AhlolBayt News Agency (ABNA)

source : parstoday
रविवार

2 फ़रवरी 2020

4:25:08 pm
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क्या है सेंचुरी डील और उसका इतिहास? फिलिस्तीनियों पर अत्याचार का नया अध्याय...

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मंगलवार को सेंचुरी डील के नाम से मध्य पूर्व में शांति स्थापना की योजना का एलान किया जिसे फिलिस्तीनियों ने तत्काल रूप से अस्वीकार कर दिया।

ट्रम्प की सेंचुरी डील का पूरी दुनिया में विरोध हो रहा है और सऊदी अरब और उसकी मंडली में शामिल कुछ गिने चुने देशों के अलावा पूरे इस्लामी जगत में इस अन्यायपूर्ण योजना का विरोध किया जा रहा है। वास्तव में फिलिस्तीन पर इस्राईल ने दो चरणों में क़ब्ज़ा किया। सन 1948 में इस्राईल ने फिलिस्तीन के 78 प्रतिशत भाग पर क़ब्ज़ा किया और सन 1967 में बाकी बचे 22 प्रतिशत भाग पर क़ब्ज़ा कर लिया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन 1948 में फिलिस्तीन के 78 प्रतिशत भाग पर इस्राईल के क़ब्ज़े को व्यवहारिक रूप से स्वीकार कर लिया लेकिन  सन 1967 में किये गये क़ब्ज़े को गैर क़ानूनी घोषित किया। दूसरे चरण में इस्राईल ने गज़्ज़ा पट्टी और पश्चिमी तट के कई क्षेत्रों पर भी क़ब्ज़ा किया। फिलिस्तीनी संगठनों और जनता ने वर्षों अपने देश के लिए संघर्ष किया लेकिन चूंकि इस्राईल और उसके पश्चिमी समर्थकों के कारण उन्हें कोई सफलता नहीं मिली इस लिए वह गज़्ज़ा पट्टी और पश्चिमी तट  पर आधारित 22 प्रतिशत फिलिस्तीन पर ही अपना देश बनाने पर तैयार होने पर मजबूर हो गये।

यासिर अरफात के नेतृत्व में पीएलओ ने इस्राईल के साथ शांति वार्ता की और उसके परिणाम में सन 1993 में ओस्लो समझौता हुआ। समझौते के आधार पर सारे मुद्दों का संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव के अनुसार समाधान किया जाना था लेकिन इस्राईल ने यह मानने से इन्कार कर दिया और तय यह हुआ कि विवाद के चार मुख्य मुद्दों को समझौते से हटा दिया जाए और पांच वर्ष के भीतर उस पर बाद में आपस में बातचीत  से मामला हल कर लिया जाए । इन चार विषयों में पश्चिमी तट पर गैर कानूनी यहूदी बस्तियों का मामला शामिल था और इस्राईल किसी भी दशा उन बस्तियों को खाली नहीं करना चाहता था, 25 वर्षों के बाद भी यह चार मुद्दे बाकी हैं और इस्राईल ने फिलिस्तीनी पक्ष पर आरोप लगाते हुए ओस्लो समझौते का भी पालन नहीं किया।

25 वर्ष गुज़र जाने के बाद अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने सेंचुरी डील नाम से एक शांति प्रस्ताव तैयार किया और उन चारों मुख्य मुद्दों में इस्राईल के हित में फैसला कर दिया जो संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव के भी विपरीत है। उन्होंने इस डील में, बैतुलमुक़द्दस को इस्राईल का भाग घोषित कर दिया, फिलिस्तीनी शरणार्थियों की वापसी का मामला ही खत्म कर दिया, पश्चिमी तट पर सभी गैर कानूनी यहूदी बस्तियों को इस्राईल को प्रदान कर दी और फिलिस्तीनी की सीमा रेखा को इस्राईल की इच्छा अनुसार खींच दिया।

ट्रम्प की प्रस्तावित योजना में संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के 10 प्रस्तावों और महासभा के सैंकड़ों प्रस्तावों का खुला उल्लंघन है। उनमें से बहुत से प्रस्ताव तो एसे भी हैं जिनके समर्थन में अमरीकी सरकार ने भी वोट डाला था। ट्रम्प के प्रस्ताव में बची खुची फिलिस्तीनी भूमियों को कुछ इस प्रकार टुकड़ों में बांटा गया है कि फिलिस्तीनियों को दूसरे देशों से ही नहीं बल्कि स्वंय अपने दूसरे क्षेत्रों से संपर्क के लिए इस्राईल से अनुमति लेनी पड़ेगी। बीस लाख से अधिक फिलिस्तीनी शरणार्थी स्वेदश लौटने का अधिकार खो देंगे और इस्राईल के अधिकृत क्षेत्रों में रहने वाले फिलिस्तीनियों का अपनी भी भूमि पर कोई अधिकार नहीं रह जाएगा। यह ट्रम्प की सेंचुरी डील की एक झलक ही है अन्यथा यह षडंयत्र बहुत व्यापक है।