ट्रम्प सरकार का अंत होने वाला है लेकिन ईरान के प्रति उनकी दुश्मनी का अंत नहीं होगा। बचे हुए 70 दिनों में उन्होंने ईरान के खिलाफ बहुत कुछ करने का संकेत दिया है लेकिन वह क्या कर पाएंगे? लंदन से प्रकाशित होने वाले अरबी भाषा के समाचार पत्र रायुलयौम में इसका जायज़ा लिया गया है।
लगभग 20 जनवरी सन 2021 तक डोनाल्ड ट्रम्प, अमरीका के राष्ट्रपति पद पर विराजमान रहेंगे, पूरे अधिकारों के साथ, जिसका मतलब यह है कि उनके पास खुल कर अन्य देशों को अपमानित करने के लिए 70 दिनों का समय होगा और ज़ाहिर सी बात है इस दौरान, ईरान सब से बड़ा निशाना होगा।
अमरीका के इस राष्ट्रपति की नीयत के बारे में कई शक नहीं है, वह भी बुरी नीयत, इस लिए नहीं कि उन्होंने बाइडन से हार मानने से इन्कार कर दिया और सत्ता डेमोक्रेटों को सौंपने पर किसी भी तरह से तैयार नहीं हैं, बल्कि चुनाव के खत्म होने के बाद ही जिस तरह से उन्होंने ईरान के खिलाफ फैसले किये हैं उसे पता चलता है कि उनके मन में ईरानी राष्ट्र के खिलाफ कितना गुस्सा भरा है।
इसी तरह से ट्रम्प अमरीकियों को अमरीका के गृहयुद्ध में मारे जाने वालों की याद दिलाना चाहते हैं, इस लिए चुनाव के बाद वह बुधवार को अर्लिंग्टन राष्ट्रीय मक़बरा देखने जा रहे हैं ताकि इस तरह से अमरीकियों को मौत और जनसंहार की याद दिलाएं, वह अमरीकियों को अतीत की कड़वी यादें फिर से याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं और यह भी संदेश दे रहे हैं कि वह एक और गृहयुद्ध शुरु करा सकते विशेष कर इस लिए भी उनके समर्थकों ने चुनाव के दौरान 20 हज़ार से अधिक हथियार खरीदे हैं। ट्रम्प ने अमरीका को बदल दिया। अमरीका में कट्टरपंथियों का आधे वोटों पर क़ब्ज़ा है जिसकी वजह से भविष्य में अमरीका में अशांति बढ़ने वाली है।

यह कट्टरपंथी अमरीकी जिनका नेतृत्व ट्रम्प नाम के कट्टरपंथी नेता कर रहे हैं, अन्य देशों को अपमानित करने का कोई भी अवसर छोड़ने वाले नहीं हैं जैसा कि पिछले 4 बरसों से यही कर रहे हैं और इसमे ज़ाहिर सी बात है सब से पहले ईरान ही निशाने पर आने वाला है, क्योंकि इस कट्टरपंथी धड़े को सब से अधिक परेशानी ईरान से ही है।
मंगलवार को अमरीकी विदेशमंत्री माइक पोम्पियो ने जो बयान दिया है उससे ईरान के प्रति 70 दिनों की इस सरकार का रुख पूरी तरह से साफ हो गया है। पोम्पियो ने कहा कि हम पूरे विश्वास के साथ कह रहे हैं कि यूएई को हथियार देंगे ताकि वह ईरान का मुक़ाबला कर सके। वह इस तरह की बात कर रहे हैं जैसे ईरान, यूएई का दुश्मन है। सब को मालूम हैं कि यूएई की हैसियत ईरान के सामने कुछ ही नहीं है। ईरान के रिवोल्शनरी गार्ड आईआरजीसी का दसवां हिस्सा ही, यूईए पर बड़ी आसानी से क़ब्ज़ा कर सकता है और आधे दिन में ही इस देश की सरकार को खत्म सकता है। यूएई किसी भी तरह से ईरान के सामने टिक नहीं सकता, भले ही ट्रम्प यूएई को जितने भी हथियार दे दें लेकिन जहां तक अमरीकी विदेशमंत्री के बयान का संबंध है तो वह तो यूएई से वसूली करने के लिए है यार फिर वह यूएई को इस्राईल की सुरक्षा का एक केन्द्र बनाना चाहते हैं।
पोम्पियो इसी पर नहीं रुके बल्कि उन्होंने आगे कहा कि आज हम ने कई ईरानी कंपनियों का नाम प्रतिबंधित कंपनियों की लिस्ट में शामिल किया है। रोचक बात यह है कि ईरान को झुकाने के लिए इतने सारे प्रतिबंधों पर ही उन्हें संतोष नहीं हुआ और अब जाते जाते नये नये प्रतिबंध लगा रहे हैं। अमरीकी विदेश मंत्री यह भूल गये कि सन 1979 से सारे अरब, ज़ायोनी और पश्चिम और सब से आगे आगे अमरीका, ईरान के खिलाफ मिलकर साज़िशें रच रहे हैं लेकिन उन सब का नतीजा यही निकला कि ईरान अधिक तैयार हो गया, उसका आत्मविश्वास बढ़ गया और वह समस्याओं के तूफान से पार निकल गया हालांकि यह आसान नहीं था।

अब यह अमरीका के संकट में घिरे राष्ट्रपति, अपने मतदाताओं के बीच बयान बाज़ी के अलावा कुछ नहीं कर सकते और वाइट हाउस में अगले 70 दिनों तक की सत्ता में वह मूर्खता ही करते रहेंगे और ईरान के खिलाफ दबाव बढ़ाते रहेंगे क्योंकि ईरान से दुश्मनी की उन्हें अरब ज़ायोनियों की ओर क़ीमत अदा की जाती है और अमरीका और विदेशों में ज़ायोनी लाबी का समर्थन मिलता है और उन्हें सत्ता से हटने के बाद भी इन दोनों चीज़ों की बहुत ज़रूरत होगी क्योंकि सन 2024 में वह फिर से उम्मीदवार बनने की तैयारी कर रहे हैं।
इन सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि हारे हुए ट्रम्प अपने बाद आने वाले राष्ट्रपति को फंसाने के लिए या ईरान की ताक़त कम करने के लिए कोई युद्ध शुरु करने की हिम्मत तो बिल्कुल नहीं करेंगे क्योंकि इसका उन्हें समय ही नहीं मिलेगा और अमरीका के युद्धप्रेमी नेता, इतने कम समय में युद्ध की तैयारी नहीं कर सकते क्योंकि उसका नतीजा लंबे समय तक सहन करना पड़ेगा।