AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : Parstoday
शनिवार

26 नवंबर 2022

7:18:42 pm
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क्या पुतीन यूरोप और अमरीका में बवाल करवाने में कामयाब हो गए? यूरोपीय संघ के बिखर जाने का ख़तरा भी गंभीर है

यूरोपीय संघ के ऊर्जा मंत्री ऊर्जा संकट को कंट्रोल करने के लिए गैस की अधिकतम क़ीमत निर्धारित करने में नाकाम रहे। यूरोपीय संघ में ऊर्जा समिति की ओर से ऊर्जा की क़ीमतों के बारे में जो प्रस्ताव लाया गया उस पर गंभीर मतभेद हो गए। यहां तक कि पोलैंड और यूनान ने प्रस्ताव को मज़ाक़ क़रार दिया।

अमरीका और उसके साथ छह यूरोपीय देश कोशिश कर रहे हैं कि रूस की गैस और तेल की अधिकतम क़ीमत निर्धारित कर दी जाए ताकि रूस उससे अधिक क़ीमत पर तेल और गैस बेच न पाए। इसका नतीजा यह होगा कि रूस के ख़ज़ाने की आमदनी कम होगी और यूक्रेन युद्ध की स्थिति में बदलाव होगा जो पिछले आठ महीने से जारी है।

यूरोपीय सरकारों को अब साफ़ महसूस होने लगा है कि अमरीका ने उन्हें बहुत भयानक युद्ध में झोंक दिया है और इस संकट का फ़ायदा अमरीका अकेले उठा रहा है और अमरीका ही है जिसने यूरोपीय देशों के बीच गहरे मतभेद और विवाद के बीज बो दिए हैं।

पोलिटिको मैगज़ीन ने अपने लेख में लिखा कि यूरोपीय अधिकारी अब वाइट हाउस की नीतियों पर खुलकर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करने लगे हैं और उनका कहना है कि अमरीका यूक्रेन संकट ही नहीं यूरोप में ऊर्जा के संकट का भी ख़ूब फ़ायदा उठा रहा है क्योंकि सबको नज़र आ रहा है कि यूक्रेन युद्ध के नतीजे में अमरीका के हथियार उद्योग की चांदी हो गई है। अमरीका ख़ूब जमकर हथियारों का निर्यात कर रहा है।

रूस के राष्ट्रपति भवन क्रेमलिन हाउस के प्रवक्ता ने धमकी दी है कि रूस राष्ट्रपति पुतीन के आदेश के अनुसार उस यूरोपीय देश को कोई गैस और तेल नहीं बेचेगा जो रूसी गैस और तेल की अधिकतम क़ीमत तय करने की कोशिश करेगा। रूस के इस कड़े संदेश का यूरोप में गहरा असर दिखाई दिया। यूरोपीय देश इस मुद्दे पर बंट गए और रूसी तेल व गैस की क़ीमत तय करने में पूरी तरह नाकाम रहे।

यूरोपीय देशों को अगर ग़ौर से देखा जाए तो उनकी बौखलाहट बिल्कुल ज़ाहिर है। उनको लग रहा है कि अमरीका ने जान बूझ कर यूक्रेन का संकट शुरू करवाया और इसमें पहले रूस को खींचा और उसके बाद यूरोपीय देशों को इस जंग में बुरी तरह उलझा दिया। इशारे मिल रहे हैं कि यूरोप की दो बड़ी अर्थ व्यवस्थाओं जर्मनी और फ़्रांस के बीच इस समय मतभेद बहुत गहरे हो गए हैं क्योंकि ऊर्जा के संकट से बाहर निकलने के लिए दोनों देश अपने अपने हित के अनुसार अलग अलग समाधान की ओर बढ़ना चाहते हैं। यह समाधान अलग अलग ही नहीं बल्कि आपस में विरोधाभासी भी हैं। यही वजह है कि जटिलता बढ़ती जा रही है।

पश्चिम की पूरी पूंजीवादी व्यवस्था ही बाज़ार और मूल चीज़ों की क़ीमतों पर टिकी हुई है। इन्हीं बुनियादों की वजह से यह व्यवस्था मज़बूत हुई थी मगर रूस की गैस और तेल की क़ीमत निर्धारित करने का मुद्दा इस समय बहुत बड़ी चुनौती में बदल गया है।

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