इस्राईल ने मांग की है कि इस्राईली मीडिया और तमाशबीनों को सुरक्षित माहौल में आने जाने और अपना काम करने की अनुमति दी जाए।
यह इस्राईल का घमंड ही है वरना उसे तो इसी पर आभारी होना चाहिए था कि वे एक अरब देश की धरती पर क़दम रखने पा रहे हैं क्योंकि वर्ल्ड कप की मेज़बान होने के नाते क़तर सरकार को मजबूरन उन्हें अपने यहां मैच देखने आने की अनुमति देनी पड़ी। दूसरी बात यह है कि अरबों और मुसलमानों ने दोहा में उन्हें बड़े सभ्य अंदाज़ में न कहा, मारा पीटा नहीं। अरब व मुस्लिम युवाओं ने बस यह किया कि इस्राईली पत्रकारों के सामने फ़िलिस्तीन का राष्ट्र ध्वज उठा लिया और इशारे किए। दूसरी बात यह है कि जब इस्रईली पत्रकारों को वहां कैमरा लगाने की अनुमति मिल गई है तो इससे ज़्यादा उन्हें और क्या चाहिए। इस्राईली तो वे लोग हैं जिन्होंने फिलिस्तीन में हर तरह की आज़ादी को कुचल डाला है। वे तो पत्रकारों और आम नागरिकों की टारगेट किलिंग करते हैं, शीरीन अबू आक़ेला की हत्या तो बिल्कुल हाल ही की घटना है।
क्या इस्राईली मीडिया को यह उम्मीद हो चली थी कि अरब व मुसलमान युवा ताली बजाकर उनका मनोबल बढ़ाते?! अरब व मुस्लिम युवाओं ने जो पैग़ाम भेजना चाहता वो भेज दिया। उन्होंने कह दिया कि तुम सब क़ातिल हो, तुम्हारी हुकूमतें युद्ध अपराध कर रही हैं और हमें तुम्हारा रवैया बर्दाश्त नहीं है, हम तुम्हें किसी भी अरब इलाक़े में नहीं देखना चाहते।
इस्राईल की सरकार हो या जनता उन्हें यह भारी ग़लत फ़हमी हो गई थी कि फ़ार्स खाड़ी के अरब देश उनके मित्र बन गए है। उन्होंने कुछ अरब देशों के साथ अब्राहम समझौता कर लिया और कुछ अरब देशों की राजधानियों में अपने दूतावास खोल लिए तो उन्हें लगा कि अब तो सब उन्हें हाथों हाथ लेंगे। इस्राईलियों को यह पता ही नहीं कि जिन सरकारों ने उनसे दोस्ती की है वो जनता की भावनाओं का सही प्रतिनिधित्व नहीं कर रही हैं।
हमें तो इस पर ताज्जुब है कि इस्राईलियों को यह देखकर हैरत हो रही है कि फ़िलिस्तीन और फ़िलिस्तीनियों के लिए अरब जगत में भारी समर्थन पाया जाता है। इस्राईली तो दावा करते हैं कि उनके पास बड़े अच्छे थिंक टैंक हैं और इंटेलीजेन्स नेटवर्क भी बहुत सटीक काम करता है। उन्हें पूरे अरब जगत की हर छोटी बड़ी घटना की पूरी जानकारी होती है। अमली तौर पर तो यह साबित हुआ कि इस्राईली अंधेरे में हैं।
इस्राईल की सरकार और जनता अरब देशों की इंटैलीजेन्स द्वारा बिछाए गए जाल में फंस गई। इन एजेंसियों ने इस्राईली अधिकारियों को अरबों का ख़ास लिबास तोहफ़े के तौर पर भेजा तो उन्हें लगा कि अब हालात पूरी तरह बदल गए हैं। उन्हें यह पता ही नहीं चला कि जो लोग उनसे मिल रहे हैं और तोहफ़े दे रहे हैं वे आम अरब नागरिक नहीं इंटेलीजेन्स के एजेंट और अफ़सर हैं।
इस्राईल की सरकार और जनता को पैग़ाम पहुंच चुका है कि इस्राईल के ख़िलाफ़ आक्रोश और नफ़रत की ज्वाला भड़क रही है और जैसे जैसे फ़िलिस्तीन में वेस्ट बैंक के इलाक़े और दूसरे इलाक़ों में फ़िलिस्तीनियों का प्रतिरोध बढ़ रहा है इस्राईल के ख़िलाफ़ नफ़रत तेज़ हो रही है।
आख़िर में हम यही कहेंगे कि इस्राईल अरब सरकारों के साथ जिस तरह का चाहे समझौता कर ले अरब जनता हरगिज़ इस्राईल को स्वीकार नहीं करेगी। क़तर में एक तमाशबीन ने अरबी में यह नारा लगायाः यल्ला यल्ला यल्ला, इस्राईली बर्रा। यानी फ़ौरन, फ़ौरन फ़ौरन इस्राईली यहां से फूट लो। यही आवाज़ सारी अरब जनता की है।
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