भारत की केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का पिछले कई सप्ताहों से आन्दोलन जारी है। इस आन्दोलन को अब 87 दिन गुज़र चुके हैं।
पिछले 87 दिनों के दौरान आंदोलन में कम से कम 248 किसान अपनी जान गंवा चुके हैं। कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा "एसकेएम" द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों के अनुसार मृतक 248 किसानों में से 202 पंजाब से और 36 हरियाणा से हैं जबकि अन्य राज्यों से मरने वालों में एक-एक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तराखंड से शामिल हैं। सबसे अधिक मौतें पंजाब के किसानों की हुई हैं।
द वायर के अनुसार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि अधिकतर मौतें दिल का दौरा पड़ने, कड़ाके की ठंड और बीमारी के कारण हुई जबकि कुछ मौतें दुर्घटनाओं के चलते हुई हैं। "एसकेएम" द्वारा इकट्ठा किए गए यह आंकड़े 26 नवंबर 2020 से 20 फरवरी 2021 के बीच के हैं।
भारतीय किसान यूनियन के महासचिव जगमोहन सिंह ने कहा, ‘हमारे किसान विषम परिस्थितियों में भी ट्रैक्टर ट्रॉली में रह रहे हैं। यहां स्वच्छता नहीं है, क्योंकि सड़कों पर स्वच्छ शौचालय नहीं है, जिसकी वजह से कई किसान बीमार हो गए। उन्होंने बताया कि ठंड, दिल का दौरा पड़ने, ब्रेन हैमरेज, मधुमेह और निमोनिया जैसी बीमारियों की वजह से कई किसानों की मौत हो गई। जगमोहन के अनुसार कई किसानों की मौत दुर्घटनाओं में भी हुई। उन्होंने कहा कि कई किसानों को समय पर चिकित्सा सहायता नहीं मिल पाई, जिस वजह से उनकी मौत हो गई।
जगमोहन ने कहा कि यह मौतें नहीं बल्कि हत्याएं हैं क्योंकि किसानों के दिल्ली सीमाओं पर पहुंचने के एक हफ्ते के भीतर ही सरकार को समस्याएं हल कर देनी चाहिए थीं जबकि अब तो 87 दिन गुज़र चुके हैं। बीकेयू के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां का कहना है कि सरकार की क्रूरता की वजह से किसानों की मौतें हुई हैं। उन्होंने कहा कि हम किसानों के संघर्ष को व्यर्थ नहीं जाने देंगे। जब तक किसानों की मांगें नहीं मानी जातीं, हम अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।