लीबिया पर एकछत्र राज करने वाले तानाशाह कर्नल क़ज़्ज़ाफ़ी का परिवार जो उनके शासन काल में बेहद महत्वपूर्ण रोल निभाता था, क़ज़्ज़ाफ़ी का शासन ख़त्म होने के बाद बुरी तरह बिखर गया। उनके तीन बेटे क़त्ल कर दिए गए, शेष दूसरे देशों की ओर भागे और कुछ के बारे में अब तक पता नहीं कि उनका क्या हुआ।
लीबिया पर 4 दशकों तक शासन के बाद क़ज़्ज़ाफ़ी का बेहद भयानक अंजाम हुआ। लीबिया में 17 फ़रवरी 2011 को जनता ने विद्रोह शुरू कर दिया जिसके नतीजे में क़ज़्ज़ाफ़ी का शासन गया और सिर्त शहर में वह ज़िंदगी की बाज़ी भी हार गए।
क़ज़्ज़ाफ़ी की पहली पत्नी से उनके बेटे मुहम्मद ने अलजीरिया में शरण ली और बाद में वहां से अपनी बहन आयशा के साथ वह ओमान चले गए। आयशा वकील हैं जो इराक़ी तानाशाह सद्दाम का मुक़द्दमा लड़ने वाली टीम में भी शामिल थीं।

क़ज़्ज़ाफ़ी के बेटे हनीबाल पर फ़्रांस और स्वीज़रलैंड सहित कई देशों में अनेक मुक़द्दमे थे। वह पहले अलजीरिया भागे और वहां से लेबनान अपनी माडल पत्नी के मैके रवाना हो गए मगर लेबनान में गिरफ़तार कर लिए गए और 2015 से अब तक जेल काट रहे हैं। हनीबाल की पत्नी के बारे में मीडिया रिपोर्ट यह कहती हैं कि वह सीरिया भाग गई।

सैफ़ुल इस्लाम को क़ज़्ज़ाफ़ी के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था। उनका क्या अंजाम हुआ यह अब तक स्पष्ट नहीं है। सैफ़ुल इस्लाम को एक हथियारबंद ग्रुप ने ज़िनतान शहर में नवम्बर 2011 में पकड़ लिया था। छोटी सी अदालती कार्यवाही के बाद उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई मगर जिस ग्रुप के क़ब्ज़े में वह थे उसने उन्हें न तो लीबियाई प्रशासन को सौंपा और न ही अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय के सिपुर्द किया। सैफ़ुल इस्लाम पर मानवता के ख़िलाफ़ अपराध के आरोप हैं।

वर्ष 2017 में उस ग्रुप ने सैफ़ुल इस्लाम को रिहा कर दिया जिसके बाद से अब तक पता नहीं कि वह कहां हैं। 2019 में अंतर्राष्ट्रीय अदालत ने कहा था कि सैफ़ुल इस्लाम अब भी ज़िनतान में हैं।
सैफ़ुल इस्लाम के भाई साएदी फ़ुटबाल खिलाड़ी थे बाद में सेना में शामिल हो गए थे। उन्होंने नाइजर भाग कर शरण ली मगर नाइजर ने 2014 में उन्हें लीबिया लौटा दिया जहां वह अब तक जेल में बंद हैं।

कर्नल क़ज़्ज़ाफ़ी की दूसरी पत्नी सफ़ीया ने ओमान में शरण ली। उन्होंने कई बार फ़रियाद की कि उन्हें लीबिया लौटने दिया जाए मगर पूर्वी लीबिया में उनके क़बीले के अच्छे ख़ासे रसूख़ के बावजूद उनकी फ़रियाद सुनी नहीं गई। इसकी वजह यह है कि मुअम्मर क़ज़्जाफ़ी ने अपने शासन काल में इसी क़बीले के बहुत सारे लोगों को जेलों में ठूस दिया और भयानक यातनाएं दीं।
क़ज़्ज़ाफ़ी की सरकार की रक्षा के लिए एक पैरा मिलिट्री फ़ोर्स बनाई गई थी। इसके अधिकतर सदस्यों ने ट्यूनीशिया और मिस्र जाकर शरण ली क्योंकि उन्हें डर था कि लीबिया के भीतर हुए भयानक अत्याचारों का उनसे इंतेक़ाम लिया जा सकता है।
लीबिया में आज यह विचार आम है कि क़ज़्ज़ाफ़ी ने देश की राजनैतिक व्यवस्था को पूरी तरह तबाह कर दिया और उसे भयानक रूप से भ्रष्ट बना दिया था अतः क़ज़्ज़ाफ़ी के परिवार और उनके क़रीबी लोगों के लिए शायद लीबिया में कोई स्थान नहीं होगा।
स्रोतः अलज़जीरा