भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग़ में नागरिकता के विवादित क़ानून सीएए के ख़िलाफ़ धरने को लेकर अपने पुराने फ़ैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विरोध का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता।
12 सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अक्टूबर 2020 में दिए उस फ़ैसले को चुनौती दी थी, जिसमें विवादित नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ नई दिल्ली के शाहीन बाग़ में हो रहे विरोध प्रदर्शनों को अवैध ठहराया गया था।
जस्टिस एसके कॉल, अनिरुद्ध बोस और कृष्ण मुरारी की तीन जजों वाली पीठ ने पुनर्विचार याचिका को ख़ारिज करते हुए कहाः विरोध करने का अधिकार हर जगह और किसी भी वक़्त नहीं हो सकता।
कुछ विरोध प्रदर्शन कभी भी शुरू हो सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक चलने वाले धरना प्रदर्शनों के लिए किसी ऐसे सार्वजनिक स्थान पर क़ब्जा नहीं किया जा सकता, जिससे दूसरों के अधिकार प्रभावित हों।
यह विवादित फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट ने 9 फ़रवरी को दिया है, जिसे शुक्रवार को सार्वजनिक किया गया है।
कोर्ट ने कनीज़ फ़ातिमा समेत 12 कार्यकर्ताओं की ओर से दायर याचिका में मामले की सुनवाई खुली अदालत में करने के अनुरोध को भी अस्वीकार कर दिया।
ग़ौरतलब है कि नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ पिछले साल शाहीन बाग़ समेत देश भर में व्यापक धरना प्रदर्शन हुए थे, जो लंबे समय तक चले थे, लेकिन कोरोना महामारी के चलते इन प्रदर्शनों को रोक दिया गया था।
शाहीन बाग़ के 9 नम्बर में दिल्ली को नोएडा से जोड़ने वाले हाईवे के निकट धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।
इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा था कि पुलिस के पास किसी भी सार्वजनिक स्थल को ख़ाली कराने का अधिकार है, और किसी सार्वजनिक जगह को घेर कर अनिश्चितकाल के लिए प्रदर्शन नहीं किया जा सकता।
हालांकि दिल्ली की सीमाओं पर पिछले क़रीब 80 दिनों से जारी किसान आंदोलन के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने फ़िलहाल ऐसी कोई टिप्प्णी नहीं की है।