़ रहा है।

साभार रायुल यौम