विश्व के वर्चस्ववादी ईरान की इस्लामी क्रांति को अपने वर्चस्ववादी मार्गों की सबसे बड़ी बाधा समझ रहे हैं क्योंकि यह क्रांति हर प्रकार के वर्चस्व और अत्याचार को नकारती है और मज़लूमों का समर्थक है।
ईरान की इस्लामी क्रांति को सफल हुए आज 43 साल पूरे हो गये। आज समूचे में ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता की 43वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। 22 बहमन 1357 हिजरी शमसी बराबर 11 फरवरी 1979 को स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. के नेतृत्तव में इस्लामी क्रांति सफल हुई थी। इस क्रांति को सफल होने से रोकने के लिए ईरान के तानाशाह और उसके समर्थकों ने किसी प्रकार के प्रयास में संकोच से काम नहीं लिया।
ईरान की इस्लामी क्रांति ने सफल होकर दर्शा दिया कि उसे दुनिया की कोई भी ताक़त हरा नहीं सकती। उसका बेहतरीन उदाहरण यह है कि 43 साल पहले से लेकर आज तक दुनिया की वर्चस्ववादी शक्तियां उसे विफल बनाने के लिए जो कुछ कर सकती थीं किया और कर रही हैं परंतु यह क्रांति आज भी अपने मार्ग पर अग्रसर है।
इस क्रांति को सफल होने से रोकने के लिए शाह के प्रधानमंत्री शापूर बख्तियार ने स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. को फ्रांस से स्वदेश लौटने से रोकने के लिए मेहराबाद हवाई अड्डे को बंद करने का प्रयास किया था परंतु इसमें भी वह सफल न हो सका और इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. 14 वर्षों से अधिक के निर्वासन के बाद पहली फरवरी को स्वदेश वापस आ गये।
उनके स्वदेश आने पर ईरानी जनता बहुत खुश थी और ईरानी लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया। इस प्रकार के स्वागत का कोई उदाहरण ईरान की इतिहास में नहीं मिलता कि ईरान के एक करोड़ से अधिक लोगों ने उनका स्वागत किया था। उनकी स्वदेश वापसी पर जहां ईरानी लोगों का मनोबल बहुत ऊंचा हो गया था वहीं शाह की अत्याचारी सरकार बहुत अधिक घबरा गयी थी दूसरे शब्दों में वह अपने जीवन की अंतिम सांसे ले रही थी।
स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. जब फ्रांस से तेहरान पहुंचे थे तो सबसे पहले वह बहिश्ते ज़हरा नामक क़ब्रिस्तान गये थे जहां उन्होंने अपने एतिहासिक भाषण में एकता को इस्लामी क्रांति की सफलता का रहस्य व मूलमंत्र बताया था।
ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले तक बहुत से लोग यह समझते थे कि इस्लाम सरकार नहीं चला सकता परंतु स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. ने इस्लाम की शिक्षाओं को इस्लामी क्रांति का आधार करार दिया और इसी आधार पर इस्लामी सरकार का गठन करके और सरकार चलाकर बता दिया कि इस्लाम सरकार भी चला सकता है। इस्लाम एक परिपूर्ण धर्म है वह एक सामाजिक धर्म है।
अगर इस्लाम सरकार न चला सकता होता तो उसे सामाजिक और पूरिपूर्ण धर्म नहीं कहा जा सकता। आज ईरान की इस्लामी क्रांति दुनिया के कमज़ोर व मज़लूम राष्ट्रों के लिए आशा की किरण और प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। क्षेत्र में फिलिस्तीनियों, लेबनानियों, यमनियों और इराक़ियों के प्रतिरोध को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।